शून्य भेदभाव दिवस

शून्य भेदभाव दिवस: समाज की एक खतरनाक बीमारी की दवा

हर इंसान का रूप-रंग, चाल, पेशा और रहने का तरीका दूसरे से अलग हो सकता है। यहां तक कि दो लोगों में व्यवहार भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं। इसका ये मतलब तो बिल्कुल नहीं कि हम इस विभिन्नता को भिन्नता के नज़रिए से देखें और एक-दूसरे से उसकी जाति, धर्म, रूप-रंग और व्यवहार के आधार पर भेदभाव करें।

मैंने बचपन से लेकर बड़े होने तक कई बार देखा है लोगों को एक दूसरे से घृणा करते, कभी एक-दूसरे को नीचा दिखाते तो कभी एक दूसरे के बारे में सिर्फ इसलिए बुरा सोचते हुए क्योंकि सामने वाले का रंग, जाति, नौकरी, भाषा या ठिकाना उनसे अलग है। मुझे यकीन है हमारे देश के हर इंसान ने कभी न कभी ऐसा ज़रूर देखा या महसूस किया होगा। मगर अफसोस है कि हममें से ही कुछ लोग ऐसा करने वाले भी हैं।

हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां हर व्यक्ति में बहुत-सी विभिन्नताएं हैं। किसी भी दो व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नताएं होना आम बात है। हर इंसान का रूप-रंग, चाल, पेशा और रहने का तरीका दूसरे से अलग हो सकता है। यहां तक कि दो लोगों में व्यवहार भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं। इसका ये मतलब तो बिल्कुल नहीं कि हम इस विभिन्नता को भिन्नता के नज़रिए से देखें और एक-दूसरे से उसकी जाति, धर्म, रूप-रंग और व्यवहार के आधार पर भेदभाव करें।

समाज में फैली इसी भिन्नता को रोकने के लिए शून्य भेदभाव दिवस (Zero Descrimination Day) मनाया जाता है। शून्य भेदभाव दिवस का लक्ष्य सभी लोगों के लिए समानता और सम्मान को बढ़ावा देना है, चाहे उनकी जाति, लिंग, यौन अभिविन्यास (gender orientation), या कोई अन्य विशेषता हमसे अलग हो। हमें किसी को भी भेदभाव और घृणा की नज़रों से नहीं देखना चाहिए।

शून्य भेदभाव दिवस एक अनुस्मारक (reminder) है यानी यह हमें यह याद दिलाता है कि सभी के साथ सम्मानपूर्वक और सही व्यवहार किया जाना चाहिए और किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। शून्य भेदभाव दिवस यानी ज़ीरो डिस्क्रिमिनेशन डे समाज में फैली एक बड़ी और खतरनाक भेदभाव रूपी बीमारी के लिए दवा का काम कर रहा है। आइए हम और आप सोलवेदा के साथ मिलकर इस शून्य भेदभाव दिवस के मायने समझ कर बाकी सभी को भी भेदभाव रहित जीवन जीने के लिए प्रेरित करें।

शून्य भेदभाव दिवस क्यों मनाया जाता है? (Shunya Bhedbhaw Divas kyun manaya jata hai?)

शून्य भेदभाव दिवस को मनाने का सिलसिला 1 मार्च 2014 को बीजिंग से शुरू हुआ था। दरअसल, दिसंबर 2013 में वर्ल्ड एड्स डे (World Aids Day) के दिन यूएनएड्स (UNAIDS) के द्वारा ज़ीरो डिसक्रीमिनेश कैम्पेन (Zero Discimination Campaign) चलाया गया ताकि दुनिया-भर में एड्स (AIDS) और एचआइवी (HIV) के मरीज़ों के साथ होने वाले भेदभाव को रोका जा सके।

इस कैम्पेन का उद्देश्य था दुनिया को एड्स और एचआइवी के मरीज़ों के प्रति संवेदनशील और जागरूक बनाना। इसी प्रेरणा लेते हुए मिशेल सिडिबे ने शून्य भेदभाव दिवस मनाने का विचार सबके सामने रखा, जो उस समय यूएनएड्स के निदेशक थे। समानता के इसी विचार के साथ शून्य भेदभाव दिवस की शुरुआत हुई और विश्व में पहली बार 1 मार्च 2014 को शून्य भेदभाव दिवस मनाया गया। आज 2024 में इस दिन को मनाते हुए पूरे 10 साल हो चुके हैं।

कब है शून्य भेदभाव दिवस? (Kab hai Shunya Bhedbhav Divas?)

जैसा कि हमने ऊपर बताया कि शून्य भेदभाव दिवस को मनाने का सिलसिला मार्च 1 2014 से शुरू हो गया था। हर साल 1 मार्च को विशभर में शून्य भेदभाव दिवस मनाया जाता है। 2024 में इसकी 10वीं वर्षगांठ है।

एड्स और शून्य भेदभाव दिवस में समानता (AIDS aur Shunya Bhedbhav Divas mein samanata)

एड्स से पीड़ित व्यक्तियों के साथ जैसा बर्ताव किया जाता है, उससे तो हम सब ही वाकिफ हैं, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है और उन्हें घृणा भरी नज़रों से देखा जाता है। ऐसा करने से उन्हें खुद पर शर्मिंदगी महसूस होती है और अपने ही समाज में रहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। उनकी इसी पीड़ा और दर्द को देखते हुए शून्य भेदभाव कैम्पेन मनाया गया था। इसी से प्रेरणा लेकर विश्व में हो रहे किसी भी भेदभाव के खिलाफ शून्य भेदभाव दिवस मनाया जाने लगा। विश्वभर में कई आधारों पर भेदभाव किया जा रहा है, जिसके खिलाफ ज़ीरो डिसक्रीमिनेशन डे एक मुहिम है। यह दिन व्यक्तियों के बीच फैले इन्हीं भेदभावों के खिलाफ आवाज़ उठाता है और सबसे आपस में मिल-जुल कर रहने को कहता है।

समाज के भेदभाव को कैसे मिटाया जा सकता है? (Samaj ke Bhedbhav ko kaise mitaya ja sakta hai?)

भेदभाव को रोकने और दुनिया को भेदभाव से छूटकारा दिलवाने के लिए, सबसे पहले यहां रहने वाले हर व्यक्ति को दिल से स्वीकार किया जाना चाहिए। हमें सबसे पहले अपने अंदर बदलाव लाने की ज़रूरत है कि हम किसी भी व्यक्ति के रहने के तरीके और उसके काम से नफरत न करें।

हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि दुनिया में हर इंसान अपने हिसाब से अपने तौर-तरीकों के साथ जीने के लिए स्वतंत्र हैं।

कुछ चीज़ें हैं जो इंसान को भगवान ने दी हैं, उसके आधार पर भी हम किसी से घृणा नहीं कर सकते। किसी का रंग, कद, परिवार, जन्म लेने की जगह, बीमारी वो खुद नहीं चुनता, फिर हम कौन होते हैं इनके आधार पर किसी को नीचा समझने वाले। हम सभी को खुद को ये याद दिलाना होगा कि अगर व्यक्ति हमसे अलग है तो बस अलग है, गलत या हमसे छोटा नहीं है।

शिक्षा का महत्व बहुत बड़ा है। शिक्षा भेदभाव के खिलाफ लड़ने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है। लोगों को भेदभाव के जोखिमों के बारे में बताने से और विभिन्नताओं का सम्मान करना कितना ज़रूरी है, ये सिखाने से, हम एक ऐसे समाज का निर्माण में मदद कर सकते हैं जो ज़्यादा खुला और स्वीकार करने योग्य होगा। यह स्कूल के कार्यक्रमों, जन-जागरूकता अभियानों और अन्य एक्टिविटी के माध्यम से किया जा सकता है। यह कदम लोगों को एक-दूसरे को समझने और सम्मान करने में मदद करेगा।

हम भेदभावों को मिटाने के लिए ऐसे कानून और नीतियों का सहारा ले सकते हैं, जो लोगों को अकेले होने से बचाते हैं और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में ज़रूरी कदम हैं। इसमें भेदभाव के खिलाफ कानून शामिल हैं, जो लोगों को उनकी जाति या लिंग जैसी चीज़ों के कारण उनसे अलग तरह से व्यवहार करने को अवैध बनाता है।

इस तरह के कानून यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए आज़ाद हैं। लेकिन, कानून और नीतियां अपने आप में भेदभाव को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। लोगों के लिए यह भी ज़रूरी है कि वे अपने खुद के कामों की ज़िम्मेदारी लें और दुनिया को अधिक स्वीकार्य और खुला बनाने की दिशा में काम करें‌। सभी को सम्मान भरी नज़रों से देखें और किसी को भी भेदभाव और घृणा का शिकार न बनाएं ताकि सभी लोग इस दुनिया में मिल-जुलकर शांत और सुखी जीवन जी सकें।

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