होली की कहानी, होली के रंग

होली के रंगों के पीछे की कहानियां

होली का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि अब विश्वभर में मनाया जाता है। एक-दूसरे को रंग लगा खानपान का लुत्फ उठाकर इस पर्व को मनाने का अपना ही आनंद है। लेकिन क्या आपको इसके इतिहास व पौराणिक कथाओं के बारे में पता है? अगर नहीं, तो जानने के लिए इस लेख को पढ़ें।

होली भारत का प्रसिद्ध त्योहार होने के साथ मेरा पसंदीदा पर्व है। यह त्योहार मुझे मेरे बचपन के दिनों में ले जाता है, जब हम सब होलिका दहन के समय साथ बैठकर दादी-नानी की कहानियां सुनते थे। होली की कहानी की औपचारिकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का बखान किया जाता था। कहानियों के महापुरुषों से मैंने जो कुछ सीखा उसका मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। समय के साथ-साथ मुझे यह समझ आया कि इन कथाओं का क्षेत्रों और समुदायों में ज्यादा ही महत्व है, जो सांस्कृतिक महत्व की गहराई से जुड़ा हुआ है।

सोलवेदा के इस लेख को पढ़कर जानें होली पर्व के बारे में।

विष्णु भक्त प्रह्लाद की कथा

होलिका दहन की कथा राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी हुई है। दानवराज हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा ने अमर होने का वरदान दिया था। वक्त के साथ-साथ राजा अभिमानी और निर्दयी होने लगा। उसने अपनी प्रजा को भगवान विष्णु की जगह स्वयं की पूजा करने का आदेश दिया। जो कोई भी उसके खिलाफ जाने की कोशिश करता उसे मृत्युदंड दिया जाता। लेकिन विष्णु के परम भक्त हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने कभी अपने पिता के आदेश का पालन नहीं किया। हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र की हत्या करने की कोशिश की, पर वह सफल न हुआ। अंत में थक-हारकर उसने प्रह्लाद को अग्नि में जिंदा जलाने का आदेश दिया।

दानवराज हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को यह काम सौंपा। होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। होलिका के पास एक अद्भुत चादर थी, जिससे कि वह आग में कभी नहीं जलती। लेकिन जैसे ही दोनों चिता पर बैठे, वैसे ही प्रह्लाद ने विष्णु भगवान की आराधना शुरू कर दी। इसके बाद होलिका उसी चिता में भस्म हो गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका ना हुआ। बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और तभी से होलिका दहन की शुरुआत हो गई। इसे होली की कहानी के रूप में जाना जाता है।

शिव क्रोध की कथा

पुराणों के अनुसार सती के बलिदान के परिणाम स्वरूप शिव बहुत क्रोधित हुए थे। उनके क्रोध के कारण पूरा संसार तहस-नहस हो गया। भगवान शिव संसार को त्याग कर साधना में लीन हो गए। संसार को फिर से सुखमय बनाने और शिव द्वारा संसार चलाने के लिए सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। परंतु शिव को तपस्या से बाहर निकालने की पार्वती के सारे प्रयास असफल होने के बाद उन्होंने कामदेव से मदद मांगी। प्रेम के देवता कामदेव ने शिव पर पुष्प बाण चलाया, जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई और शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध से कामदेव भस्म हो गए। अपनी गलती का पछतावा होने पर शिव कामदेव को अमर होने का वरदान देते हैं। इसी कारण हर वर्ष यह दिन होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है और अगला दिन कामदेव के पुनर्जीवित होने के खुशी में रंग खेल कर होली मनाई जाती है। आज भी चंदन का लेप कामदेव के शारीरिक जलन को शांत करने के लिए चढ़ाया जाता है।

होली की कहानी के आधार पर दक्षिणी भारत में होली को प्रेम और कामदेव के बलिदान की श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है। तमिलनाडु में होली को कामविलास, कामन पांडिगई और काम-दहनम के नाम से भी जाना जाता है।

राक्षस की कहानी

नरभक्षी ढुंढी की होली की कहानी कम ही लोग जानते हैं। भगवान शिव राक्षस धुंधी को अविनाशिता का वरदान प्राप्त था। उस नरभक्षी ने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया। वह छोटे बच्चों को खा जाया करती थी। हालांकि, वह इस बात को भूल गई थी कि शिव ने उसे यह श्राप भी दिया था कि नटखट बालक से उसे खतरा हो सकता है। ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन के इस दिन गांव के लड़के अपनी शरारतों, हंसी-ठिठोली, गाली-गलौज से ढुंढी को भगा दिया था। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के दौरान लड़कों का वह व्यवहार हमारी संस्कृति के इसी पौराणिक कहानियों का हिस्सा है। यह कथा अभिमान पर विनम्रता की विजयगाथा है।

राधाकृष्ण की रासलीला

होली का त्योहार राधा-कृष्ण के जीवन का एक अहम हिस्सा बताया गया है। मथुरा और वृंदावन के लोगों के लिए होली उनके देवता प्रेम को दर्शाता है।

होली की कहानी के अनुसार एक बार श्री कृष्ण अपनी मां यशोदा से अपने और राधा के रंग की तुलना कर रहे थे। उन्होंने अपनी मां से पूछा कि उनकी त्वचा काली और राधा की दूध जैसी सफेद क्यों है? इस पर उनकी मां उन्हें समझाती हैं कि राधा का रंग सफेद इसलिए है कि वह उन्हें अपने पसंदीदा रंग में रंग लें। इतना सुन कृष्ण राधा के चेहरे को अपने पसंदीदा रंगों में रंग देते हैं। उत्तर भारत में होली को रासलीला के रूप में मनाया जाता है और पश्चिम बंगाल में यही त्योहार बतौर डोल पूर्णिमा या डोल जात्रा के रूप में जाना जाता है।

पूरे भारत में अलग-अलग राज्यों में होली की कथाएं भले ही अलग-अलग हो, लेकिन रंगों से जुड़ा संदेश एक ही है। रंग हमें एकता, अखंडता और विविधता के बारे में बताते हैं। होली की कहानी सिर्फ पौराणिक नहीं है, बल्कि ये प्रेम, बलिदान और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं।

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