अनकहा पहला प्यार

अनकहा पहला प्यार

सामने सोनल खड़ी थी। उसने सफेद सूट पहना था, आंखो में मोटा काजल लगाया था और उसके बाल हवा से बातें कर रहे थे। रमन का पहला प्यार इन दस सालों में और भी खूबसूरत हो गया था।

बनारस की गलियों में लौटकर रमन सबसे पहले अपने स्कूल को देखने पहुंचा। स्कूल तो खूबसूरत था ही, मगर स्कूल की यादें उसके लिए सबसे ज़्यादा खूबसूरत थी। बीते दस सालों से, हर साल वो यहां अपने खोए हुए प्यार सोनल को ढूंढने आता है। रमन को लगता है, सोनल किसी दिन उसे यही मिलेगी और वो उससे ढेर सारी बातें करेगा, जो वो स्कूल में नहीं कर पाया।

दिल की तेज़ धड़कन के साथ रमन एक बार फिर स्कूल के अंदर चला जाता है। अंदर कदम रखते ही सारे बीते पल किसी फिल्म के सीन की तरह उसकी आंखों के आगे चलने लगते हैं। “सोनल कितनी खुश है, वो बहुत बातें कर रही है। रमन उससे थोड़ा दूर बैठकर भी, खुद को उसके सबसे नज़दीक महसूस कर रहा है। सोनल अब उठकर क्लास की तरफ भाग रही है, रमन पतंग की डोर की तरह उसके पीछे चला जा रहा है।”

“तुम रमन हो न?” रमन का खोया हुआ मन अचानक से ये आवाज़ सुनकर चौंक गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे अपनी आंखो पर यकीन नहीं हुआ। उसे लगा कि समय ने उसे 10 साल पीछे फेंक दिया हो क्योंकि सामने सोनल खड़ी थी। उसने सफेद सूट पहना था, आंखो में मोटा काजल लगाया था और उसके बाल हवा से बातें कर रहे थे। रमन का पहला प्यार इन दस सालों में और भी खूबसूरत हो गया था।

“कुछ बोलोगे?” सोनल के दोबारा टोकने पर रमन का ध्यान टूटा और उसने कहा ‘हां…हां…वो…वो…वो…तुम..” सोनल उसे हकलाते हुए देखकर हंस पड़ी और उसके गालों को अपने हाथ में भरते हुए कहा “आई लव यू रमन, अब कह भी दो, सालों से इंतज़ार कर रही हूं।”

सोनल की बात सुनकर रमन को चक्कर आ गया। कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वो बिस्तर पर था। आंखें खुलने पर उसे लगा वो सपना देख रहा है। लेकिन, तभी उसके हाथों को किसी ने अपने हाथों में भर लिया। वो सोनल थी। रमन बिस्तर पर पड़े हुए उसे ऐसे देख रहा था मानो उसकी जान निकल चुकी हो। जब उसने कुछ कहने की कोशिश की तो सोनल ने उसके होंठों पर ऊंगली रखते हुए कहा “मैं भी दस सालों से यहां आ रही हूं, ये सोचकर की एक दिन तुम यही मिलोगे। कल मुझे पता चला कि तुम भी दस साल से यहां आ रहे हो और सभी टीचर्स से मेरे बारे में पूछते रहते हो। हम दोनों एक-दूसरे को यही ढूंढ रहे थे, मगर अलग-अलग वक्त पर। इससे पहले की मुझे और दस साल तुम्हारे मिलने का इंतज़ार करना पड़े, मैंने तुमसे इज़हार करना ही सही समझा। अब तुम भी अपना जबाव दे सकते हो।”

एक सांस में सब बयां करते हुए सोनल ने रमन के होंठों से अपनी ऊंगली हटाई। लेकिन, रमन ने कुछ कहने की बजाय उसका हाथ अपने दिल पर रख दिया। उसके दिल की तेज धड़कन को महसूस करके सोनल को अपना जबाव मिल गया था।

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