बालिका दिवस: समाज की ज़ंजीरों को कैसे तोड़ रहीं हैं बालिकाएं

बालिका दिवस: समाज की ज़ंजीरों को कैसे तोड़ रहीं हैं बालिकाएं?

जैसा कि हम जानते हैं, हमारा देश पुरुष-प्रधान है, जिसकी वजह से बालिकाओं और महिलाओं को बहुत से शोषण और घरेलू हिंसा से गुज़रना पड़ता था। यहां तक कि शिक्षा पर भी सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार था।

हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां के दो पहलू हैं। पहला शिक्षित और दूसरा अशिक्षित रूढ़िवादी समाज। इन दोनों वर्गों का इतिहास देखें, तो बालिकाओं और महिलाओं की ज़िंदगी में ज़्यादा अंतर नहीं है। लड़कियों को दोनों ही वर्गों में अपने मन का करने की इजाज़त नहीं थी। बेटियों को घर की दहलीज लांघने के लिए सबकी रजामंदी और सुरक्षा की ज़रूरत होती थी। लैंगिक असमानता और भ्रूण आत्मा तो जैसे आम बात थी। अपने विचारों को खुल कर कह पाना एक नारी के लिए मुश्किल काम था। उन्हें घर के मामलों में बोलने की आज़ादी नहीं थी, क्योंकि ये सब तो घर के मुखिया पुरूषों का काम था। जैसा कि हम जानते हैं, हमारा देश पुरुष-प्रधान है, जिसकी वजह से बालिकाओं और महिलाओं को बहुत से शोषण और घरेलू हिंसा से गुज़रना पड़ता था। यहां तक कि शिक्षा पर भी सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार था।

फिर धीरे-धीरे देश ने तरक्की की और शिक्षित वर्ग की महिलाओं ने खुद के अधिकारों को पाने के लिए जंग छेड़ दी और बहुत हद तक वो इस लड़ाई में कामयाब भी रहीं। इसी का नतीजा है जो हम आज की बेटियों को उनके सपने पूरे करते हुए देख पा रहे हैं। हालांकि, दूसरा वर्ग और वहां की बालिकाएं आज भी उन्हीं कुरीतियों से गुज़र रही हैं। हालांकि, वहां भी बहुत-सी बालिकाएं अपने अधिकार पाने और समाज की सोच बदलने में कामयाब रही हैं। 

आज देश की तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है। पुरानी और रूढ़ीवादी सोच को पीछे छोड़ कर बालिकाएं भी खुले आसमान में अपने पंख फैला रही हैं। देश तरक्की के शिखर पर है और इस तरक्की में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं का भी बराबर का योगदान है। देश की अर्थव्यवस्था संभालना हो, या चांद पर चंद्रयान पहुंचाना हो, हर क्षेत्र में बालिकाएं अपने जज़्बे का परचम लहरा रही हैं। उन्हें पुरूष के पीछे चलने की ज़रूरत नहीं रही, अब वो उनके कदम से कदम मिलाकर चलना सीख गई हैं। बालिकाओं ने अपने पैर में बंधी पुरानी सोच और समाज की कुरीतियों को पछाड़ दिया है। वो खुले आसमां में अपने हौसलों की उड़ान भर रही हैं। ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है, कि बालिकाएं सभ्य और पढ़ें-लिखे समाज की नींव रखने में काफी हद तक सफल हो रही है।

राष्ट्रीय बालिका दिवस 2024 कब है? (Rashtriya balika divas 2024 kab hai?)

राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day) भारत में हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लड़कियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। जिसकी शुरुआत भारत सरकार ने साल 2008 में की थी। आइए जानते हैं इसके मनाए जाने का कारण।

बालिका दिवस क्यों मनाया जाता है? (Balika Divas kyon manaya jata hai?)

24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। वो भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। इसीलिए 24 जनवरी को भारत में नारी शक्ति के दिन के रूप में मनाया जाता है। इंदिरा गांधी पहली महिला प्रधानमंत्री बनकर देश की हर महिला के लिए मिसाल बनी, उन्होंने अपने मजबूत इरादों से ये कर के दिखाया कि, अगर एक स्त्री कुछ बनने का ठान ले तो फिर वो देश भी चला सकती है। उनके इसी जज़्बे को भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 2008 में महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से की गई थी, क्योंकि भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा था कि एक महिला देश की प्रधानमंत्री बन गई थी, जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव था।

क्यों है बालिका दिवस की ज़रूरत? (Kyun hai Balika Divas ki zarurat?)

हमारे देश में बालिकाओं को देवी का अवतार समझा जाता है और इसी रूप में उनको पूजा जाता है। लेकिन, जहां लड़कियां देवी का रूप समझी जाती हैं, वहीं उनके साथ शारीरिक और मानसिक शोषण होता है, घरेलू हिंसा होती है और उन्हें लैंगिक असमानता का सामना भी करना पड़ता है।देश ने भले ही तरक्की कर ली हो, बालिकाओं को समान अधिकार मिलने लगे हो, पर अब भी बहुत-सी ऐसी बालिकाएं हैं जो आज भी अपने हक के लिए, कभी समाज तो कभी अपने परिवार से ही एक ऐसी जंग लड़ रही हैं जिसमें सफल हो पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि देश की आज़ादी के इतने सालों बाद भी कुछ लोग अब भी अपनी सोच को आज़ाद नहीं कर पाए हैं। जिसकी सज़ा उन बेचारी बच्चियों को हर रोज़ भुगतनी पड़ती है। 

हमें उन बच्चियों को भी बाकी अन्य बच्चियों की तरह उनके अधिकारों के लिए लड़ना सिखाना होगा। समाज को भी यह समझना होगा कि इस दुनिया में बच्चियों और महिलाओं को भी खुलकर जीने का हक है, उन्हें भी अपने सपनों को पूरा करने का पूरा हक है। वो देश का भविष्य हैं। अगर आज उन्हें उनके हक दिये जाएंगे तब जाकर कल को वे एक शिक्षित और सफल परिवार की नींव रखने में कामयाब होंगी। समाज और देश भर में बच्चियों के अधिकारों और समानता के महत्व को समझाने के लिए सरकार ने बालिका दिवस की शुरुआत की ताकि सामान्य नागरिक बालिका दिवस की ज़रूरत को समझ सकें और अपने घर की बेटियों को उनके अधिकारों को पाने से न रोकें। साथ ही बच्चियां भी बालिका दिवस के रूप में अपने अधिकार और समानता से जीने की आज़ादी को समझ सकें।

आर्टिकल पर अपना फीडबैक हमें कमेंट में देना न भूलें। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।