आयुर्वेद: औषधियों से इलाज करने का है वरदान

21वीं सदी में आयुर्वेद एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में लोगों के बीच काफी प्रचलित है। वर्तमान समय में आयुर्वेद की प्रासंगिकता के बारे में और अधिक जानने के लिए सोलवेदा ने केरल के जाने-माने आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ गणेश नारायणन से खास बातचीत की।

हम लोग एक ऐसे दौर में रह रहे हैं, जो अपने आप में विरोधाभासी है। हमारी उत्पत्ति प्रकृति के बीच हुई है। बावजूद इसके हम कंक्रीट के जंगलों में अपना जीवन जी रहे हैं। प्रकृति ने हम लोगों को खाने के लिए कई स्वस्थ चीजें दी है, तब पर भी हमारा जी ऐसे खाने की तरफ ललचाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। तकनीक के दौर में आज भले ही नई-नई टेक्नोलॉजी हम लोगों को जोड़ने में मदद करती है। बावजूद इसके इससे हमारे भावनात्मक रिश्तों को इतनी मजबूती नहीं मिल पाती है और लोग एक-दूसरे से कटे-कटे रहते हैं। हम भारतीयों के पास एक समृद्ध संस्कृति, विरासत और धर्म है, जिस पर चिंतन कर सकते हैं। तब पर भी हम आध्यात्मिक रूप से खोखले हैं। अलग-अलग टैक्स और सामाजिक सुरक्षा शुल्क देने के बाद भी हमारे पास खर्च करने के लिए पर्याप्त मात्रा में धन है, फिर भी इंसानियत के मामले में हम निर्धन हैं। हमारे एक इशारे पर सब कुछ उपलब्ध है। इतना होने के बाद भी हम संतुलित जीवन जीने से वंचित रह जाते हैं। ऐसा विरोधाभास हम लोगों को एक संतुलित जीवन जीने से रोकता है। ज्यों-ज्यों लोग अधिक पढ़े-लिखे हो जाते हैं और एक बेहतरीन जीवन जीने के लिए पहले से ज्यादा मेहनत व लंबे समय तक काम करने लगते हैं, ज्यादा पैसे कमाने लगते हैं, तब उनके तनाव का स्तर भी बढ़ना शुरू हो जाता है। लोगों की जीवनशैली बिगड़ जाती है और उनके जीवन से शांति और सुकून कोसों दूर कहीं गुम हो जाता है।

इतना होने के बाद तब लोग एक बार फिर से संतुलित जीवन जीने के तौर-तरीकों की पड़ताल करना शुरू कर देते हैं। आयुर्वेद, जो दो शब्दों आयु: (जीवन) और वेद (विज्ञान या ज्ञान) से बना है। आयुर्वेद को सामान्य तौर पर जीवन का विज्ञान कहा जाता है। आयुर्वेद (Ayurveda) का उद्देश्य प्राकृतिक उपचारों और जीवनशैली में बदलाव के जरिए मन, शरीर, आत्मा और पर्यावरण के बीच संतुलन बरकरार रखना है। एक-दूसरे से इस तरह का सार्वव्यापी जुड़ाव हमें एक तनावमुक्त और स्वस्थ जीवन जीने में काफी सहायता कर सकता है।

21वीं सदी में आयुर्वेद एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में लोगों के बीच प्रचलित है। वर्तमान में आयुर्वेद की प्रासंगिकता के बारे में और अधिक जानने के लिए सोलवेदा ने केरल के जाने-माने आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ गणेश नारायणन से खास बातचीत की है। उनसे हुई बातचीत ने हम लोगों को सेहत के मायने को एक बार फिर नए ढंग से समझने के लिए प्रेरित किया है। इसके जरिए लंबे समय से चले आ रहे जीवन विज्ञान के आधारभूत दर्शन को समझने में काफी मदद मिली है। यही वजह है कि इस चिकित्सा पद्धति में बताए गए जीवनशैली के तौर-तरीकों का पालन करने से न सिर्फ पुरानी से पुरानी बीमारियों से बचा जा सकता है, बल्कि इन समस्याओं को दूर भी कर सकते हैं।

हाल में क्वांटम साइंस के क्षेत्र में हुई तरक्की ने साबित किया है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं। हम ब्रह्मांड का हिस्सा भर नहीं है, बल्कि इसका अभिन्न अंग हैं। आयुर्वेद भी इसी ब्रह्मांड की परिधि का हिस्सा है, क्या ऐसा नहीं है? इस विषय पर बताएं?

आयुर्वेद का दर्शन मुख्य रूप से पंच महाभूत यानि पंचतत्व पर आधारित है। इस सिद्धांत के मुताबिक, मानव शरीर ब्रह्मांड की तरह पंच तत्वों से मिलकर बना है, जिसमें आकाश (ईथर), वायु (वायु), अग्नि (अग्नि), जल (जल), और पृथ्वी (पृथ्वी) है। इस तरह ब्रह्मांड (मैक्रोकॉज्म) में जो भी बदलाव होते हैं, तो उसी तरह हम में से प्रत्येक (माइक्रोकॉज्म) में भी इसका असर देखने को मिलता है। आप कह सकते हैं कि मानव शरीर लगातार ब्रह्मांड के साथ जुड़ा रहता है। होमियोस्टैसिस की स्थिति हासिल करने के लिए हमारे मानव शरीर और ब्रह्मांड के बीच तत्वों के लेन-देन की प्रक्रिया जारी रहती है। जब तक मानव शरीर और ब्रह्मांड के बीच बेहतर और संतुलित तरीके से तत्वों का आदान-प्रदान होता है, तब तक शारीरिक और मानसिक तौर पर काफी स्वस्थ महसूस करते हैं। लेकिन, जब दोनों के बीच यह परस्पर सामंजस्य बिगड़ जाता है, तो बीमारियां होती हैं।

जिस तरह आयुर्वेद में माइक्रोकॉज्म ( सूक्ष्म ब्रह्मांड) और मैक्रोकॉज्म (अनंत सृष्टि) में जुड़ाव का जिक्र है, उसी तरह यह मानव शरीर और मन के बीच तालमेल की भी बखूबी बात करता है। इसपर क्या बताएं?

यह बिल्कुल सच बात है कि आयुर्वेद के मुताबिक, मानव शरीर और मन एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं। साफ-साफ शब्दों में कहें, तो आयुर्वेद इस बात को बखूबी मानता है कि हमारी मानसिक और भावनात्मक स्थिति हमारे फिजिकल हेल्थ (Physical Health) पर सीधा असर डालती है। अगर हमारा मन ही स्वस्थ नहीं रहेगा, तो इसके बगैर फिजिकल बॉडी को जिंदा रख पाना काफी मुश्किल है। तन और मन के बीच यह परस्पर संबंध, जिसे आयुर्वेद भी बखूबी दावा करता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में भी इसकी साफ झलक देखने को मिलती है। वो भी एक ऐसे दौर में जहां आम लोगों की ज़िंदगी में तनाव का बढ़ता स्तर और खराब मनोवैज्ञानिक सेहत मेटाबोलिक डिसऑर्डर और हृदय संबंधी रोगों को बढ़ाने में एक कारण के रूप में काम करते हैं। इसलिए अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको मानसिक रूप खुश और शांत रहने की ज़रूरत है।

हममें से काफी लोग आयुर्वेद को महज जड़ी-बूटी से होने वाले औषधीय उपचार पद्धति के रूप देखते हैं। आयुर्वेद दैनिक और मौसमी आहार से जुड़े नियमों के बारे में भी बताता है। तो क्या हम मान सकते हैं कि आयुर्वेद सिर्फ जड़ी-बूटियों से होने वाले उपचार पद्धति से कहीं अधिक है और यह एक जीवनशैली है?

आयुर्वेद एक तरह से जीवन विज्ञान है, जो प्रचलित कहावत ‘रोकथाम इलाज से बेहतर है’। अगर हम चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग समागम जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों का बारीकी से अवलोकन करते हैं, तो हम पाएंगे कि इसमें मानव शरीर की शारीरिक संरचना या अलग-अलग बीमारियों के बारे में जानकारी देने की बजाय इस बात पर फोकस है कि हम स्वस्थ जीवन कैसे जी सकते हैं? साथ ही इनमें स्वस्थ जीवन जीने के तौर-तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है। इस संहिताओं में बताया है कि सुबह में कितने बजे उठाना चाहिए और खुद को कैसे साफ-सुथरा रखना है। भोजन कैसे तैयार करें, जिससे हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हो। भोजन कैसे ग्रहण करना और पूरे दिन खुद का कैसे रख-रखाव करना है। इसका उल्लेख किया है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि सेहतमंद जीवन जीने के लिए क्या करें और क्या न करें, इस संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी है।

आयुर्वेद की महत्ता को समझने के लिए इतना काफी है कि आयुर्वेद में सदवृत का जिक्र है, जिसका वास्तविक अर्थ ‘आचार संहिता’ है। इसमें यह बताया है कि अपने रोज़मर्रा के जीवन में लोगों के साथ किस तरीके से सकारात्मक बातचीत करें, जिससे हम तनाव मुक्त और सुकूनपूर्ण जीवन जी सकें। आयुर्वेदिक ग्रंथों में दैनिक दिनचर्या में योग और ध्यान करने पर जोर दिया है। विभिन्न आसान और सांस पर नियंत्रण रखने वाले उपायों के ज़रिए योग हमारे मन-मस्तिष्क को नियंत्रित करने में सहायता करता है। ऐसे में यह कहना जायज है कि आयुर्वेद एक जीवनशैली है। यह एक ऐसी जीवन पद्धति है, जो हम लोगों को अंदर से सशक्त बनाने में मदद करती है। विभिन्न प्रकार से बीमारियों से लड़ने के लिए मज़बूती प्रदान कर सकती है।

कहा जाता है कि आयुर्वेद संपूर्ण स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने में मदद करता है। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के जीवन में एक दिन का जिक्र कर सकते हैं, जो आयुर्वेदिक जीवनशैली को अपनाता है और उसकी दिनचर्या कैसी होगी?

आजकल हमलोग भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी जी रहे हैं, जहां जीवन पूरी तरह मशीनीकृत हो गई। हर छोटी-सी-छोटी चीज़ के लिए मशीन या तकनीक पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है। इस मशीनी युग को ऑटोमेशन भी कहते हैं। ऑटोमेशन इतनी बुरी चीज़ नहीं है। इससे हमारे समय की बचत होती है। कम समय में अधिक से अधिक कामों को पूरा कर सकते हैं। ऑटोमेशन हमारी प्रोडक्टविटी बढ़ाने में भी मदद करता है। लेकिन, इसकी सबसे बड़ी खामी है कि मशीन से सारे काम करने के चलते हम और अधिक गतिहीन होते जा रहे हैं। लंबे समय से गतिहीन बने रहने का असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

यह ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमारा शरीर सिर्फ भोजन ग्रहण करने के लिए नहीं बना है, बल्कि यह भोजन के बाद शरीर में उत्पन्न एनर्जी का उपयोग करने के लिए भी बना है। जब हमारा शरीर गतिहीन हो जाता है, हम कोई काम नहीं करते हैं और हमारी जीवनशैली निष्क्रिय हो जाती है, तो हमारा मेटाबॉलिज्म गड़बड़ होने लगता है। वास्तव में निष्क्रिय जीवनशैली कई क्रॉनिक डिजीज का प्रमुख कारक भी है। ऐसे वक्त में एक अनुशासित आयुर्वेदिक जीवनशैली इन बीमारियों से हमें बचाने में मदद कर सकती है। आयुर्वेद रोज़मर्रा की गतिविधियों, जिसे सामान्य भाषा में दिनचर्या कहते हैं, को पालन करने पर बल देता है। अगर कोई व्यक्ति आयुर्वेदिक जीवनशैली का पालन करता है, तो वह कुछ इस तरह दिखता है:

वह व्यक्ति शांतचित माहौल में सुबह जल्दी जगता है। विशेषरूप से ब्रह्म मुहूर्त’ में, सुबह 3:30 बजे से सुबह 5 बजे। वह व्यक्ति थोड़ी देर एकांत में बिताता है और सबसे पहले अपने पुराने संकल्पों या प्रतिज्ञाओं को दोहराता है। सारे चीजों को पूरा करने के बाद वह दंतधावन करता है, जिस सामान्य भाषा में दांतों की सफाई और अंजना करता है। अंजना एक तरह से औषधीय तरीके से आंखों को धोने की एक क्रिया है।

ये सब करने के बाद वह अभ्यंग (आयुर्वेदिक मसाज) करता है। इसमें शरीर को गुनगुने तेल से मालिश की जाती है। आयुर्वेद के मुताबिक, प्रतिदिन सिर, कान और पैरों पर तेल ज़रूर लगाना चाहिए। इससे आंखों की रोशनी ठीक रहती है, पर्याप्त नींद आती है और तरोताज़ा महसूस कर सकते हैं। इसके बाद एक्सरसाइज करते हैं। हम सभी जानते हैं कि मेडिटेशन और योग स्वस्थ्य शरीर के लिए फायदेमंद हैं। यह साबित हो चुका है कि अगर हम रोजाना योग और मेडिटेशन करते हैं, तो हम न सिर्फ तन-मन से बिल्कुल स्वस्थ रहेंगे, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी हम मज़बूत बन सकते हैं।

एक्सरसाइज और अन्य क्रियाओं को करने के बाद वह स्नान या नहाना-धोना करता है। इसे आयुर्वेद में स्नाना कहते हैं। इससे हमारा पाचन तंत्र मज़बूत रहता है और लंबा जीवन जीने और जीने के उत्साह को कायम रख सकते हैं। इसके बाद वह नाश्ता करता है।

आर्वेदिक जीवनशैली का पालन करने वाले लोगों को रोजाना नाश्ता और दोपहर का खाना ज़रूर लेना चाहिए। आमतौर लोग 3 टाइम भोजन खाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, रात का खाना शाम 7 बजे से पहले करना चाहिए। इससे परिवार के साथ समय बिताने का पर्याप्त समय मिलता है। खाना पचने के लिए भी समय मिलेगा। इसके बाद वह रात 10 बजे सोने के लिए बेड पर चला जाता है।

इन नियमों का पालन करके कोई भी इंसान इस वृहद ब्रह्मांड में संतुलित जीवन जीने की उम्मीद रख सकता है। जितना अधिक हम अपने आसपास की दुनिया के साथ सामंजस्य बिठाने का प्रयास करेंगे, उतना ही अधिक हम बीमारियों पर अंकुश लगा सकते हैं। कभी-कभार तो शरीर में होने वाली पुरानी से पुरानी बीमारियों को भी ठीक कर सकते हैं।

बेहतर स्वास्थ्य के मायने महज बीमारियों के न होने से कहीं ज्यादा है। आपकी नज़र में आयुर्वेद के अनुसार बेहतर स्वास्थ्य क्या है?

साल 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि स्वास्थ्य, संपूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सुख की स्थिति है। यह सिर्फ बीमारी या किसी कमजोरी नहीं होने तक ही सीमित नहीं है। आयुर्वेद का भी कुछ ऐसा ही मानना है कि स्वास्थ्य सिर्फ स्वस्थ शरीर की अवस्था तक नहीं सीमित नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा की सेहत से भी जुड़ा है।
प्राचीन आयुर्वेदिक पाठ सुश्रुत संहिता में स्वास्थ्य की परिभाषा का उल्लेख कुछ इस तरह दिया है;

समदोषः समाग्निश्च समधातु मलःक्रियाः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थइतिअभिधीयते॥

इस श्लोक का साधारण अर्थ है, स्वास्थ्य 3 दोषों (जैविक ऊर्जा), अग्नि (पाचन रस), 7 धातुओं (ऊतकों का पर्याय) और मल (मल) की सामान्य स्थिति पर निर्भर है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक के तौर पर समग्र रूप से सुख-समृद्धि के लिए जीवन में इन सभी कारकों का शामिल होना बहुत ज़रूरी है। अच्छी बात है कि आयुर्वेद के चिकित्सकों द्वारा बताए गए जीवनशैली के नियमों का पालन करके इन सारे तत्वों को हासिल कर सकते हैं और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

  • डॉ गणेश नारायणन

    आयुर्वेदिक चिकित्सक

    डॉ गणेश नारायणन केरल के एक जाने-माने आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं। वे कई अस्पतालों और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं संस्था के साथ काम कर चुके हैं और आयुर्वेद में उनका अच्छा-खासा अनुभव है। वे क्लीनिकल रिसर्च और हॉलिस्टिक हेल्थ और प्रिवेंटिव मेडिसिन के क्षेत्र में काम करते हैं। फिलहाल, केरल के अर्शा आयुर्वेदिक अस्पताल में बतौर मैनेजिंग पार्टनर हैं।