कृष्ण जन्माष्टमी: श्री कृष्ण के जन्म की कहानी और त्योहार का महत्व

यमुना पार करते वक्त नदी में काफी तेज़ लहरें उठने लगीं। तेज़ बारिश भी होने लगी। तेज़ बारिश से बचाने के लिए यमुना में शेष नाग ने प्रकट होकर शिशु और वसुदेव को छाया दी। इसके बाद भी यमुना की लहरें काफी तेज़ थी, जिसमें जैसे ही बाल श्री कृष्ण ने अपने पैर डुबोए, यमुना शांत पड़ गई।

गोविंदा आला रे ..आला…हमारे कानों में जब भी ये गीत सुनाई पड़ता है, हम समझ जाते हैं कि जन्माष्टमी नज़दीक है।

हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी यानी कि भादप्रद कृष्ण अष्टमी, जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी का त्योहार देश भर में पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन कई भक्तजन व्रत रखते हैं और पूरी विधि-विधान के साथ श्री कृष्ण की आराधना करते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण जन्म को उत्सव की तरह मनाने से, कृष्ण खुश होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन से जुड़ी जन्माष्टमी कथा भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है। आज हम आपको जन्माष्टमी कथा के बारे में बताएंगे और इस त्योहार के महत्व के बारे में भी कुछ ज़रूरी जानकारी देंगे। लेकिन, इससे पहले जान लेते हैं कि 2023 में जन्माष्टमी कब है?

2023 में जन्माष्टमी कब है? (2023 mein janmashtami kab hai?)

हर साल नक्षत्र के हिसाब से जन्माष्टमी की तिथि अलग-अलग होती है। 2023 में जन्माष्टमी का मुहूर्त 6 सितंबर से 7 सितंबर तक है।

जन्माष्टमी का त्योहार कैसे मनाया जाता है? (Janmashtami ka tyohar kaise manaya jata hai?)

श्रीकृष्ण जन्म को महोत्सव की तरह मनाने वाले श्रद्धालु इस दिन पर व्रत रखकर, पूरी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर के और तरह-तरह के पकवान बनाकर, जन्माष्टमी मनाते हैं। इस दिन रात 12 बजे श्री कृष्ण के जन्म को पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। कई लोग पूरी भक्ति-भावना और विश्वास के साथ रातभर जागकर और निर्जल रहकर इस व्रत को पूरा करते हैं।

जन्माष्टमी के दिन कई जगहों पर दही-हांडी प्रतियोगिता भी रखी जाती है। इसका अर्थ भी श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। श्री कृष्ण बाल अवस्था में हांडी से दही-मक्खन चुराकर खाते थे। उनके बालपन के इसी नटखट रूप को हांडी-प्रतियोगिता के द्वारा याद किया जाता है। इस दिन बच्चे समूह में ऊंचाई पर बंधी दही हांडी को तोड़ने की कोशिश करते हैं। जो समूह इस हांडी को तोड़ पाता है, उसकी जीत होती है।

जन्माष्टमी त्योहार का महत्व क्या है? (Janmashtami tyohar ka mahtv kya hai?)

हिंदू धर्म के अन्य त्योहारों के मुकाबले, जन्माष्टमी को सबसे खास माना जाता है। शास्त्रों में इस व्रत को ‘व्रतराज’ कहा गया है यानी हर व्रत का राजा। मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से कई व्रतों के फल एक साथ मिल जाते हैं। भक्त मानते हैं कि श्री कृष्ण जन्म दिवस के दिन उन्हें पालने में झूला झुलाने से, उनका शृंगार करने से, उन्हें भोग चढ़ाने से कई मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसीलिए श्रद्धालुओं के लिए जन्माष्टमी त्योहार का महत्व सबसे अधिक है।

क्या है जन्माष्टमी कथा? (Kya hai janmashtami katha?)

जन्माष्टमी कथा का अर्थ है श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी। भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा पर राजा कंस शासन करता था। अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से हटाकर वह खुद राजा बना था। उसकी क्रूरता से मथुरा की प्रजा काफी दुखी और परेशान थी। उसमें किसी के लिए भी दया की भावना नहीं थी। जो प्यार उसके मन में था, वो बस अपनी बहन देवकी के लिए ही था। कंस ने अपनी बहन की शादी अपने करीबी मित्र वासुदेव से कराया। शादी के बाद जब वो देवकी और वासुदेव को उनके राज्य की तरफ लेकर जा रहा था, तभी एक तेज़ आकाशवाणी हुई – ‘हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान ही तेरी मौत का कारण बनेगी।’

आकाशवाणी सुनकर कंस गुस्से से तिलमिला गया और वासुदेव को मारने गया। लेकिन, देवकी ने अपने पति की जान बचाने के लिए कंस से कहा कि उसके गर्भ से जो भी संतान जन्म लेगी, उसे वह कंस के हवाले कर देगी। हालांकि, इसके बाद भी कंस ने दोनों को सलाखों के पीछे डाल दिया।

कारागार में देवकी ने एक-एक कर के सात बच्चों को जन्म दिया। लेकिन, हर बच्चे को कंस जन्म लेते ही मार डालता था। हालांकि, आकाशवाणी के अनुसार, माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ही, श्री कृष्ण के अवतार में जन्मे थे। दूसरी तरफ, उसी वक्त माता यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया, जो एक ‘माया’ थी। इस बीच कारागार में प्रकाश जगमगाया और भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने वासुदेव से कहा “आप इस शिशु को अपने मित्र नंद जी के घर ले जाएं और उनकी पुत्री को यहां ले आएं।

भगवान विष्णु के आदेश मानकर वासुदेव जी ने श्री कृष्ण एक टोकरी में रखा। इसके बाद वे टोकरी को अपने सिर पर लेकर नंद जी के घर चल पड़े। भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार गहरी नींद में चले गए और जेल के दरवाजे भी खुल गए।

हालांकि, यमुना पार करते वक्त काफी तेज़ लहरें उठने लगीं और  तेज़ बारिश भी होने लगी। तेज़ बारिश से बचाने के लिए यमुना में शेषनाग ने प्रकट होकर शिशु और वासुदेव को छाया दी। इसके बाद भी यमुना की लहरें काफी तेज़ थी, जिसमें जैसे ही बाल श्री कृष्ण ने अपने पैर डुबोए, यमुना शांत पड़ गई। इन सभी मुश्किलों को पार करते हुए वासुदेव, श्री कृष्ण को लेकर नंद जी के घर पहुंच गए। वहां से वे उनकी नवजात पुत्री को लेकर और कृष्ण को वहीं रखकर वापस आ गए।

इसके बाद कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की खबर मिली। वह तुरंत ही जेल में आया और नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा। लेकिन, गिरने से पहले ही वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में गायब हो गई। इसके बाद कन्या की आवाज़ आई “हे मूर्ख कंस! तुझे खत्म करने वाला जन्म ले चुका है और वृंदावन पहुंच गया है। अब तुझे जल्द ही तेरे पापों की सज़ा मिलेगी।”

तो ये थी, श्रीकृष्ण जन्म की कथा, जिसे हिंदू धर्म के अनुयायियों के द्वारा हर बार जन्माष्टमी के दिन दोहराया जाता है। जन्माष्टमी के दिन कृष्ण की लीला, उनकी दया-भावना और बाल-अवस्था में उनके नटखटपन को याद किया जाता है।

आपको इस बार जन्माष्टमी कैसे मना रहें हैं और आपको ये आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट कर के ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें सोलवेदा हिंदी से।

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