भगवान कृष्ण से जुड़ी ये 8 कहानियां आपने पहले शायद ही कभी सुनी होगी

अपनी नई पुस्तक 'श्याम' में मायथोलॉजिस्ट और लेखक देवदत्त पटनायक ने भगवान कृष्ण की कहानियां उनके जीवन से जुड़े विभिन्न किस्सों के साथ बड़े ही करीने के साथ लिखा है।

हम सभी बचपन से ही भगवान कृष्ण की कहानियां सुनकर बड़े हुए हैं। हम लोगों के बीच उनकी छवि माखन चोर, नटखट और ऐसे शरारती बच्चे के रूप में है, जो बड़े से बड़ा पर्वत को भी इधर से ऊधर करने की क्षमता रखते हैं। इसके साथ ही वह मधुर बांसुरी बजाते हैं। वह साक्षात ईश्वर हैं। जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, आप उनसे कुछ-न-कुछ सीखते हैं। ऐसे में आपको लगता है कि हम तो उन्हें जानते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। बहुत कम लोग ही उन्हें अच्छी तरह समझते हैं।

अपनी नई पुस्तक ‘श्याम’ में मायथोलॉजिस्ट और लेखक देवदत्त पटनायक ने भगवान कृष्ण की कहानियां (Stories of Lord Krishna) उनके जीवन से जुड़े विभिन्न किस्सों के साथ बड़े ही करीने के साथ लिखा है. इस आलेख के अंश इस पुस्तक से लिया गया है। लेकिन, यह किताब का अंश मात्र नहीं है, बल्कि वह आठ बातें हैं, जिसे देवदत्त ने श्रीकृष्ण के जीवन अनुभव से सीखी है।

शुरू से अंत तक भगवान कृष्ण की कहानियां अबूझ पहेलियों से भरपूर है, जिसमें यहां, वहां, जहां-तहां सभी जगह के किस्से मौजूद हैं।

अलगअलग हिस्सों में भगवान कृष्ण की कहानियां (Alag alag hisson mein bhagwan Krishna ki kahani)

भगवान कृष्ण की कहानियां कहानियां हमें संस्कृत साहित्य के जरिए अलग-अलग हिस्सों में प्राप्त हुई है। सबसे पहले महाभारत में (यह पांडवों के बीच कृष्ण की प्रौढ़ अवस्था का वर्णन करता है), उसके बाद हरिवंश में (भगवान कृष्ण और गायों के साथ उनके संबंध की चर्चा है), फिर विष्णु पुराण में (भगवान कृष्ण के विष्णु अवतार के बारे में बताया गया है) और अब सबसे प्रमुख ग्रंथ श्रीमद् भागवत पुराण में (रात में ग्वाला दोस्तों के साथ नृत्य का जिक्र है) और जयदेव के गीत गोविंद में (राधा-कृष्ण के प्रेम और संबंधों का वर्णन है) भगवान कृष्ण की कहानियां का जिक्र है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भगवान कृष्ण की कहानियां हजारों वर्ष पहले मौखिक तौर पर लोगों के बीच पहुंची होगी। बाद में इन कहानियों की रचना की गई होगी। हम लोग शायद ही उन बातों को जानते होंगे। लेकिन इस बात से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं कि महाभारत करीब 2000 साल पहले हम लोगों के बीच एक लिखित रूप से मौजूद था, जबकि करीब 1,700 साल पहले हरिवंश की रचना हो गई थी। वहीं, करीब 1,500 साल पहले विष्णु पुराण, भागवत पुराण के सभी अध्याय 1,000 साल पहले एक साथ लिखे गए थे और गीत गोविंद की रचना करीब 800 साल पहले हुई थी।

गायों का स्वर्गलोक (Gayon ka swarglok)

बहुत सारे लोग भगवान राम की तरह श्रीकृष्ण की जन्म से लेकर मृत्यु तक की भगवान कृष्ण की कहानियां को खंड-खंड में बांटकर क्रमिक रूप से लोगों के समक्ष सुनाते हैं। हालांकि, कोई भी हिंदू धर्मावलंबी शायद ही इस बात को स्वीकार करे कि भगवान राम और कृष्ण मर सकते हैं। वे तो अपने वंशज को बताएंगे कि वे स्वर्ग के अवतार हैं और बैकुंठ लोक से आते हैं।

राम और कृष्ण के बीच अंतर हैं। दोनों अलग-अलग हैं, क्योंकि राम को नहीं मालूम कि वह विष्णु हैं, जबकि कृष्ण ही विष्णु हैं। प्रचलित लोक मान्यताओं के अनुसार राम की उत्पत्ति सातवें अवतार के रूप में हुई हैं, जबकि कृष्ण को आठवें अवतार के रूप में जाना जाता है। कृष्ण के उपासकों के लिए भगवान कृष्ण विष्णु के सबसे बड़े अवतार हैं। यहां तक की सबसे बड़े पूर्ण-अवतार, सगुण ब्राह्मण और निर्गुण ब्राह्मण से सर्वोपरी हैं।

इस प्रकार कई उपासकों के लिए भगवान के गो लोक रूपी स्वर्गलोक भगवान विष्णु के बैकुंठ लोक से विशाल है। बैकुंठ दूध के भवसागर में मौजूद हैं, लेकिन दूध तो गो लोक में रहने वाली गायों के थन से ही आता है। गो लोक में रहने वाली गाय अपनी इच्छा से दूध देती हैं। ये गाय श्रीकृष्ण की बांसुरी से निकलने वाली मधुर ध्वनि से काफी मोहित हो जाती हैं, जबकि श्रीकृष्ण राधा की सुदंरता और प्रेम से प्रभावित होकर गो लोक में स्थित जमुना तट पर कदंब के पेड़ के नीचे बांसुरी बजाते हैं। गो लोक में मौजूद कदंब का पेड़ ही कल्पवृक्ष का रूप धारण करता है। कल्पवृक्ष को ही मनोकामना पूरी करने वाला वृक्ष माना जाता है।

स्थानीय रूप में वैश्विक कृष्णा (Sthaniya roop mai vaishvik krishna)

पूरे भारत में कृष्ण से जुड़ी कई कहानियां मौजूद हैं, लेकिन भारत के अलग-अलग राज्यों और दुनियाभर के विभिन्न हिस्सों में भगवान कृष्ण की कहानियां भी अलग-अलग हैं।

महाराष्ट्र में लोग पंढ़रपुर के विठोबा के स्वरूप को कृष्ण से जोड़कर देखते हैं। महाराष्ट्र के एकनाथ, तुकाराम और ज्ञानेश्वर जैसे प्रमुख कवि-संतों ने कृष्ण की महानता के बारे में सभी आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है। राजस्थान और गुजरात में नाथद्वारा के श्रीनाथजी ने कृष्ण की छवि को लोगों तक पहुंचाया है।

वहीं, ओडिशा के लोग पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के आधार पर भगवान कृष्ण को मानते हैं। असम में 500 साल पहले शंकर देव द्वारा स्थापित नामघर को जोड़कर कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। इन जगहों पर कृष्ण की कोई छवि नहीं है। वे अपने उपासकों के बीच श्लोक, गीत, नृत्य और अन्य विधाओं के रूप से मौजूद हैं।

तामिनाडु में कृष्ण और विष्णु में शायद ही कोई अंतर देखने को मिलता है। ‘अलवर’ नाम से विख्यात कवियों के समूह श्रीकृष्ण से काफी प्रभावित रहे हैं। केरल में करीब 400 वर्ष पहले नारायणीयम नामक संस्कृत काव्य की रचना की गई थी। इसे भागवत पुराण की कहानी का एक छोटा स्वरूप माना जाता है और यह गुरुवायुर मंदिर में काफी प्रचलित है। उत्तर भारत के लोग इन रीति-रिवाजों से बिल्कुल भी अनभिज्ञ हैं।

दक्षिण-पूर्व के कई देशों में जैसे कंबोडिया में कृष्ण को एक नायक के रूप में देखा जाता है। वे असुरों से लड़ते हैं और उन्हें पराजित करते हैं। लेकिन गायों के चराने का कही कोई जिक्र नहीं है।

इस प्रकार 1000 वर्ष पहले पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रसिद्ध कृष्ण, महाभारत के वासुदेव कृष्ण हैं न कि भागवत के गोपाल कृष्ण। ऐसे में भौगोलिक रूप से देखने पर कृष्ण बिल्कुल अलग हैं, जबकि इतिहास के पन्नों उलटने पर कृष्ण की कुछ और ही छवि देखने को मिलती है।

बौद्धिक भगवद गीता और भावनात्मक भागवत पुराण (Baudhik Bhagwat Geeta aur bhavnatmak Bhagwat Puran)

महाभारत की छवि आमतौर पर लोगों में अशुभ घटना के रूप से व्याप्त है, क्योंकि इसमें खून-खराबा और परिवारों के विघटन का जिक्र है। यही वजह है कि लोग भगवत पुराण से कृष्ण की बाल-लीला और युवावस्था, माता यशोदा और उनके प्यारे गोपियों से जुड़ी कहानियों को सुनना-सुनाना पसंद करते हैं। महाभारत में मात्र शुभ हिस्सा सिर्फ और सिर्फ भगवद गीता है। इसे कुरुक्षेत्र के युद्ध  मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाया था। यह हिंदू दर्शन का अंश है। यदि यह भगवगीता नहीं होती, तो लोग इसके बाद कृष्ण को इतनी अहमियत नहीं देते।

घर में आपसी कलह से जुड़ी हुई भी बहुत सारी कहानियां मौजूद हैं। कृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं। वह हर किसी का ख्याल रखने के लिए काफी मुश्किल का सामना करते हैं।

भगवद गीता ने 2,000 वर्ष पहले हम लोगों को भक्ति योग से अवगत कराया है। करीब 1,000 वर्ष पूर्व भागवत पुराण में भक्ति योग के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। हमारे पूर्वजों ने भगवान को लेकर पूर्व से व्याप्त भावनात्मक सोच को बौद्धिकता की बुनियाद रखी। बाद में यह 500 वर्ष पूर्व भक्ति आंदोलन के रूप में पूरे भारत में जन-जन तक पहुंच गया। उस दौर में राजस्थान की मीरा, ओडिशा के सालबेगा और गुजरात के नरसी मेहता, मिथिला के विद्यापति और महाराष्ट्र के तुकाराम जैसे महान कवियों ने कृष्ण की रचनावली तैयार की। अपनी रचनाओं के बदौलत इन लोगों ने आम लोगों के बीच में भी जगह बना ली। उनके काव्य और स्तुतियों में भागवत पुराण की कहानियों और भगवद गीता के दर्शन का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है।

जैन और बौद्ध धर्म में कृष्ण (Jain aur Baudh dharm mai Krishna)

जैन और बौद्ध परंपराओं में भी भगवान कृष्ण की कहानियां देखने और सुनने को मिलती हैं। जैन महाभारत की मानें, तो कौरवों और पांडवों के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ था। बल्कि यह लड़ाई द्वारका के कृष्ण और मगध के राजा जरासंध के बीच लड़ी गई थी। इस युद्ध में पांडवों ने कृष्ण की और कौरवों ने जरासंध की सहायता की थी। इस बात का ख्याल रखना जरूरी है कि जैन महाभारत की भगवान कृष्ण की कहानियां भारत के पूर्व से पश्चिम की ओर चल रही है। जरासंध पूर्व में मगध से संबंध रखते हैं, जबकि कृष्ण का जुड़ाव पश्चिम में द्वारका से है।

बौद्ध जातक कथाओं में भगवान कृष्ण का कोई स्पष्ट संदर्भ नहीं मिलता है। लेकिन कृष्ण की तरह ही एक पात्र का जिक्र घट जातकों में मिलता है। इसमें एक बलशाली के रूप से चित्रण किया गया है। जब वह अपने बेटे की मृत्यु से आहत होकर शोक में रहते हैं, तो बोधिसत्वघट-पंडिता उन्हें सांत्वना देते हैं।

एक गृहस्वामी, पति और पिता 

द्वारका में भगवान कृष्ण की कहानियां में काफी रहस्य देखने को मिलता है। कुछ कहानियों में कृष्ण को एक गृहस्वामी और एक पति के रूप से चित्रण किया गया है। आमतौर पर आम लोग उनकी दो पत्नियों सत्यभामा और रुक्मिणी के बारे में काफी कुछ जानते हैं। लेकिन अधिकांश पुराणों में उनकी आठ प्रमुख रानियों के बारे में जिक्र है। साथ ही 1,000 से अधिक पत्नियों की भी चर्चा है। उन सभी को नरकासुर की विजय के बाद पनाह दिया गया था।

कृष्ण के जीवन से जुड़ी इन कहानियों में घरेलू कलह की झलक देखने को मिलती है। अपनी पत्नियों के बीच आपसी सद्भाव बनाए रखने के लिए कृष्ण को एक आदर्श पति बनना पड़ा होगा। ऐसी कहानियां हैं, जिसमें इस बात का उल्लेख है कि कृष्ण अपनी 16,108 पत्नियों में से हर किसी का ख्याल रखने के लिए कितना जद्दोजेहद करते रहते थे। इस प्रकार इन कहानियों के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि वे कठिन से कठिन स्थिति में कैसे सभी चीजों को मैनेज करते थे। साथ ही उन्हें एक आदर्श के रूप से भी पेश किया गया है।

मोहिनी के रूप में भी जाना जाता है कृष्ण को (Mohini ke roop mein bhi jana jata hai Krishna ko)

कृष्ण की कुछ प्रचलित कहानियों में उल्लेख है कि वह महिला और पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित रहते थे। ओडिशा में उनकी प्रतिमाओं को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। उन प्रतिमाओं में उन्हें एक नर्तकी के रूप में गढ़ा गया है और उनकी मां यशोदा और राधा से जुड़ने के लिए उनके पास एक चोटी और नाक में नथिया भी पहनाया गया है।

कई मंदिरों में स्थापित उनकी मूर्तियों को खास अवसरों पर महिला की पोशाक और साजो-समान से सजा जाता है। उनके इस रूप को मोहिनी के रूप में जाना जाता है। दक्षिण भारत की एक लोक कथा में बताया गया है कि एक बार कृष्ण एक बूढ़ी औरत और अर्जुन एक युवती का रूप धारण कर घूमने के लिए निकल जाते हैं। साथ ही वे दोनों अपनी बोली लगाने के लिए लोगों को मोहित करते हैं।

उत्तर तामिलनाडु की एक कहानी में जिक्र है कि कुरुक्षेत्र की लड़ाई से पहले अर्जुन के पुत्र अरावन और उलूपी नाम की एक नागा महिला को बलि देने का फैसला लिया गया, लेकिन अरवन यह मानने से इंकार कर देता है। वह कहता है कि जब तक वह शादी नहीं कर लेगा, तब तक अपना बलिदान नहीं देगा। दरअसल, उस वक्त कोई महिला उसके साथ शादी करने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसे समय में कृष्ण मोहिनी का रूप धारण कर एक रात के लिए उसकी पत्नी बन जाते हैं। दूसरे दिन अरवन की बली के बाद मोहिनी एक विधवा का रूप धारण कर उसके लिए विलाप करती है।

रासलीला में सिर्फ कृष्ण ही एकमात्र पुरुष थे। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव को रासलीला में हिस्सा लेने की इच्छा हुई, तो वह एक महिला गोपी का रूप धारण कर इसमें शामिल हो गए। आज भी वृंदावन में गोपेश्वर महादेव के रूप में उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। पद्म पुराण के अनुसार अर्जुन और नारद ने भी रासलीला तक पहुंचने के लिए महिलाओं का रूप धारण किया था।

दुराचारियों के प्रति सहानुभूति  (Durachariyon ke prati sahanubhuti)

भगवान कृष्ण की कहानियां अपने आप में काफी अनूठी हैं। वे बुरे आचरण वाले लोगों के प्रति भी काफी दयालु थे। उनके समय में कंस, जरासंध और दुर्योधन तीन प्रमुख दुराचारी थे। इन तीनों की बचपन से जुड़ी दर्दनाक कहानी है। कंस का जन्म हिंसक परिस्तिथियों में हुआ था, उसकी मां ने जन्म के बाद उसे छोड़ दिया था। जरासंध जन्म के समय विकृत पैदा हुआ था। उसके पिता की दो रानियां थीं, जिन्होंने उसके आधे शरीर को जन्म दिया था। इसके बाद उसके दो हिस्सों को जरा नाम की असुर महिला से उसे जोड़ दिया गया था। दुर्योधन के बारे में सभी जानते हैं कि उसके पिता अंधे थे। इसी के चलते उसकी मां की आंखों पर भी पट्टी बांध दी गई थी। इसलिए जीवनभर वह अपनी मां-बाप की नजरों से अछूता रह जाता है।

इससे प्रतीत होता है कि जिन लोगों को दुराचारी माना जाता है, उनके जीवन में कभी-न-कभी अन्याय जरूर हुआ रहता है। वे जीवन भर खुद को असहाय समझने लगते हैं, जिससे वे भी वे असंवेदनशील और अमानवीय हो जाते हैं।