महज डिग्रियां हासिल करना ही काफी नहीं

महज डिग्रियां हासिल करना ही काफी नहीं…

देशभर में हजारों प्रबंधन संस्थान खुलने के साथ ही मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले युवाओं की तादात भी लगातार बढ़ रही है, लेकिन ऐसे योग्य मैनेजमेंट गुरु और विचारकों की संख्या काफी कम है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकें।

रिटेल सेक्टर की एक बड़ी कंपनी में बतौर एचआर हेड रहे एक मित्र ने एक बार मुझसे कहा था कि आजकल हमारे पास आ रहे नए छात्रों की गुणवत्ता को देखकर काफी निराशा होती है।’

मुझ जैसे इंसान के लिए, जो मैनेजमेंट के छात्र की क्षमता को बखूबी बेहतर ढंग से समझता है, यह सुनकर काफी आश्चर्यजनक लगा। मगर, आगे की बातचीत सुनने के बाद मुझे भी खुद अपने मित्र की बात पर सहमति जतानी पड़ी।

बिजनेस स्कूलों से अधिकांश छात्र एमबीए की डिग्री लेकर निकलते हैं, लेकिन उनमें से शायद ही किसी के पास कॉर्पोरेट जगत का कोई व्यावहारिक ज्ञान होता है।

चाणक्य ने कहा था, “भले ही कोई विज्ञान विषय का बड़े-से बड़ा ज्ञाता क्यों न हो, लेकिन अगर उसके पास प्रैक्टिकल का अनुभव नहीं है, तो किसी उपक्रम को संचालित करने में उसे काफी परेशानी झेलनी पड़ेगी।”

देशभर में हजारों प्रबंधन संस्थान खुलने के साथ ही मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले युवाओं की तादात भी लगातार बढ़ रही है, लेकिन ऐसे योग्य मैनेजमेंट गुरु और विचारकों की संख्या काफी कम है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकें। प्रबंधन का विज्ञान एक सिद्धांत के रूप में काफी अच्छा है, मगर हम जो कुछ भी सीखते हैं, उसका अच्छी तरह से अभ्यास करना भी बेहद ज़रूरी है।

हालांकि, शिक्षा और व्यवसाय के विभिन्न स्तरों को चिह्नित करके इस स्थिति से हम बखूबी निपटा जा सकता है। इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए ये उपाय कारगर साबित हो सकते हैं।

मैनेजमेंट के छात्रों के लिए

मैनेजमेंट के छात्रों या बिजनेस स्कूलों में पढ़ाई करने वालों को सिर्फ डिग्री और नौकरी के लिए ही पढ़ाई नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें जीवनभर सीखने वाला बनना चाहिए। अपने विषय की पढ़ाई करने के साथ-साथ उन्हें अपने व्यावहारिक ज्ञान को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए। उन्हें ऐसे लोगों से मिलना चाहिए, जो पहले से ही इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आजकल इंटरनेट सभी घरों में उपलब्ध है। ऐसे में इसका अधिक से अधिक सकारात्मक इस्तेमाल करना चाहिए। इंटरनेट के माध्यम से सेल्फ लर्निंग करें और अपनी पढ़ाई का लेखा-जोखा रखें। डिग्री और नौकरी मिलने के बाद भी पढ़ने की आदत को बरकरार रखना चाहिए।

मैनेजमेंट स्कूलों के लिए

मैनेजमेंट स्कूल के निदेशकों और प्रोफेसरों को अलग-अलग सेक्टर की नई चुनौतियों, समस्याओं और नई जानकारियों से हमेशा अपडेट कराया जाना चाहिए। एक इंडस्ट्री को किस चीज की ज़रुरत है, उसके मुताबिक मैनेजमेंट स्कूल के निदेशकों और प्रोफेसरों को समझने के लिए अधिक से अधिक समय देना चाहिए। प्रोफेसरों भी चाहिए कि इस जानकारी को छात्रों के साथ भी साझा करें। इसके साथ ही इंडस्ट्री की उन समस्याओं का व्यावहारिक समाधान भी निकाला जाना चाहिए। इसके अलावा, मैनेजमेंट स्कूलों के बोर्ड मेंबर में उद्योग जगत के विशेषज्ञों को भी शामिल करने की ज़रुरत है।

इंडस्ट्री के लिए

आज के समय में हर उद्योग की चुनौतियां दिनों दिन लगातार बढ़ और बदल रही हैं। टेलीकॉम, रिटेल, फाइनॉन्स, टूरिज्म समेत अन्य सेक्टर को अपने संबंधित संघों के जरिए की रिजल्ट एरिया (केआरए) की एक सूची तैयार करनी चाहिए, जिसकी वे अपने नए मैनेजरों से अपेक्षा रखते हैं। इस केआरए को मैनेजमेंट स्कूलों के साथ भी साझा करना काफी ज़रूरी है, जिससे उनकी ज़रुरतों के मुताबिक छात्रों को तैयार कर सकें

व्यक्तिगत श्रेणी की कंपनियों के लिए

जब किसी बिजनेस स्कूल से निकले नए लोग किसी संस्थान से जुड़ते हैं, तो उस संस्थान के मैनेजमेंट को भी उन्हें उद्योग जगत की वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहिए। इसके लिए संस्थान के किसी सीनियर साथी को जिम्मेवारी सौंपकर नए लोगों का मार्गदर्शन करना चाहिए। ऐसा कतई न कहें कि भर्ती प्रक्रिया के समय कंपनी ने ध्यान ही नहीं दिया, बल्कि किसी छात्र को संस्थान में बहाल करने के बाद उसे इंडस्ट्री की व्यावहारिक पहलुओं से अवगत कराया जाना चाहिए।

एक बात हमेशा याद रखें कि सिद्धांत और व्यवहार के बीच की खाई को गहरी समझ और खुलकर बातचीत के माध्यम से ही पाटा जा सकता है। वहीं, हर इंसान को सूक्ष्म निगरानी, खुले विचारों और बड़ी से बड़ी जिम्मेवारियों को उठाने की इच्छा और दुनिया के तौर-तरीकों को सीखने के लिए पहल करनी चाहिए

डॉ राधाकृष्णन पिल्लई एक भारतीय मैनेजमेंट थिंकर है, लेखक और आत्म-दर्शन और चाणक्य आंविक्षिकी के संस्थापक हैं। डॉ पिल्लई ने तीसरी सदी ईसा पूर्व के ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर रिसर्च की है और इसे माॉडर्न मैनेजमेंट में शामिल किया है ।

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