जानें उडुपी नगर और उडुपी कृष्ण मंदिर का इतिहास

जानें उडुपी नगर और उडुपी कृष्ण मंदिर का इतिहास

कृष्ण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही उसकी वास्तुकला, जो कि द्रविड़ शैली में बनी है अपनी खूबसूरती की वजह से आकर्षित करती है। यहां पहुंचते ही मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और भक्ति भाव में सराबोर हो गया। प्रवेश द्वार से पहले ही गोपुरम की खिड़की दिखाई देती है, जिससे हम सीधे भगवान के दर्शन कर सकते हैं।

दक्षिण भारत के कर्नाटक में समुद्र के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है उडुपी। यह शहर हिंदू मंदिरों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसे टेंपल सिटी (Temple City) के नाम से भी जाना जाता है। यहां का श्रीकृष्ण मंदिर काफी फेमस है। ऐसी मान्यता है कि यहां भक्त खुद फर्श पर प्रसाद परोसने की मांग करते हैं। कहा जाता है कि जिन भक्तों क मनोकामना पूरी हो जाती है, वो मंदिर के फर्श पर प्रसाद खाते हैं। इस प्रसाद को प्रसादम या फिर नौवैद्यम कहा जाता है। सोलवेदा हिंदी की इस यात्रा में मैं आपको इस बार इसी शहर में ले चलूंगा। इस यात्रा पर चलने के लिए हमारे साथ आर्टिकल के अंत तक बनें रहें।

बेंगलुरु से करीब 400 किलोमीटर की दूरी पर है उडुपी, तो मैं शुक्रवार को ऑफिस खत्म होने के बाद बैग पैक करके निकल पड़ा यहां के लिए। बेंगलुरु से रात में बस पकड़ी, जिसने शनिवार को सुबह-सुबह उडुपी पहुंचा दिया। बस स्टैंड से होटल और फिर फ्रेश होकर निकल पड़ा उडुपी शहर की सड़कों पर। वहां के लोगों से पूछा, तो सबने सबसे पहले श्री कृष्ण मंदिर जाने की सलाह दी।

झरोखों से दिखते हैं भगवान (Jharokhon se dikhte hain bhagwan)

कृष्ण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही उसकी वास्तुकला, जो कि द्रविड़ शैली में बनी है अपनी खूबसूरती की वजह से आकर्षित करती है। यहां पहुंचते ही मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और भक्ति भाव में सराबोर हो गया। प्रवेश द्वार से पहले ही गोपुरम की खिड़की दिखाई देती है, जिससे हम सीधे भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मुझे इस मंदिर में पहुंच कर एक अजीब सी शांति मिली, जो यहां से जाने के बाद भी कई दिनों तक मेरे मन में किसी शंख की मधुर ध्वनि की तरह गूंजती रही।

उडुपी कृष्ण मंदिर का इतिहास (Udupi Krishan Mandir ka itihaas)

उडुपी कृष्ण मंदिर का इतिहास कहता है कि श्री कृष्ण के भक्त कनकदास इस मंदिर में पहुंचे थे, तो उन्हें पूजा नहीं करने दिया गया। इसके बाद उन्होनें भगवान कृष्ण से दर्शन देने के लिए प्रार्थना की और भगवान श्री कृष्ण उनकी ओर मुड़ गए। आज भी लोग सबसे पहले खिड़की से भगवान के दर्शन करते हैं और फिर मंदिर प्रांगण में पहुंचते हैं। यहां भगवान गेट की ओर नहीं बल्कि पीछे की ओर देख रहे हैं।

मंदिर के चारों ओर हैं आठ मठ (Mandir ke charon or hai aath math)

श्री कृष्ण मंदिर के चारों ओर आठ मठ हैं। ये बारी-बारी से मंदिर की देखभाल करते हैं। प्रत्येक मठ मंदिर की दो महीने तक देखभाल करते थे, लेकिन बाद में स्वामी वदिराज ने इसमें संशोधन कर दिया, जिसके हिसाब से अब दो साल के लिए एक मठ मंदिर का देखभाल करते हैं। इस मंदिर में प्रवेश से लेकर पूजा तक को लेकर कई अलग-अलग नियम हैं। वहीं, इस मंदिर की जो सबसे खास बात है वो यह है कि यहां भक्त फर्श पर प्रसाद खाते हैं। इस मंदिर के फर्श को काले काड्डपा स्टोन से बनाया गया है।

मालपे बीच (Malpe Beach)

मंदिर में दर्शन करने के बाद मैं पहुंच गया मालपे बीच। यह बीच उडुपी शहर से 5.7 किमी दूर है। यहां एक प्राकृतिक बंदरगाह है। साथ ही यहां मछुआरा समुदाय मोगेवेरा लोक का घर है। यहां के समुद्र तट को मलापू के नाम से भी जाना जाता है। यह बीच साफ रेत, खूबसूरत सूर्यास्त के लिए भी काफी मशहूर है। आप यहां से सेंट मेरीज आइलैंड की यात्रा भी कर सकते हैं।

कौप बीच (Kaup Beach)

इसी बीच की सबसे खास बात यह है कि यह 1901 में बने लाइटहाउस के सामने है। यह उडुपी में यात्रा करने के लिए सबसे शानदार जगहों में से एक है। यह जैन मंदिरों के लिए भी काफी फेमस है, जो अब खंडहर हैं मगर कई दबी कहानियां कहते हैं। यहां, दो हिंदू मंदिर भी हैं, जो देवी मुरियम्मा को समर्पित हैं।

पजाका (Pajaka)

उडुपी शहर में स्थित श्रीकृष्ण मंदिर से 13 किमी की दूरी पर बसा यह एक गांव है। यहां गांव श्री कृष्ण मंदिर के संस्थापक माधवाचार्य की जन्मभूमि होने के कारण लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। यहां पर उनका घर संरक्षित है। घर के बगल में ही एक बरगद का पेड़ है, जिसे माधवाचार्य ने लगाया था।

कर्कला (Karkala)

कर्कला पूरे साल हरियाली से ढका रहता है। यह प्रमुख रूप से जैन केंद्र है। यहां पर गोमतेश्वर या भगवान बाहूबली की 41.5 फीट ऊंची मूर्ति है। यहां पर हर 12 साल में एक बार समारोह का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा भी उडुपी में घूमने के लिए काफी कुछ है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता अनोखी है, जो पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है।

सोलवेदा हिंदी की यह यात्रा आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। इसी तरह की और भी यात्रा पर चलने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।