अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस: बालिकाओं के लिए कितनी बेहतर हुई है दुनिया

आज दुनिया के बहुत से क्षेत्रों में महिलाएं अपना हुनर दिखा रही हैं। वो पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर अपने काम कर रही हैं। उन्होंने साबित किया है कि वो भी सामान्य अधिकारों की हकदार हैं और किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं।

आज हमें ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का स्लोगन लगभग हर रिक्शा और ट्रक के पीछे लिखा हुआ मिल जाता है। पर क्या हमने कभी सोचा है कि हमें इसकी क्या ज़रूरत है? हमें क्यों बार-बार लोगों को बताना पड़ता है कि लड़कियां भी हर चीज़ की उतनी ही हकदार हैं जितना कि लड़के हैं।

दुख की बात तो ये है कि सिर्फ लोग ही नहीं खुद लड़कियां भी अपने अधिकारों से अनजान हैं। एक ज़माना था जब समाज में लड़कियों को न तो पढ़ने की आज़ादी थी और ना अपनी मर्ज़ी से कपड़े पहनने की आज़ादी थी। और तो और वो अपनी पसंद से कुछ खा-पी, हंस-बोल भी नहीं सकती थीं। फिर धीरे-धीरे समाज ने तरक्की की, सोच विकसित किया और कुछ जागरूक लोगों ने अन्य लोगों को जागरूक किया और लड़कियों को पुरानी सोच से आज़ाद करवाया।

आज दुनिया के बहुत से क्षेत्रों में महिलाएं अपना हुनर दिखा रही हैं। वो पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर अपने काम कर रही हैं। उन्होंने साबित किया है कि वो भी सामान्य अधिकारों की हकदार हैं और किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। हालांकि, अब भी ऐसी बहुत-सी बालिकाएं हैं जो आज भी अपने अधिकारों से अनजान हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में हम उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर सकते हैं।

हमें अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस की ज़रूरत क्यों है? (Hmein antarrashtriye balika divas ki zarurat kyon hai?)

आज भले ही महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर लिया हो। चाहे दुनिया ने माना हो कि महिलाएं पुरुषों से अधिक प्रभावशाली होती हैं। चाहे उन्होंने चांद पर चंद्रयान पहुंचवाया हो या वो खुद ऐवरेस्ट पर चढ़ गई हों, पर कुछ परेशानियों का उन्हें हमेशा से सामना करना पड़ा है। महिलाओं का पुरूषों की बराबरी तक पहुंच जाना समाज का एक हिस्सा है और दूसरा हिस्सा पहले वाले से बिल्कुल अलग है।

समाज के दूसरे हिस्से में महिलाएं और बच्चियां आज भी समाज की कुरीतियां झेल रही हैं। वो आज भी अपने घरों में, अपने ही परिवार से अपने मौलिक अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। आज भी बहुत-सी जगहों पर बच्चियों को लैंगिक-भेद का सामना करना पड़ता है। रेप और दहेज प्रताड़ना, बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब भी कायम है। इससे भी बुरा है कि इन अपराधों के खिलाफ अपील भी काफी कम की जाती है।

ऐसे में हमें बालिका दिवस की बहुत ज़रूरत है ताकि बचपन से ही लड़कियों को भविष्य में आने वाली परेशानियों का सामना करना सिखाया जा सके। उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है। उनकी सुरक्षा के लिए बने कानून के बारे में, उन्हें पता होना चाहिए ताकि वो अपने लिए खुद आवाज़ उठाने के लायक बन जाएं। साथ ही बालिका दिवस के दिन अलग-अलग जागरूकता अभियान चलाकर समाज के लोगों को भी बालिकाओं के महत्व के बारे में समझाया जाता है।

गर्ल चाइल्ड डे का इतिहास (History behind Girld Child Day)

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस या गर्ल चाइल्ड डे मनाने की शुरुआत एक गैर सरकारी संगठन ‘प्लान इंटरनेशनल प्रोजेक्ट’ के रूप में हुई। इस संगठन ने ‘क्योंकि मैं एक लड़की हूं’ नाम के कैंपेन की शुरुआत की। इसके बाद इस अभियान को कनाडा सरकार के पास ले जाया गया ताकि इस मुहिम को हर तरफ फैलाया जा सके। इसके बाद कनाडा सरकार ने 55वें आम सभा में इसका प्रस्ताव रखा, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 19 सितंबर को स्वीकार कर लिया और 8 अक्टूबर की तारीख को बालिका दिवस के लिए चुना गया।

छोटी बच्चियों को बचपन में ही लैंगिक भेद-भाव का सामना करना पड़ता है। समाज में महिलाओं को अलग-अलग रूप में हिंसा का शिकार होना पड़ता है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य बच्चियों को उनकी सुरक्षा और अधिकारों के बारे में बताना है और समाज को उनके महत्व के बारे में समझाना है।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस कब मनाया जाता है? (International Girl Child Day kab manaya jata hai?)

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 2012 में हुई। इसे मनाने का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और उनके अधिकारों को उन तक पहुंचाना है।

इस बार विश्व बालिका दिवस पर आप भी अपने आस-पास के लोगों को बालिकाओं के लिए आवाज़ उठाने और उनके लिए सही सोच रखने के लिए जागरूक कर सकते हैं। ज़ाहिर-सी बात है बीते कुछ सालों में बालिकाओं के लिए ये दुनिया काफी बदली है, लेकिन अब भी कई बदलाव की उम्मीद है।

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