कैसे बन जाती हैं तस्वीरें हमारी ज़िंदगी की डायरी?

आज जहां हमारे लिए दिन में हज़ारों तस्वीरें और सेल्फी लेना बहुत आम बात है, वही सन् 1826 में दुनिया की सबसे पहली तस्वीर लेने में जोसेफ नाइसफोर को 8 घंटे का समय लगा था।

देखा जाए तो, गुज़रे वक्त को तस्वीरों के रूप में संजो पाना, हमारे जीवन की बहुत सी उपलब्धियों में से एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। आज से ही नहीं, बल्कि सन् 1826 से हमने तस्वीरों को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। तस्वीरें, जो वक्त और लोग अब हमारी ज़िंदगी में नहीं हैं, उनकी यादों को संभाल कर रखने का सबसे खास तरीका है। हम हमेशा से ही यादों में जीना पसंद करते हैं, फिर वो‌ यादें हमारे बचपन की हों या किसी व्यक्ति से जुड़ी हुईं।

बचपन में ली गई तस्वीरें जवानी की यादें बनकर, हमारे मन को अक्सर गुदगुदाती रहती हैं। घर में अचानक सफाई के दौरान मिला वो पुराना एल्बम पूरे परिवार के लिए कुछ घंटों के खुशी के पल ले आता है, जिनमें हम सब साथ मिलकर हंस रहे होते हैं। सच में, उस पल तस्वीरों को थैंक्यू कहने का मन होता है। उस इंसान को थैंक्यू कहने का मन होता है, जिसने सबसे पहले यह विचार किया कि एक कागज का टुकड़ा हमारे जीवन की स्मृतियों को खुद में समेट सकता है।

तो चलिए इस विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day) पर जानें तस्वीरें हमारी ज़िंदगी में क्यों ज़रूरी है और वो व्यक्ति कौन थे, जिन्होनें सबसे पहले तस्वीरों को जीवन का हिस्सा बनाने के बारे में सोचा।

विश्व के पहले फोटोग्राफर थे जोसेफ नाइसफोर (Vishva ke pahle photographer the Josef Naisfor)

इस धरती पर जो भी चीज़ें आज बहुत आम तरीके से इस्तेमाल की जाती हैं, असल में उनकी शुरुआत के पीछे बहुत सारी मेहनत और असफल कोशिशें होती हैं। ऐसा ही कुछ फोटोग्राफी जगत में और विश्व फोटोग्राफी दिवस के इतिहास में हुआ था, जिसके बाद ही हमें मिला था विश्व का पहला फोटोग्राफर।

आज जहां हमारे लिए दिन में हज़ारों तस्वीरें और सेल्फी लेना बहुत आम बात है, वही सन् 1826 में दुनिया की सबसे पहली तस्वीर लेने में जोसेफ नाइसफोर को 8 घंटे का समय लगा था। जी हां, ये सुनकर बड़ी हैरानी होती है कि सिर्फ एक तस्वीर को 8 घंटे में लिया गया था? इस तस्वीर को पेपर पर उतारने का श्रेय लुइस डॉगेर को दिया जाता है। इन दोनों वैज्ञानिकों ने मिलकर डॉगोरोटाइप प्रक्रिया का आविष्कार किया, और विश्व के पहले फोटोग्राफर की उपाधि ली। यह फोटोग्राफी की सबसे पहली प्रक्रिया है। इस अविष्कार को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत फ्रांसीसी सरकार ने 1839 की थी, और तब से आज तक हम विश्व फोटोग्राफी दिवस का जश्न मनाते आए हैं।

विश्व फोटोग्राफी दिवस किस दिन है? (Vishva Photography Divas kis din hai?)

विश्व फोटोग्राफी दिवस को 1839 में एक दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। 1926 को जब पहली बार विश्व की पहली तस्वीर ली गई थी, तब 19 अगस्त का दिन था। इसलिए हर साल 19 अगस्त के दिन विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। आप भी अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा पल बिताकर, और उन पलो को तस्वीरों में कैद करके विश्व फोटोग्राफी दिवस मना सकते हैं।

खूब तस्वीरें लें और बनाएं यादों का एल्बम (Khoob tasveerein lein aur banayein yaado ka album)

वैसे तो मैं इस बात पर विश्वास रखती हूं कि हमें कुछ पलों को तस्वीर लेने की हड़बड़ी में न पड़कर, सिर्फ उस पल को वहीं जी कर, उसकी यादों को तस्वीरों के रूप में नहीं, बल्कि अपने दिल की यादों की डायरी में कैद कर लेना चाहिए। पर कुछ पल ऐसे होते हैं, जिनकी तस्वीरें लेना बहुत ज़रूरी हो जाता है, जैसे कि हमारे बचपन की यादें या शादी और ग्रेजुएशन के दिन ली गई वो आखिरी तस्वीर जिसमें हम और हमारे सारे दोस्त एक साथ खड़े थे। ये पल कुछ ऐसे हैं जो ज़िंदगी में सिर्फ एक बार ही आते हैं, उनको तस्वीरों में कैद करना तो ज़रूरी है।

मशहूर राइटर रोबिन शर्मा कहते हैं कि अपने जीवन के हर खास पल की तस्वीरें लीजिए। उन पलो को कैमरे में कैद कीजिए, जिन्हें आप बार-बार जीना चाहते हैं और यह भी जानते हैं कि असलियत में यह पल फिर नहीं आएगा। किसी खाली संडे के दिन अपनी अलमारी से पुरानी तस्वीरों की एल्बम निकालकर अपने परिवार के साथ बैठ जाइए। उनके साथ अपनी उन यादों को फिर से जी लीजिए और उन तस्वीरों से जुड़े किस्से अपने पूरे परिवार को बताइए। सच मानिए, वो यादों की डायरी आपके पूरे परिवार को न केवल साथ लाने का काम करेगी, बल्कि बहुत सारी हंसी मज़ाक और खुशियां भी साथ ले आएंगी

क्यों ज़रूरी है ज़िंदगी में तस्वीरें लेना? (Kyun zaruri hai zindagi mein tasveerein lena?)

तस्वीरें कुछ पल के लिए हमारे अतीत को वर्तमान में हमारी आंखों के सामने ले आती हैं। जो बीत जाता है उस पल को हम दोबारा कभी नहीं जी सकते हैं। लेकिन, तस्वीरें उन पलों को जमा करके रखती हैं, जिन्हें हमारा दिल दोबारा देखकर जी उठता है। कई बार हम अपने सबसे करीबी दोस्त या रिश्तेदार से नाराज़ हो जाते हैं, लेकिन जब कभी उनके साथ बिताए गए खुशनुमा पलों को तस्वीरों में देखते हैं तो रिश्ता कहीं न कहीं दोबारा सही हो जाता है। तस्वीरें हमें नहीं भूलने देती हैं हमारा बचपन, हमारा संघर्ष, हमारे अपने और हमारे सपनों को। तस्वीरें के माध्यम हम वो दोबारा जी सकते हैं जो असल में दोबारा जिया नहीं जा सकता है।

आपको तस्वीरें लेना क्यूं पसंद हैं, हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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