भगवान पुरुष हैं या स्त्री?

क्या भगवान पुरुष हैं या स्त्री?

कबीरपंथी लोग मानते हैं कि भगवान निर्गुण हैं और उनका कोई जेंडर नहीं होता। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम में भगवान को कोई रूप नहीं दिया जाता, लेकिन जब उनके बारे में व्यक्त किया जाता है तो अधिकतर पुलिंग ही इस्तेमाल होता है।

सगुणवादी लोगों का मानना है कि भगवान या तो पुरुष रूप में होते हैं या स्त्री रूप में। लेकिन, निर्गुणवादी लोगों के मुताबिक भगवान का कोई जेंडर नहीं होता। जो वेदांत, तंत्र और भक्ति में विश्वास करते हैं, वे लोग अधिकतर सगुणवादी होते हैं। जैसे मीराबाई (Mirabai) को भगवान श्रीकृष्ण के रूप में तो तुलसीदास जी को भगवान श्रीराम (Shree ram) के रूप में दिखाई देते थे। नवरात्र के समय जो जगराता करते हैं, उनके मुताबिक भगवान स्त्री रूपी होते हैं। किन्नर समुदाय के लोगों का विश्वास है कि भगवान अर्धनारीश्वर के रूप में पूजनीय हैं।

लेकिन, कबीरपंथी लोग मानते हैं कि भगवान निर्गुण हैं और उनका कोई जेंडर नहीं होता। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम में भगवान को कोई रूप नहीं दिया जाता, लेकिन जब उनके बारे में व्यक्त किया जाता है, तो अधिकतर पुलिंग ही इस्तेमाल होता है। कैथोलिक गिरिजाघरों में भगवान को एक वृद्ध पुरुष के रूप में ही दिखाया जाता है। मतलब न मानते हुए भी निर्गुण रूपी देवता को भी पुरुष रूप दिया गया है। इसके ऊपर बहुत वाद-विवाद हुआ है। लोगों का मानना है कि भगवान को पुरुष रूप देना पितृसत्तात्मक या पुरुष प्रधान समाज का लक्षण है।

कुछ लोगों का मानना है कि सैकड़ों साल पहले जब आदिमानव के रूप में हम जंगल में जी रहे थे, तब हम धरती की पूजा करते थे। तब हम धरती को स्त्री रूप में देखते थे (बल्कि कई लोग आज भी देखते हैं)। धरती ऐसी माता, जो हमें शरण देती, जहां से हमें अन्न प्राप्त होता है, जो हमारी प्यास बुझाती और जो हमें गर्मी और ठंड से बचाती। लेकिन, धीरे-धीरे जैसे लोग आकाश की ओर देखने लगे। देवता आकाश से आने लगे तो वे पुरुष रूप लेने लगे। आकाश के देवताओं को पुरुष रूप दिया गया और धरती के देवताओं को स्त्री रूप दिया गया।

वैदिक परंपरा में हम देखते हैं कि जिन देवताओं का आवाहन स्वर्ग लोक से होता है, उन्हें हमेशा पुरुष रूप दिया गया, जैसे इंद्र, सूर्य, चंद्र, ‘परंजय’, जो वर्षा के देवता हैं, वरुण और मित्र। धरती के ऊपर के देवताओं को भी पुरुष रूप दिया गया जैसे अग्नि और वायु। लेकिन धरती के नीचे से निकलने वाले देवताओं को स्त्री रूप दिया गया, उदाहरणार्थ पृथ्वी, सिंधु, गंगा, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियां, पानी और धन धान्य संपत्ति या लक्ष्मी या श्री। जिन ऋषियों ने यज्ञ को भी एक मुहावरे की तरह देखा, उन्होंने भी कहा कि यज्ञ वेदी स्त्री रूपी हैं और यज्ञ की आहुति पुरुष रूपी हैं और इन दोनों के मिलन से ही यज्ञ संपन्न होता है।

हम देखते हैं कि भारतवर्ष में जब पहाड़ों की पूजा हुई, तो उन्हें पुरुष रूप दिया गया उदाहरणार्थ हिमवन। गांव में ग्रामदेव होते हैं और ग्रामदेवियां होती हैं। ग्रामदेव अधिकतर रक्षण के लिए होते हैं और ग्रामदेवियां पोषण के लिए होती हैं। लेकिन कभी-कभार ग्रामदेवी दोनों रक्षण और पोषण का रूप लेती हैं, इसलिए उनके हाथों में हथियार होते हैं। जो रक्षण के लिए है और एक कलश भी होता है जो पोषण के लिए है।

बुद्ध धर्म में अधिकतर देवी देवता दुख के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं कि हमारी इच्छाएं स्त्री रूप लेती हैं और इसलिए इच्छाओं से दूर रहने का मतलब है स्त्री रूप से दूर रहना। लेकिन, बौद्ध धर्मियों ने यह जाना कि जीवन में रहने के लिए पुरुष और स्त्री दोनों आवश्यक हैं। इसलिए विहारों में बुद्ध की मूर्ति की बजाय मिथुन मूर्ति भी होती है जहां पर पुरुष और स्त्री बुद्ध की मूर्ति के दोनों बाजू खड़े होते हैं।

जो नाथ परंपरा के लोग थे, जो समाधि प्रिय या सिद्ध प्रिय थे और जो इस संसार से मोक्ष प्राप्त करना चाहते थे, ऐसे तपस्वी ऋषि स्त्रियों से दूर रहते थे। यहां से ब्रह्मचर्य और संन्यास को बढ़ावा मिला। लेकिन, गृहस्थ जीवन के लोग भोग प्रिय थे और उन्होंने स्त्री को पुरुषों की तरह समान दर्जा दिया। इसलिए जब तक यजमान के बगल में उसकी स्त्री खड़ी नहीं होती, कोई भी यज्ञ संपन्न नहीं होता। मंदिरों में भी हम देखते हैं कि शिव की पूजा गौरी के साथ ही होती है और विष्णु की पूजा लक्ष्मी के साथ होती है।

कहते हैं कि अय्यप्पा ब्रह्मचारी हैं, इसलिए स्त्रियों को अय्यप्पा मंदिर में आना वर्जित है। लेकिन, समय के बदलाव के साथ इन विश्वासों को तोड़ा जा रहा हैं क्योंकि ब्रह्मचारी का ब्रह्मचर्य अपने तप से होता है, ना कि सामने स्त्री के खड़े होने से। व्रत को तोड़ने की ज़िम्मेदारी हमारी क्षमता है, ना कि सामने खड़ी हुई कोई आकर्षक वस्तु।

(ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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