बचपन से लेकर अब तक की होली में कितने रंग हुए कम?

आज हम भले ही सोसाइटी के पार्क में रंग खेल लेते हैं, ठंडई पीकर मस्त हो जाते हैं या फिर डीजे पर नाचकर मस्ती कर लेते हैं। लेकिन, मन के किसी न किसी कोने में वो बचपन वाली होली की यादें आज भी बरकरार हैं।

होली खुशियों और उत्साह का त्योहार है। यह सभी भारतीय का पसंदीदा त्योहार है। इसकी तैयारी लोग काफी पहले से शुरू कर देते हैं। मार्च आते ही हवा से भी रंगों की खूशबू आने लगी है। होली के गिफ्ट, रंग, पानी, गुब्बारे, पिचकारी से बाज़ार की दुकानें सज गई हैं। वैसे तो होली का त्योहार, जैसे आज से 100 साल पहले था, वैसे ही आज भी बरकरार है। आज हम भले ही होली पर सोसाइटी के पार्क में रंग खेलते हैं, ठंडई पीकर मस्त हो जाते हैं या फिर डीजे पर नाचकर मस्ती करते हैं। लेकिन, मन के किसी न किसी कोने में वो बचपन वाली होली की यादें आज भी बरकरार हैं। आज भी हमें याद आता है, कई सप्ताह पहले से होली की तैयारी में लग जाना, गुझिया बनवाना, रंग और गुलाल के साथ-साथ पिचकारी खरीदने के लिए जाना, पिचकारी में रंग भर कर हर आने-जाने वाले को रंगों से सराबोर कर देना।

ज़रूरी भी है नए ज़माने की होली में वो बचपन वाली होली को याद करना, उन यादों में होली के अवसर पर रंग भरना। तो चलिए सोलवेदा हिंदी के हम आपको लेकर चलते हैं बचपन की होली की ओर। साथ ही हम बताएंगे कि बचपन की होली से लेकर आज की होली में क्या-क्या बदलाव हुए हैं। 

होली की बचपन वाली खुशी (Holi ki bachpan wali khushi)

बचपन में होली आने के कई सप्ताह पहले हम तैयारी शुरू कर देते थे। इसको लेकर हम लंबी प्लानिंग करते थे। एक दिन पहले ही रंग और गुलाल भरकर रख लिए जाते। मुझे याद है कि होली से एक-दो दिन पहले मां हमारे लिए रंग खेलने वाले कपड़े निकाल देती थीं। इस दौरान हमें यह भी समझाया जाता था कि यही कपड़े पहनकर होली खेलने हैं, नए और अच्छे कपड़े को होली में रंग खेल कर खराब नहीं करना है, लेकिन आज हम होली खेलने के लिए कपड़े खरीदते हैं। 

होली के दिन सुबह से ही गुब्बारे भर कर रख लिए जाते थे। इसमें अलग-अलग तरह के रंग होते थे, जिसे हम हर आने-जाने वालों के ऊपर फेंका करते थे। जैसे ही गुब्बारे सही निशाने पर लगते हम खुशी के मारे झूम उठते थे, वहीं अगर गुब्बारे सही निशाने पर नहीं लगे, तो निराश हो जाते थे। मगर आज के समय में इस तरह की मस्ती में थोड़ी कमी आई है, खासतौर पर बड़े शहरों में।

होली के गाने और शाम को एक-दूसरे के घर जाना (Holi ke gane or sham ko ek dusre ke ghar jana) 

होली के दिन युवाओं और बुजुर्गों की टोली एक साथ हो जाया करती थी। न तो कोई बड़ा होता था और न ही छोटा। हर कोई होली के रंग में रंगा होता था। ढोल, मजीरा और झाल लेकर निकले लोग जोगीरा (फाग) और होली के गीत गाते हुए एक-दूसरे के दरवाजे पर जाते थे और खूब मस्ती करते थे। वहीं, दिन भर होली खेलने के बाद हम शाम में फ्रेश होकर नए कपड़े पहन गुलाल लेकर एक-दूसरे के घर जाते और गुलाल लगाकर कर बड़ों से आशीर्वाद लेते। इस दौरान हम एक-दूसरे से गले मिलकर हर गिला-शिकवे को भूला देते थे। 

आज घर से बाहर रहने पर कई बार होली में घर वापस लौटना ही मुश्किल हो जाता है। रंगों से खेलते हम आज भी हैं, मगर बचपन वाली होली के रंग शायद अब तक हमारे गालों पर चमक रहें हैं।

होली में बनते थे बहुत सारे पकवान (Holi mein bante the bahut sare pakwan)

हमें याद है बचपन में सब पकवान होममेड बना करते थे। दादी के यहां कितने ही सारे पकवान बनते थे, तो उतने ही नानी के यहां से आ जाते थे। मां और दादी मिलकर पापड़, चिप्स, खोए भर कर गुझिया, नमकीन और न जाने कितने ही पकवान। 

इन पकवानों में जो प्यार और मिठास होती थी, वो आज कुछ फीकी-सी लगती है। आज किसी के पास इतना वक्त नहीं है कि हर चीज़ घर पर ही बनाई जाए। ऑर्डर अब 20 मिनट में आने लगे हैं, लेकिन होली के पकवानों की वो असली मिठास हमसे सालों दूर है।

बहुत बदल गई है आज की होली (Bahut badal gai hai aaj ki Holi)

आज की भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी में, किसी के पास भी किसी के लिए समय नहीं है। ऐसे में पर्व-त्योहारों का रौनक भी कम होते जा रहा है। इससे अछूता होली जैसा पर्व भी नहीं रहा है। हम अपने फ्लैटों में ही होली मना लेते हैं। आज कल तो हम होली वाले दिन भी ऑफिस करते रहते हैं या फिर वीडियो मीट्स में उलझे रहते हैं। इस दौरान अगर कोई आ गया, तो बस एक चुटकी में गुलाल लेकर एक-दूसरे को लगाकर होली मना लेते हैं। अब न तो लोगों में वो उल्लास बचा है और न ही उत्साह। सब अपने जीवन में इतने बिज़ी हो गए हैं कि किसी के पास उन पुराने रंगों को समटने का समय ही नहीं बचा है।

चलिए मनाएं बचपन वाली होली फिर से (Chaliye manayein bachapan wali Holi fir se)

त्योहार तो वैसे ही लगते हैं, जैसे हम उन्हें मनाते हैं। तो क्यों न इस बार होली के फीके पड़े रंगों को फिर से रंगीन बनाया जाए। कोशिश करें कि इस बार होली आप बिल्कुल उस तरह मनाएं, जैसे बचपन में मनाते थे, उसे उल्लास और जोश के साथ। एक दो दिन की छुट्टी लें और अपने घर जाएं या फिर दादी या नानी घर। परिवार वालों से कहें साथ मिलकर एक दो स्वीट डिश बनाने के लिए। होली पर रंगों से बेफिक्र होकर वैसे ही खेलें, जैसा आप बचपन में करते थे। सभी बड़ों से मिलकर या कम से कम उन्हें कॉल करके उनका आशीर्वाद लें। भले ही किसी अनजान पर रंग न उड़ेलें, लेकिन एक स्माइल के साथ उन्हें ‘हैप्पी होली’ ज़रूर कहें। किसी दोस्त से अगर कोई मन-मुटाव हो तो उससे मिलने जाएं या फिर उनके लिए कोई प्यारा-सा गिफ्ट भिजवाएं। रंगों के त्योहार बेरंग न जाने दें। खुद से वादा करें कि इस बार की होली (Holi 2024) होगी बिल्कुल बचपन वाली होली।

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