स्वतंत्रता सेनानियों के नारे आज भी जगाते हैं दिल में देशभक्ति की ज्वाला

जब देश को आज़ादी दिलाने वाले वीरों का ज़िक्र होता है तो किसी एक नहीं बल्कि कई स्वतंत्रता सेनानियों के नाम सामने आते हैं। सब ने अपने-अपने स्तर पर आंदोलन किए, क्रांति की लहर दौड़ाई और भाषण या नारे देकर सामान्य लोगों को भी अपने साथ आज़ादी की जंग में शामिल किया।

हमारे देश को आज़ाद हुए 76 साल बीत चुके हैं। आजादी से पहले भारत ब्रिटिश सरकार का गुलाम था। यहां अंग्रेजी गवर्नर अपनी हुकूमत चलाते और देश के भोले-भाले लोगों को परेशान करते थे। हालांकि, इनमें से कुछ बहादुर लोग थे जिन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और देश को उनके चंगुल से आज़ाद करवाया।

जब देश को आज़ादी दिलाने वाले वीरों (freedom fighters) का ज़िक्र होता है तो किसी एक नहीं बल्कि कई स्वतंत्रता सेनानियों के नाम सामने आते हैं। सब ने अपने-अपने स्तर पर आंदोलन किए, क्रांति की लहर दौड़ाई और भाषण या नारे देखकर सामान्य लोगों को भी अपने साथ आज़ादी की जंग में शामिल किया।

स्वतंत्रता सेनानियों के दिए हुए बहुत से नारे मशहूर हैं। हर नारा किसी विशेष स्थिति या स्थान पर दिया गया। स्वतंत्रता सेनानियों के नारे या क्रांतिकारियों के नारे के बोल में इतनी ताकत है कि उसे पढ़ने या दोहराने वाला व्यक्ति, नारे के उद्देश्य को समझ जाएं तो उनके दिल में भी वही जोश और जज़्बा पैदा हो जाए जो आज़ादी के दौरान हर उस दिल में था जो आज़ादी चाहता था।

तो चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के नारे या आज़ादी के नारे और लेते हैं इन नारों से प्रेरणा।

नारा क्या होता है? (Nara kya hota hai?)

नारे का अर्थ है बुलंद आवाज़। नारा एक आसान और पूरा वाक्य या आदर्श वाक्य है जिसको किसी विशेष लक्ष्य या अवसर का वर्णन करने के लिए किया जाता है। नारा कोई भी प्रमुख व्यक्ति दे सकता है। नारा देने के दो उद्देश्य होते हैं– लोगों को प्रेरित करना या किसी विशेष विचार या लक्ष्य का प्रतिनिधित्व करना। नारे को प्रेरणा का स्रोत भी माना जा सकता है। नारे को अंग्रेजी में स्लोगन (Slogan) कहा जाता है।

स्वतंत्रता सेनानियों के नारे (Swtantrata senaniyon ke nare)

करो या मरो – महात्मा गांधी का नारा

यह नारा महात्मा गांधी के द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान गोवालिया टैंक मैदान (मुंबई में अगस्त क्रांति मैदान) में उनके भाषण में दिया गया था।

इंकलाब ज़िंदाबाद – शहीद भगत सिंह का नारा

अंग्रेजी में इस नारे का अर्थ है ‘क्रांति लंबे समय तक जीवित रहे।’ इसे मौलाना हसरत मोहानी ने गढ़ा था। भगत सिंह ने यह नारा दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के दौरान लगाया था।

जय हिन्द – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नारा

‘जय हिन्द’ का नारा ज़ैन-उल आबिदीन हसन ने गढ़ा था। वे हैदराबाद के एक कलेक्टर के बेटे थे। बाद में नेताजी ने अपने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान इस नारे का इस्तेमाल किया।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा – नेता जी सुभाष चंद्र बोस का नारा

नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज का गठन करते हुए और म्यांमार सीमा से भारत में प्रवेश करते समय लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए यह नारा दिया।

सत्यमेव जयते – पंडित मदन मोहन मालवीय का नारा

अंग्रेजी में इस नारे का अर्थ है ‘सच्चाई की ही जीत होती है।’ यह हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे लिपि में लिखा गया है और 26 जनवरी 1950 को इसे भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में चुना गया था। यह नारा हिंदू धर्मग्रंथ मुंडका उपनिषद से लिया गया है।

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है – रामप्रसाद बिस्मिल का नारा

बिस्मिल अज़ीमाबादी की एक कविता को बाद में रामप्रसाद ने नारे में बदल दिया। इस नारे ने व्यक्तियों के लिए जो सही है उसके लिए खड़े होने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। संघर्ष में, बिस्मिल ने ब्रिटिश शासन के नियंत्रण का विरोध किया। यह कविता 1922 में अब्दुल गफ्फार पत्रिका “सबा” में प्रकाशित हुई थी।

सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा – मुहम्मद इक़बाल का नारा

इस नारे को मुहम्मद इकबाल ने 1904 में तराना-ए-हिन्द शीर्षक से लिखा था।

आराम हराम है – जवाहर लाल नेहरू का नारा

जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के वक्त यह नारा दिया था, जिससे वो लोगों को संदेश देना चाहते थे कि आराम करने की जगह कुछ ऐसा करो, जिससे कुछ अच्छा फल प्राप्त हो।

जय जवान जय किसान – लाल बहादुर शास्त्री का नारा

यह नारा 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। वह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। यह नारा उन्होंने प्रयागराज के उरुवा में एक सार्वजनिक सभा में भाषण के दौरान दिया था।

वंदे मातरम् – बंकिम चंद्र चटर्जी का नारा

वंदे मातरम् बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1870 में लिखी गई एक कविता है। यह कविता बंगाली भाषा में लिखी गई थी। उन्होंने इस कविता को 1882 में बंगाली उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया था। यह कविता 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता कांग्रेस सत्र में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गाई गई थी।

स्वतंत्रता  सेनानियों  के  नारे में एक अनदेखी शक्ति महसूस होती है, जो हमारी रगों में देशप्रेम का संचार करती है। आपको ये आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। ऐसे ही आर्टिकल पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी पर।

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