सम्राट से श्रेष्ठ

सम्राट से श्रेष्ठ

चीन ने गॉड के विचार से अधिक, आत्माओं, ऋषियों और पूर्वजों की धारणा को महत्त्व दिया, जिन्हें देवता माना जाता था और जो जेड सम्राट के साथ जेड हेवन में रहते थे…

चीनी सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी और दिलचस्प सभ्यताओं में से एक है। हालाँकि वह भारतीय सभ्यता से बहुत अलग है, पाश्चात्य देश अक्सर दोनों सभ्यताओं को पूर्व की ‘अनोखी’ सभ्यताएँ मानते हैं। विडंबना यह है कि चीन भारत और पाश्चात्य देशों को भारत-यूरोपीय संस्कृतियों के रूप में एक जैसे मानता है, जो अत्यधिक अनुमान लगाती हैं, दर्शन से आसक्त हैं, और बहुत कम व्यवहारिक हैं। पुनर्जन्म में विश्वास भारत को पाश्चात्य देशों और चीन दोनों से अलग करता है। यह विश्वास हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्मों का आधारस्तंभ है। साथ ही, पाश्चात्य देशों और चीन दोनों के विपरीत, भारतीय धर्म भौतिक वस्तुओं से अधिक विचारों को महत्त्व देते हैं।

पुनर्जन्म का विचार बौद्ध धर्म के माध्यम से शेष पूर्वी एशिया में भले ही फैला हो, लेकिन वह पृष्ठभूमि में बना रहा, और कभी भी उतना केंद्रीय नहीं बना जितना कि वह भारतीय उपमहाद्वीप में था। इसलिए चीन के लोग पूर्वजों की पूजा, कब्रों का निर्माण और उनमें राख के कलशों के भंडार की अपनी पुरानी प्रथाएँ करते रहें। ये प्रथाएँ पुनर्जन्म पर आधारित संस्कृतियों में नहीं देखी जाती।

वर्तमान काल में, उदारचरित और आधुनिक पाश्चात्य देश अपने आप को धर्म विरोधी कहते हैं। लेकिन पाश्चात्य देश धर्म शब्द का उपयोग यहूदी-ईसाई-इस्लामी अर्थ लेकर करते हैं, जहाँ परमात्मा एक बाहरी हस्ती हैं। भारत और चीन में परमात्मा को इस प्रकार नहीं देखा गया।

भारत में, लोग परमात्मा को बाहरी हस्ती के साथ-साथ आंतरिक क्षमता दोनों मानते थे। जबकि सामान्य लोग परमात्मा को बाहरी हस्ती मानना पसंद करते हैं, बुद्धिमान जानते हैं कि यह सब आंतरिक क्षमता, भीतर के परमात्मा के बारे में है। बाहरी, सर्वशक्तिमान परमात्मा के विचार के बिना भी चीन एक महान संस्कृति बनी।

चीनवासियों में हेवन (तियान) और सम्राट-से-श्रेष्ठ (शांग-दी) की धारणा थी जो अनुशासन, नैतिकता और औचित्य के प्रतीक थे। लेकिन ये धारणा बाइबिल के क्रोधी नियम-प्रवर्तक गॉड से बहुत अलग थी। यह एक अमूर्त धारणा थी जिसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था कि धरती पर व्यवस्था और सद्भाव बने रहें। इस धारणा का धरती पर मानव निरूपण अधिक मायने रखता था: वे सम्राट, जिन्होंने अस्थिर चीनी भूमि में अनुशासन लाया।

चीनवासियों का हमेशा व्यवस्था के प्रति लगाव रहा है और वे अराजकता के विचार से डरें हैं। ‘ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना’ के निर्माण का उद्देश्य अराजकता को बाहर रखकर व्यवस्था को बनाए रखना था। जेड सम्राट द्वारा बनाए रखे गए स्वर्गीय अनुशासन को चक्र के रूप में कल्पित किया गया, जबकि बेजिंग के फ़ॉरबिडन सिटी में सम्राट द्वारा बनाए रखे गए लौकिक अनुशासन को वर्ग के रूप में कल्पित किया गया।

चीन के लंबे इतिहास में उसके सम्राटों और सरदारों ने भूमि पर अनुशासन लाने की कोशिश की। उन्होंने ये मुख्य रूप से दो तरीकों से किया – या तो तर्कसंगत कन्फ़्यूशियाई प्रक्रिया से, जिसमें अनुष्ठान, अनुशासन और नैतिक संहिताएँ शामिल थी, या अधिक रहस्यमय ताओवादी प्रक्रिया से, जिसमें भविष्यवाणी शामिल थी और कला, वास्तुकला, आहार, संगीत, आत्माओं का आवाहन, यहाँ तक ​​​​कि संभोग के उपयोग से ऊर्जा का सामंजस्यपूर्ण चलन शामिल था।

चीन ने गॉड के विचार से अधिक, आत्माओं, ऋषियों और पूर्वजों की धारणा को महत्त्व दिया, जिन्हें देवता माना जाता था और जो जेड सम्राट के साथ जेड हेवन में रहते थे, जिसमें सामंजस्य था। उन्होंने बारिश और पानी को नियंत्रित करने वाले ड्रैगन और विभिन्न प्रकार के परोपकारी और द्वेषपूर्ण प्राणियों को भी महत्त्व दिया जो स्थानीय लोककथाओं में पाए जाते हैं, और चीन के अलग भागों में अलग हैं।

भारत तक चीन का प्रभाव और चीन तक भारत का प्रभाव समुद्र के माध्यम से, केरल होते हुए और पहाड़ों के पार, बंगाल से होते हुए पहुँचा। बंगाल और केरल दोनों तांत्रिक प्रथाओं से निकटता से जुड़े हुए हैं। इन प्रथाओं को कभी चिनाचर अर्थात चीन का तरीका कहा जाता था। जबकि भारतीय सिद्धांत यह है कि मार्शल आर्ट भारत से चीन चले गए, चीनी सिद्धांत यह है कि जो तमिल व्यापारी तले हुए वड़े पसंद करते थे, उनके चीनी रसोइयों ने उबली हुई इडली भारत लाई।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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