गलतफहमियां वक्त पर दूर कर देनी चाहिए

गलतफहमियां वक्त पर दूर कर देनी चाहिए

मनन न कभी नानी-नाना के घर रहना चाहता था और न ही बोर्डिंग स्कूल जाना चाहता था। वो तो अपने घर अपनी मां के साथ रहना चाहता था। छुट्टियों में जब कभी उसे घर भेजा जाता तो वो मम्मी-पापा के साथ रहने की ज़िद करता, पर हर बार छुट्टियां खत्म होते ही उसे फिर स्कूल भेज दिया जाता।

मनन के पिता आर्मी में थे, इसलिए घर से बहुत दूर रहते थे। मां थोड़ी बीमार रहती थी, इसलिए मनन की देखभाल करना मुश्किल हो रहा था। पहले तो मनन को नानी-नाना के घर छोड़ दिया गया, जहां उसके नानी-नाना ने उसका खूब ख्याल रखा और वहीं के एक अच्छे स्कूल में एडमिशन करवा दिया गया। लेकिन, जब मनन दस साल का हुआ तो नाना-नानी की भी उम्र होने लगी और उन्होंने फिर मनन का एडमिशन एक बोर्डिंग स्कूल में करा दिया।

मनन न कभी नानी-नाना के घर रहना चाहता था और न ही बोर्डिंग स्कूल जाना चाहता था। वो तो अपने घर अपनी मां के साथ रहना चाहता था। छुट्टियों में जब कभी उसे घर भेजा जाता तो वो मम्मी-पापा के साथ रहने की ज़िद करता, पर हर बार छुट्टियां खत्म होते ही उसे फिर स्कूल भेज दिया जाता।

एक बार जब मनन छुट्टियों में घर आया तो उसे ये देखकर बहुत ताज्जुब हुआ कि उसकी मां की गोद में एक छोटी-सी बच्ची थी। पूछने पर मम्मी ने बताया कि वो उसकी बहन है।

इससे मनन के दिल को एक बहुत जोर का धक्का लगा। उसका चंचल मन ये नहीं समझ पाया कि उसे क्यों बोर्डिंग स्कूल और नाना-नाना-नानी के घर छोड़ा गया? अपनी नई बहन को देखकर मनन इतना परेशान हो गया था कि छुट्टियां खत्म होने से पहले ही वापस स्कूल जाने की ज़िद करने लगा।

मनन के मन की काफी उलझन थी। मां ने उस वक्त मनन को थोड़ा बहुत समझा दिया और शांत करा दिया। पर मनन के मन में ये बात बहुत बुरी तरह बैठ गई कि उसकी मां ने उससे झूठ बोला कि वो बीमार हैं, जबकि अब वो बिल्कुल ठीक हैं और उनकी एक बेटी भी है, पर उन्होंने मनन को ही क्यों खुद से दूर रखा?

इस बात का असर इतना हुआ कि जैसे-जैसे मनन बड़ा होकर कालेज जाने लायक हुआ, उसने तब घर में रहकर कालेज जाने की बजाय हॉस्टल में रहना चुना। अब मनन के पापा ने भी आर्मी में वक्त से पहले रिटायरमेंट ले लिया था, तो वो भी घर ही रहते थे। मगर, मनन मम्मी-पापा के बहुत बोलने पर भी हॉस्टल जाने की ज़िद करने लगा। ये मनन के पापा से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने सोचा कि मनन के मन में जो गलतफहमियां हैं, उन्हें अब ही दूर कर देना चाहिए। इसलिए उन्होंने मनन के सामने जाकर कहा, “तुम हॉस्टल में रहना चाहते हो न? तो रहो, पर उससे पहले मेरी बात सुन लो।”

“पर मुझे कुछ नहीं सुनना मैं फैसला कर चुका हूं। मैं आप लोगों के साथ नहीं रहना चाहता।” मनन ने अपने पापा से चिढ़ कर कहा।

“हां मत रहना। पर बेटा हमारे लिए तुम्हारे दिल में जो गुस्सा है वो निकाल दो। तुम्हें लगता है तुम्हारी मां ने तुमसे झूठ कहा कि वो बीमार है और तुम्हें खुद से दूर रखा? पर क्या तुम जानते हो ये सच है कि वो सच में बीमार थी? तुम्हें पता है तुम्हारी मां के दिल में छेद था, जिसका हमें ट्रान्सप्लांट कराना पड़ा। और वो बच्ची यानी तुम्हारी बहन उसी औरत की बच्ची है, जिसका दिल तुम्हारी मां के अंदर धड़क रहा है।” ये सब बातें सुनने में कोई फिल्म की कहानी-सी लग रही थी, जिससे झुंझला कर मनन बोला, “ये कहा मज़ाक है पापा? मैं अब कोई सात साल का मनन नहीं रहा जो आप कुछ भी बोलेंगे और मैं मान लूंगा।”

इतने में मनन की मां भी उन दोनों के पास आकर सारी बातें सुन चुकी थी और फिर मां ने मनन को अपने ट्रान्सप्लांट का निशान दिखाया और कहा, “क्या तुम्हें अब भी यकीन नहीं? बेटा हम मजबूर थे। मैं तेरी देखभाल नहीं कर सकती थी, इसलिए मैंने तुम्हें खुद से दूर किया था। और जानता है हमने तेरी बहन को गोद क्यों लिया? क्योंकि उस बेचारी बच्ची की मां एक सड़क हादसे में मर गई और उसका दिल उसके परिवार ने मुझे दे दिया। उस औरत का हम पर एहसान था। तुमको हमने ये सब कभी इसलिए नहीं बताया क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि तू ये सब जान कर परेशान हो। अब तू बता क्या हमने कुछ गलत किया?”

अपनी मां की सारी बातें सुनकर मनन के दिल में जो सालों पुराना गुस्सा भरा पड़ा था, वो सब आंसुओं में बहने लगा। वो रोते-रोते मां-पापा से माफी मांगने लगा। मां और पापा ने मनन के आंसू पोंछ कर उसे गले लगा लिया।

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