निराश न हों

निराश न हों

आदमी को जब भी निराशा होती है, तो इसका कारण यह होता है कि वह केवल अपनी संभावनाओं को देखता है।

कुरआन में कहा गया है, “ऐ ईश्वर के बंदों! निराश न हों, क्‍योंकि ईश्वर की कृपा बहुत असीमित है।” आदमी को जब भी निराशा होती है, तो इसका कारण यह होता है कि वह केवल अपनी संभावनाओं को देखता है। अगर उसकी दृष्टि ईश्वरीय संभावनाओं पर हो, तो वह कभी निराश नहीं होगा।

इंसानी संभावनाओं की सीमा होती है, लेकिन ईश्वरीय संभावनाओं की कोई सीमा नहीं। इंसान अगर इस हकीकत को जान ले, तो वह कभी निराश न हो, क्योंकि जहां इंसान की प्रत्यक्ष सीमा आ गई है, ठीक उसी जगह पर वह एक और संभावना को प्राप्त कर लेगा, जिसकी न कोई सीमा है और न ही उसके लिए कोई रुकावट। हकीकत यह है कि ईश्वर पर विश्वास इंसान को उम्‍मीद का ऐसा ख़ज़ाना दे देता है कि इसके बाद वह निराश नहीं होता। वह कभी इस अहसास से दो-चार नहीं होता कि आगे उसके लिए कुछ और शेष नहीं रहा। एक संभावना की समाप्ति उसके लिए ज्यादा बड़ी संभावना की शुरुआत बन जाती है। ईश्वर पर विश्‍वास और निराशा, दोनों एक साथ एकत्र नहीं सकते।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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