कहानी सुनाना

दिलों को जोड़ती हैं कहानियां

कथाकार एवं द इंटरनेशनल अकादमी ऑफ स्टोरीटेलर की संस्थापक गीता रामानुजम ने वार्तालाप के दौरान सोशल मीडिया के इस आधुनिक युग में भी कथाकारिता की प्रासंगिकता को स्पष्ट किया।

स्टोरी टेलिंग भी उतनी ही प्राचीन है, जितनी कि मानव सभ्यता। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। मानव जाति के इतिहास में स्टोरी टेलिंग कब से शुरू हुई यह शायद ही कभी पता चल सके। लेकिन इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि जैसे ही मानव ने आपसी संवाद का जरिया खोज लिया, वैसे ही कहानी कहने और कहानी सुनने की कला का भी जन्म हो गया। ये कहानियां प्रतीकों, चिह्नों या शब्दों के जरिए कही जाती थीं। लोग अपने लोगों के साथ ये कहानियां साझा करते थे। ये परिकथाएं, दंतकथाएं, पौराणिक कथाएं, रहस्य कथाएं, वीरों व युद्धों की कहानियां और साहस कथाएं हुआ करती थीं।

समय के साथ ये कहानियां हमारी संस्कृति और समाज (Hamari sanskriti aur samaj) का एक महत्वपूर्ण अंग बन गईं। ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आती गईं। बदलते परिदृश्य के साथ कहानी सुनाने की शैली भी बदलती गई। इन कहानियों के जरिए ज्ञान और अनुभवों को साझा किया जाता था। कुछ कथाएं प्रेरक होती थीं, कुछ कल्पना लोक में पहुंचाकर अजनबी दुनिया में ले जाती थीं। हजारों वर्षों के बाद भी कहानियों का वही तिलस्म और चमत्कार आज भी कायम है। इस प्राचीन परंपरा को जानने के लिए ‘सोलवेदा’ ने कथाकार और बेंगलुरु स्थित कथालय ट्रस्ट तथा द इंटरनेशनल अकादमी ऑफ स्टोरी टेलिंग की संस्थापक गीता रामानुजम से बातचीत की। उन्होंने आज के सोशल मीडिया के समय में स्टोरी टेलिंग की प्रासंगिकता और भारत में स्टोरी टेलिंग के पुनर्जीवन के उनके प्रयासों की जानकारी दी। प्रस्तुत है इस वार्तालाप के अंश:

बचपन में कहानियों की बड़ी भूमिका होती है। क्या आप मानती हैं कि जो कहानियां सुनतेसुनते हम बड़े होते हैं, उन्हीं के अनुरूप हम ढलते जाते हैं?

हर कथावाचक (कहानी सुनाने वाला) के अपने श्रोता होते हैं। इसलिए वह अपने श्रोताओं से कहता है ‘‘मेरी कहानी के किरदार आप ही हैं। क्षणभर के लिए ही क्यों न हो, लेकिन कहानी के साथ मैं आपको ले चलता हूं। कहानी (Kahani) ऐसी भावुक है कि आप भी उस भावना में बह जाएंगे।’’ वैसे कहानी का मूल उद्देश्य ही चकित और आनंदित करना है। कहानियों के दौरान हममें आत्मिक भाव जाग्रत होते हैं। यह एक ऐसा जश्न होता है, जो फौरन आपको चमत्कृत कर देता है।

जब हम अपनी माता की कोख में होते हैं, तब से ही निरंतर कुछ न कुछ सुनते रहते हैं। इसी से हमारा व्यक्तित्व बनता है। सुनना और बोलना इसी का परिणाम है। मेरे बाल मन पर इसका बहुत प्रभाव रहा। 60 व 70 के दशक में आज की टेक्नोलॉजी की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

कहानियों से बच्चों के मन में कल्पनाओं का किस तरह सृजन होता है?

बच्चों को कहानी सुनाना (Story Telling) चाहिए। वे उसे पूरे ध्यान से सुनेंगे। बच्चों को झींगुर, पत्थर, फूल को स्पर्श करने दीजिए या सूरज की किरण का अनुभव करने दीजिए, तो आप पाएंगे कि बच्चों और उनके आसपास के माहौल के बीच एक तरह का जुड़ाव है। उन्हें पौधे देखने दीजिए, स्पर्श करने दीजिए, गंध लेने दीजिए, उसका स्वाद चखने दीजिए, उसके अंगों का अध्ययन करने दीजिए और देखिए कि वे किस तरह काम करते हैं। यदि स्टोरी टेलिंग प्रभावी हो, तो बच्चे कहानी को पूरी तरह से ग्रहण करते हैं और कहानी को दोबारा बता भी देते हैं।

स्टोरी टेलिंग में भाषा की भूमिका को आप किस तरह देखती हैं?

हर कहानी शिक्षा का माध्यम (Kahani shiksha ka madhyam) होती है। वह आप में जिज्ञासा जगाती है और भविष्य में छलांग लगाने के लिए किसी स्प्रिंगबोर्ड की तरह काम करती है। बच्चे ही नहीं वयस्क भी इससे अछूते नहीं रह पाते। यही कारण है कि कहानी के हर शब्द और स्वर को हम पकड़ लेते हैं। बोलते हुए शब्दों का स्वाभाविक रूप से श्रोताओं पर असर होता है। जब हम कोई अच्छी कहानी सुनते हैं, तो उसके शब्द हमारे मन में अपनी गहरी जगह बना लेते हैं और हमारा शब्द भंडार बढ़ाते हैं। इतना ही नहीं, वाक्यों के स्वरूप, संभाषण शैली और कला को भी हम कहानी के द्वारा जान लेते हैं।

कहानियां युगों, पृष्ठभूमियों और संस्कृतियों से भी परे होती हैं। कहानी सुनाने की कला से यह कैसे संभव हो पाता है?

कहानियां इस तरह रची होती हैं कि आदमी बैठ जाए और सुने। कहानियां हमारी जिज्ञासा को बढ़ाती हैं। अनुभवी कथाकार अपनी आवाज, हाव-भाव, ठहराव और शब्दों के सही उतार-चढ़ाव से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है- फिर चाहे श्रोता छोटा हो या बड़ा, सांस्कृतिक रूप से भिन्न हो या भिन्न पृष्ठभूमि वाले हो। यही रहस्य है कथाकथन का। कहानी सुनाना एक कला है।

टेक्नोलॉजी के इस युग में कहानी सुनाना प्रासंगिक है क्या?

आज दुनिया ऐसी हो गई है कि कोई अब किसी से नहीं बोलता, ना किसी की बात सुनता है। क्योंकि हर कोई अपनी स्क्रिन से चिपका रहता है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो, बच्चे हों या वृद्ध हर कोई चाहता है कि दूसरे लोग उसकी बात सुनें और वे दूसरों की बात सुनें। कहानी सुनाना इसी आवश्यकता की पूर्ति बिल्कुल सहज ढंग से मानवी संपकों के जरिए करता है।

भारत में कहानी सुनाने की परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए आप व्यक्तिगत तौर पर किस तरह से प्रयास करती हैं?

स्वाधीनता के पूर्व कहानी सुनाना आम बात थी, लेकिन बाद में परिवार छोटे होते चले गए और लोग भी अच्छे भविष्य के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे। 1980 के दशक के दौरान मैं शिक्षक थी। मैंने पाया कि बच्चों में किसी संकल्पना को कायम करने के लिए कहानी सुनाना प्रभावी साधन है। बाद में वर्ष 1996 में मैंने अपने पहले कथाकथन कार्यक्रम की शुरुआत की। इस दौरान मैंने पाया कि बच्चे इन कहानियों और लोककथाओं से न केवल अनजान हैं, बल्कि बोलने और सुनने की शिष्टता और कौशल भी नहीं जानते। इससे मैं जान गई कि बोलने-सुनने की इन खाइयों को पाटने के लिए कहानी सुनाना बेहतर साधन हो सकता है। मैंने इस प्राचीन कला को आधुनिकता से जोड़ने की कोशिश की और इस तरह स्टोरी टेलिंग ने फिर से जड़ें जमानी शुरू कर दीं।

आपने कहा है कि आप स्टोरी टेलिंग के जरिए समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहती हैं। आप किस तरह के बदलाव लाना चाहती हैं?

हम तो आपसी संवाद के जरिए पारिवारिक पुनर्मिलन, लोगों के बीच आपस में संपर्क, मूल्यों और सामान्य नैतिकता को फिर से कायम करना चाहते हैं। कहानी सुनाना ऐसा सकारात्मक रास्ता है, जिससे जीवन चक्र को फिर से पटरी पर लाने में लोगों की मदद की जा सकती है। इससे आभासी दुनिया में खोए लोगों को फिर से वास्तविक दुनिया में लाया जा सकता है। नतीजतन, हम डेटा के इर्द-गिर्द भटकना बंद कर देंगे और अपने जीवन को समग्रता से जीना शुरू कर देंगे।

  • गीता रामानुजम एक कुशल कथाकार हैं। 37 वर्षों से वे कथाकथन की दुनिया में हैं तथा दुनियाभर में लगभग 85,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। उन्होंने कहानी कहने के क्षेत्र में निरंतर नए प्रयोग करके भारत में कहानी कहने की विरासत को पुनर्जीवित किया है। अशोका फेलोशिप, इंटरनैशनल स्टोरीटेलर अवार्ड तथा बेंगलोर हीरो अवार्ड के साथ कई पुरस्कार जीत चुकी गीता नए-नए तरीकों को अपनाकर जिज्ञासुओं को कल्पनालोक में ले जाती हैं।
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