भगवत गीता के श्लोक कलयुग में कैसे कर सकते हैं हमारी मदद?

युगों पहले लिखी भगवतगीता आजकेइसकलयुग में उतनी ही ज़रूरी है जितनाज़िंदा रहने के लिए जल-वायु।इसके ज्ञान भरेश्लोक हरव्यक्ति कीज़िंदगी बदलसकते हैं।जीवनको नई दिशा दे सकते हैं।

महाभारत कीयुद्धभूमि में श्री कृष्ण केसामने सिरझुका कर बैठे अर्जुनकीस्मृति तो हमसबको याद है।यहीवो पलथा,जबश्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मज्ञान दिया था।तबधर्म और कर्म के बीच काअंतरऔरमायने समझकरअर्जुन ने जीवनकेअसली मकसद को पहचान लिया था।श्री कृष्ण के वही अनमोल वचन औरज्ञान आजहमसबकेबीचश्रीमद्भगवत गीता के रूप में मौजूद हैं।भगवत गीता हिंदू धर्म कापवित्र ग्रंथ है।जिसमें महाभारत काल में श्रीकृष्ण कीकथाओं केसाथ-साथ, जीवनकी वास्तविकता औरबहुत से पहलूलिखेहुए हैं।गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैंजोजीवन केहर ज़रूरीज्ञान से रूबरू करातेहैं। गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवनजैसे सभी पहलुओं का बहुत ही खूबसूरत तरीके से वर्णन किया गया है।

गीता केअनुसार, कोई भी ज्ञान हमें चारखण्डों से गुजरने के बाद मिलता है।जिसमें पहला है, पढ़नाया सुनना।मतलब हमने कोई भी ज्ञान भरीबातपढ़ीयासुनी।फिर उसपढ़े-सुने ज्ञान के बारे में चिंतन या मनन किया जाता है।अगरवो ज्ञान हमें समझ में आजाता है,ठीक और उपयोगी लगता है, तब उसे हम अपने जीवन में उतारलेते हैं और आखिर में उस ज्ञान का प्रतिफल हमें मिलजाता है।इसतरह सुनना-पढ़ना, समझना, जीवन में ढालना, और उसकाफल मिलना, ये चारचीज़ेंकिसी भी ज्ञान को उपयोगी बना देती हैं।

किसी भी ज्ञान कोहम पढ़कर या सुनकर छोड़ देंगे, उसे अपनाएंगे नहीं तो उसका फलहमें कैसे मिलेगा? यही बात गीता पर भी लागू होती है।जब हम गीता पढ़कर उसके उपदेशों को जीवन में उतारेंगे तो उसके सुंदर परिणाम हमारे जीवन को बदल देंगे।गीता केहरएक श्लोक में ब्रह्मज्ञान मौजूद है, जो ज़िंदगी केहरमोड़ पर हमारा साथ देतीहै।कहते हैं जो लोग इसज्ञान को पा लेते हैं, उनकोअपनी ज़िंदगी से प्यार होने लगता है।युगों पहले लिखी भगवतगीता आजकेइसकलयुग में उतनी ही ज़रूरी है जितनाज़िंदा रहने के लिए जल-वायु।इसके ज्ञान भरेश्लोक हरव्यक्ति कीज़िंदगी बदलसकते हैं।जीवनको नई दिशा दे सकते हैं।सोलवेदा के साथ हम आगे पढ़ते हैं भगवतगीता केश्लोक।

भगवत गीता के लेखक (Bhagwat Geeta ke lekhak)

भगवदगीता के लेखक महर्षि वेदव्यास हैं, जिनका पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास था।भगवद गीता(bhagwat geeta in hindi) एक हिंदू धर्मग्रंथ है, जो महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें कुल अठारह अध्याय हैं।इसे लगभग 5,000 साल पहले महाभारत के एक भाग के रूप में लिखा गया था।इसमें कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध केदौरान कृष्ण और अर्जुन केसंवाद लिखे हुए हैं।

श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध केबीच अचानकरूकजाने पर समझाया कि येजो तुम्हारे सामने तुम्हारे सगे-संबंधी खड़े हैं, येइसवक्त सिर्फ तुम्हारे शत्रु हैंक्योंकि युद्ध भूमि में कोई किसी कारिश्तेदार नहीं होता।युद्ध भूमि में योद्धा कासिर्फ एक मकसद होता है और वो है विजय प्राप्त करना।इसके साथ ही उन्होंने अर्जुन को जीवन केऔरभी बहुत से पहलुओं काज्ञान दिया।अर्जुन से श्री कृष्ण केइन्हीं संवादों को संजयने सुना औरवेदव्यास ने उन्हें लिखदिया।यही संवाद आजहमारे बीच श्रीमद्भगवत गीता केरूप में मौजूद है।

भगवत गीता का ज्ञान (Bhagwat Geeta ka gyan)

श्रीमद्भगवत गीता में जीवन केहरएक पहलू कीवास्तविकता दिखाई गई है।गीता हमें बताती है कि जीवन क्या है और इसे कैसे जीना चाहिए। आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है। अच्छे और बुरे की समझ क्यों ज़रूरी है।इसके साथ ही गीता कहती है कि व्यक्ति को केवल अपने काम और कर्म पर ध्यान देना चाहिएबल्कि कर्म करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी कर्म कर रहे हैं, उसका फल भी हमें ज़रूर मिलेगा, लेकिन फलकीइच्छा रखकर कामनहीं करना चाहिए।बिना किसीस्वार्थ के किया गया कामहीपुण्य माना जाता है।गीता मेंएक जगह कहा गया है कि, क्रोधयागुस्से से भ्रम पैदा होता है, जिससे बुद्धि खराबहो जाती है याभटक जाती है। भ्रमित इंसान अपने जीवन केमार्ग से भटक जाता हैऔर सही-गलतजैसे तर्क भी नहीं कर पाता, जिससे उसकाजीवन खराब हो जाता है।इसलिए हमें अपने क्रोधयागुस्से परभी काबू रखना चाहिए।

आत्म मंथन करके स्वयं को पहचानो क्योंकि जब खुद को पहचानोगे तभी अपनीशक्ति को समझ पाओगे। ज्ञान की तलवार से अज्ञान को काट कर अलग कर देना चाहिए। जबव्यक्ति खुदको जानलेता है, तब उसकाजीवन संभलजाता है‌।सिर्फ यहां हीगीता काज्ञान खत्म नहीं होता।गीता मेंआगे लिखा है कि, व्यक्ति जैसाकर्मकरता है उसे वैसा ही फल मिलता है। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।किसी कादिल दुखाना बहुत बड़ा अन्याय है, जिसेकरने से बचना चाहिए।गीता में दिया ज्ञान पूरीदुनिया के लिए है।हरव्यक्ति के लिए है, क्योंकि इसमें इंसान केजीवनसे लेकर मृत्यु तक कीहरपरिस्थिति के बारे में लिखाहुआ है।ऐसे में सिर्फ एक लेखमें गीता कासारा ज्ञान लिखपानाबहुत मुश्किल है।

गीता में कही गई बातों कोहर व्यक्ति को अपने जीवन में मानना चाहिएताकि उनकाउद्धार हो सके।आगे पढ़िए गीता केश्लोक जो हमारे जीवन कीहरपरिस्थिति में उपयोगी है।

ज्ञान से भरे भगवत गीता के श्लोक (Gyan se bhare Bhagwat Geeta ke shlok)

भगवद गीता में श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनकेमुंह से कहेएक-एक श्लोकमें जीवन दर्शन का एहसास है। आइएसमझते हैंकुछ भगवत गीता श्लोक।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

इस श्लोक का अर्थ है, कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल की इच्छा के लिए मत करोयानीबिना स्वार्थ केकिया गया कर्म हीहमें अच्छा फलदेता है।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

इसमेंश्री कृष्ण कहते हैं, विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे लगाव हो जाता है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में बाधा आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए कोशिश करें कि किसी चीज़ के लगाव से दूर रहते हुए कर्म में लगे रहे और इच्छाओं केचक्कर में नफंसे रहें।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

इसकाअर्थ है, श्रेष्ठयामहान पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे व्यक्ति भी वैसा हीव्यवहार याकाम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, सबव्यक्ति उसी कोमानने लग जाते हैं। यह श्लोक अच्छे आचरण के फायदे बताता है, और हमें अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥

यानी आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और अविनाशी होने की बात की है।उन्होंने इसबात को समझाने कीकोशिश कीहै कि इंसान काशरीर मरसकता है, परआत्मा को कोई नहीं मारसकता।

हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

इसश्लोक कामतलब है, यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे… इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।इसश्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध भूमि में युद्ध करने को प्रेरित कर रहे हैं।

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने औरअपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले व्यक्ति, अपनी इसी योग्यता केआधार पर ज्ञान लेते हैं।फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शांति को पालेते हैं।

आपको आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।