बदलाव

देश की शिक्षा और सामाजिक सुधार करने वाले वीरों को जानें

चलो आज हम उन वीरों के बारे में जानें, जिन्होंने अपनी सोच व सक्रिय भागीदारी से देश में शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी। ये वही स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो बिना हथियारों के देश को सामाजिक बुराइयों से आजादी दिलाने के लिए लड़े थे।

14 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जो ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है। उस रात एक नए युग की शुरुआत हुई थी। एक स्वतंत्र भारत की शुरुआत। क्योंकि इसी दिन पूरे 200 सालों के बाद ब्रिटिश शासन का अंत हुआ था। लेकिन यह आजादी आसान नहीं थी। दो सदियों तक भारतीयों को देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना पड़ा था।

सोलवेदा उन वीरों को नमन करता है, जिन्होंने आधुनिक भारत के लिए बदलाव की शुरुआत की थी। ये समाज के वे अग्रदूत, समाज सुधारक, विचारक और कार्यकर्ता थे, जिन्होंने बिना बंदुक व तलवार के लड़ाई लड़कर समाज-सुधार की दिशा में एक क्रांति की शुरुआत की थी।

समाज सुधारक, राजा राम मोहन राय

जब अंग्रेज भारत आये, तो वे अपने साथ अपनी संस्कृति और शिक्षा भी लेकर आए थे। इसने भारत के कुछ वर्ग विशेष के लोगों को प्रभावित किया था। भारत में सामाजिक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या और जातिवाद की परंपरा ने समाज को त्रस्त किया हुआ था। इसके कारण बड़े स्तर पर सामाजिक और धार्मिक सुधारों की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के आने के साथ ही कुछ भारतीयों ने इन बुराइयों का विरोध करना शुरू कर दिया था। देश के इतिहास में इस अवधि को भारतीय पुनर्जागरण के युग के रूप में जाना जाता है। इस सामाजिक जागृति का नेतृत्व करने वाले समाज सुधारक राजा राम मोहन राय को भारतीय नवयुग के जनक के रूप में जाना जाने लगा था। राजा राम मोहन ने इन बुरी सामाजिक प्रथाओं के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी और अंततः सती प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनवाया था। साथ ही उस समय की कई विधवाओं के जीवनदाता साबित हुए थे। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित हुआ।

शिक्षाविद्, सावित्रीबाई फुले

ऐसे समय में जब महिलाओं का बाल विवाह कर दिया जाता था। उनका पूरा जीवन घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया जाता था, तब सावित्रीबाई फुले ने देश की पहली शिक्षिका बनकर एक मिसाल कायम की थी। सावित्रीबाई फुले ने देश में महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी प्रयास किये थे। साथ ही वे लड़कियों की शिक्षा की शुरुआत करने वाली देश की पहली महिला थी। हालांकि, उनकी शादी नौ वर्ष की उम्र में ही हो गयी थी, लेकिन उनके पति ज्योतिराव फुले जो कि उस समय केवल 13 वर्ष के थे, उन्होंने सावित्रीबाई फुले की शिक्षा पूरी करने में मदद की। सावित्रीबाई ने 17 वर्ष की उम्र में ही पुणे में महिलाओं के लिए और फिर 21 साल की उम्र में ‘अछूत’ लडकियों के लिए स्कुल की स्थापना की थी। जो बड़ा बदलाव था। सावित्रीबाई देश की पहली नारीवादी थी। जिन्होंने लडकियों को शिक्षित करने के अलावा महिलाओं के अधिकारों का भी समर्थन किया था। उन्होंने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए महिला सेवा मंडल नामक एक समिति का भी गठन किया था।

विचारक, अरबिंदो घोष

अरबिंदो घोष देश के महानतम नेता थे। वह एक क्रांतिकारी, कवि और संत थे। उन्होंने इंग्लैंड में पढ़ाई की, लेकिन वह अपनी जड़ों को नहीं भूले। भारत आने पर उन्होंने बंगाली सीखी और कई महान लोगों को पढ़ा, जिसमें आनंदमठ व बंकिम चंद्र चटर्जी मुख्य थे। उनके कार्यों ने घोष को काफी प्रभावित किया था। शुरुआत में उन्होंने एक क्रांतिकारी की तरह स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी। लेकिन बाद में उन्होंने स्वतंत्रता और आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ को खोजना शुरू किया। घोष व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज के सामूहिक हितों के बीच संतुलन बनाने में विश्वास करते थे। हालांकि, बाद में उन्होंने आध्यात्मिक नेता के रूप में स्वतंत्रता के असली मायनो को समझा और लोगों को समझाया। अरबिंदो घोष को विश्वास था कि हर एक आत्मा, जो कि शरीर में निवास करती है, वह एक ऐसी इकाई है, जिसे विकास के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है। फिर चाहे वह (अमीर-गरीब, छूत-अछूत, स्त्री-पुरुष) किसी भी शरीर में क्यों न रहती हो। स्वतंत्रता के इसी नए विचार ने घोष को एक महान नेता बनाया। उनके विचार में समाज को बदलाव की ओर अग्रसर किया।

एक्टिविस्ट, सरोजिनी नायडू 

भारत की कोकिला के रूप में जानी जाने वाली सरोजनी नायडू एक कुशल कवि और सामाजिक कार्यकर्ता थी। जिन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने का अथक प्रयास किया था और महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव लाया था। वह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दो निष्ठावान व्यक्तित्व वाले लोगों महात्मा गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत प्रभावित थी। उन्होंने देश भर में कई यात्रा कर युवाओं के सशक्तिकरण, राष्ट्रवाद और महिलाओं के कल्याण जैसे विषयों पर भाषण दिए थे। इन भाषणों ने लोगों को विशेषकर महिलाओं को आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए काफी प्रेरित किया था। वह अक्सर संघर्ष के दौरान लोगों को प्रभावित करने के लिए कविता का उपयोग करती थीं। इस तरह नायडू देश भर में महिलाओं के बीच आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा करने में कामयाब रही थी। साथ ही समाज में बदलाव को दिशा दी थी।

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