मुश्ते बाद अज़ जंग

मुश्ते बाद अज़ जंग

दो पहलवानों के बीच कुश्ती हो, इनमें से एक दूसरे को पछाड़ कर उसके ऊपर बैठ जाए, इसके बाद हारा हुआ आदमी अपने हाथ से जीते हुए पहलवान को मारना चाहे, तो इसको "फ़ारसी भाषा" में "मुश्ते बाद अज़ जंग" कहा जाता है। इस प्रकार का काम सरासर मूर्खतापूर्ण है, किसी भी दर्जे में इसका कोई लाभ नहीं।

जब विवाद पैदा हो, तो इसके प्रारंभिक चरण में वह समय होता है, जबकि निर्णय आपके अधिकार में हो। यदि आपने किसी झूठे भ्रम में पड़कर इस समय को खो दिया, तो इसके बाद आपके लिए केवल यह है कि जो कुछ हो गया उसको धैर्य और सहनशीलता के साथ गवारा करलें। फैसले का समय गुज़र जाने के बाद जंग को जारी रखना केवल अपने नुकसान में वृध्दि करना है। इस प्रकार की कोशिश “मुश्ते बाद अज़ जंग” है। वह किसी भी दर्जे में किसी के लिए नया भविष्य पैदा करने का माध्यम नहीं बन सकती।

वर्तमान संसार में जो घटनाएं होती हैं, वह असंख्य प्रभावों (कर्मों) के तहत होती हैं। तरह-तरह के मालूम और ना मालूम असबाब (सामान) इकट्ठा होते हैं, इसके बाद ही यह संभव होता है कि किसी घटना का प्रकटीकरण हो सके। प्रकृति का यह कानून जिस प्रकार शेष दुनिया में आदेशक है, इसी प्रकार वह इंसानी जीवन में भी काम कर रहा है।

विवाद के प्रारंभिक चरण में निर्णय का अपने अधिकार में होना बहुत से कारणों की बिना पर होता है। विभिन्न कारणों व साधनों का इकट्ठा होना इसको यह अवसर देता है कि वह अपने पक्ष में एक मुफीद फैसला ले सके। लेकिन, यदि वह ठीक समय पर फैसला करने में असफल रहा, तो यह असबाब अति शीघ्र छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, यहां तक कि हालात का सिरा आदमी के हाथ से निकल जाता है। ऐसी स्थिति में सर्वोत्तम बुद्धिमानी यह है कि आदमी धैर्यवान शैली धारण करके आने वाले समय की प्रतीक्षा करे, जबकि दोबारा ऐसे असबाब (कारण-साधन) इकट्ठा हों जो इसे पुनः अपना वांछित निर्णय लेने का अवसर दे सकें।

निर्णय के समय चूक जाना यदि गलती है तो “मुश्ते बाद अज़ जंग” गलती पर दीवानगी की वृध्दि।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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