संक्रामक बीमारी से पीड़ित श्वेता काम पर नहीं जा सकती थी। जब भी वह कुछ पढ़ने की कोशिश करती उसकी आंखों से आंसू बहने लगते। वह टीवी भी नहीं देख पाती थी, क्योंकि ऐसा करते ही उसकी पलकों में अंदर की ओर जलन शुरू हो जाता था। जब उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करे तो उसने अपनी आंखें बंद कर ली और जबरन सोने चली गई।
उसके दादा टॉर्च से उसकी आंखों की जांच कर रहे थे। उनका दयालु चेहरा उस पर गुस्सा कर रहा था।
‘श्वेता, मेरी प्यारी बच्ची, इन आई ड्रॉप्स से काम नहीं चलने वाला’।
‘क्यों दादा जी?’।
दादा ने उसकी बाईं हथेली को पकड़ते हुए अपने गठीले उभरी नसों वाले हाथों के बीच में दबाया और मुस्कुराकर चेतावनी देते हुए बोले, ‘मैं तुम्हारे संक्रमण से ज्यादा आई ड्रॉप्स को लेकर चिंतित हूं।
कोर्टिसोल का इस्तेमाल कभी मत करना, कभी नहीं। यह बात याद रखना’।
इसके साथ ही दादा कमरे से चले गए।
श्वेता की आंखें अचानक खुली। वह केवल यह देख सकी कि पीले पर्दे के पार दोपहर की धुंधली रोशनी (Dim light) है।
वह उठकर बैठ गई, बिस्तर से उतरी। अपने कपड़े बदलने के लिए अलमारी खोली। एक सादी सी टी शर्ट और जींस पहनकर उसने बिस्तर के पास मेज़ पर रखी आई ड्रॉप्स की छोटी सी शीशी उठा ली। उसने बिस्तर पर पड़ा अपना हैंड बैग उठाया और शीशी उसके अंदर रख ली।
दस मिनट से भी कम समय में वह अपने फ्लैट से निकल चुकी थी। उसने एक ऑटो रिक्शा किया और नेत्र विशेषज्ञ के क्लिनिक की ओर चल पड़ी।
एक घंटे बाद डॉक्टर आनंद उसकी आंखों की जांच कर रहे थे। डॉक्टर ने पूछा, ‘क्या आपने डॉक्टर की सलाह के बिना खुद ही कोई दवा इस्तेमाल की थी?’
श्वेता ने अपने हैंडबैग का सामान खंगाला और वह शीशी डॉक्टर के सामने रखते हुए बोली, ‘नहीं, यह दवा मुझे एक दूसरे डॉक्टर ने लिखी थी’।
डॉ. आनंद ने वह शीशी उससे ले ली। डॉक्टर ने शीशी के कन्टेंट्स की जांच की। उनके मुंह से स्वत: ही ‘ओह’ निकल गया। परंतु श्वेता इससे चिंतित कम जिज्ञासु अधिक थी। वह यह जानना चाहती थी कि आखिर बात क्या है।
डॉक्टर ने अपने आश्चर्य को ऊंची आवाज़ में व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि कोई विशेषज्ञ आंखों के इंफेक्शन के लिए हाइड्रोकार्टिसोन कैसे लिख सकता है?’।
‘सॉरी?’
डॉ. आनंद ने अपने हाथों से इशारा करते हुए उसे स्थिति से अवगत करवाया। कहा, ‘यह कोर्टिसोल है। सामान्य शब्दावली में एक प्रकार का स्टेरॉयड। आपके इंफेक्शन के लिए इसकी ज़रूरत ही नहीं है। आपको तो सिर्फ कंजक्टिवाइटिस है। लेट्स चेंज द मेडिसिन, ओके?’।
आधे घंटे बाद श्वेता वापस अपने घर की बैठक में आ गई। वह दीवार पर लटके फोटो के सामने खड़ी हो गई। उसने फोटो को अपनी हथेलियों से छुआ।
दादाजी की वही दुलार भरी मुस्कान और उनका बेदाग सफेद कोट दोनों हमेशा की ही तरह जगमगा रहे थे।