तमिल संगम साहित्य

दक्षिण का ज्ञान देते तमिल संगम के महाकाव्य

हम जब भारत के महाकाव्यों की बात करते हैं, तो अक्सर रामायण और महाभारत ही ध्यान में आते हैं। उत्तर भारत के अधिकतर निवासी दक्षिण भारत के महाकाव्यों के बारे में कम जानकारी रखते हैं।

दक्षिण भारत (South India) में इस तरह के पांच महाकाव्य करीब 1500 से 2000 साल पहले रचे गए थे। इन महाकाव्यों में हमें एक अलग ही रस और रंग मिलता है। ये महाकाव्य दर्शाते हैं कि कैसे 2000 वर्ष पहले बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म दक्षिण भारत में पहुंचे थे और उन्होंने वहां के लोक धर्म के साथ मिलकर एक नई संस्कृति (Nayi sanskriti) का विकास किया था। इन महाकाव्यों से हमें दक्षिण भारतीय परंपरा के बारे में बहुत ज्ञान मिलता है।

शिल्लपदिकारम इनमें से सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य (Mahakavya) है। इसका शाब्दिक अर्थ है नूपुर (पायल)। दक्षिण भारत में नूपुर को सुहाग का चिह्न माना जाता है। इस महाकाव्य में कण्णगी नामक पतिव्रता नारी की कहानी है। कण्णगी और उसके पति कोवलम दोनों समृद्ध समुद्री व्यापारियों की संतानें थीं। कोवलम, माधवी नामक गणिका से इतना प्रेम करता था कि उसने माधवी पर अपनी पूरी संपत्ति गंवा दी। बाद में माधवी ने उसे घर से निकाल दिया। इससे दुखी होकर कोवलम अपनी पत्नी कण्णगी के पास लौट आया और दोनों नया जीवन शुरू करने के लिए मदुरई चले गए।

कोवलम ने मदुरई में व्यापार शुरू करना चाहा, पर इसके लिए उसके पास पूंजी नहीं थी। इसलिए वह कण्णगी की पायल बेचने मंडी गया। उस समय तक कोवलम की स्थिति काफी दीन-हीन जैसी थी। वैसे दीन आदमी के पास उतने कीमती पायल देखकर वहां के सुनार को लगा कि कोवलम राजघराने से चोरी करके लाया है। इसलिए वह उसे राजा के पास ले गया। राजा ने कुछ भी पूछताछ किए बिना ही उसे दंड देकर उसका सिर काट दिया। जब कण्णगी को इस बात का पता चला तो वह क्रोधित हो गई। रानी के पायल मोतियों से जड़े थे, जबकि कण्णगी के पायलों में हीरे और रत्न थे। इस बात से उसने साबित कर दिया कि उसके पति निर्दोष थे। अपने प्रकोप में कण्णगी ने देवी का रूप धारण कर लिया और राजा व उसके राज्य को श्रापित कर भस्म कर दिया। यह पहली बार है कि किसी ग्रंथ में हमें एक स्त्री में शक्ति का रूप (shakti ka roop) दिखाई दिया है।

दूसरे तमिळ महाकाव्य का नाम मणिमेखलै (मणिमेकलई) है। शिल्लपदिकारम की कथा के अनुसार कोवलम का माधवी नामक गणिका के साथ प्रेम संबंध था। उनकी मणिमेखलै नाम की एक बालिका थी, जो गणिका नहीं, बल्कि एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थी। लेकिन एक राजा और नगर के पुरुष सब उससे प्रेम करते हैं और उसे मुक्ति नहीं दे रहे थे। आखिर में उसकी भिक्षुणी बनने की इच्छा मणिमेखला नामक एक बौद्ध देवी ने पूरी की, जो समुद्र की देवी थी। इस कहानी में हमें भिक्षुणियों के बारे में पता चलता है।

तीसरे तमिळ महाकाव्य का नाम कुंडलकेशी है। यह भी एक व्यापारी परिवार से संबंधित है। इस परिवार की बेटी कुंडलकेशी एक चोर को कारावास से बचाती है। इस दौरान कुंडलकेशी का उस चोर से प्रेम हो जाता है और वह उससे विवाह कर लेती है। पर कुछ दिनों बाद उस चोर की नीयत बदल जाती है। वह कुंडलकेशी के धन को चुराने और उसे मारने की कोशिश करता है। लेकिन, होशियार कुंडलकेशी अपने पति को ही मार देती है। उसके बाद वह एक  बौद्ध भिक्षुणी बन जाती है। बाद में वह जैन भिक्षुणी बन जाती है।

तीनों महाकाव्यों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में भारत में किसी स्त्री के लिए केवल तीन विकल्प थे- या तो वह विवाहित पतिव्रता नारी हो सकती थी या कई प्रेमियों वाली गणिका हो सकती थी या वह गृहस्थ जीवन का त्याग करने वाली भिक्षुणी। तीनों काव्यों में बौद्ध धर्म और तमिळ लोक धर्म के बारे में हमें बहुत ज्ञान मिलता है।

तीनों महाकाव्य व्यापारी परिवारों से जुड़े हुए हैं और तीनों में एक स्त्री महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे पता चलता है कि दक्षिण भारत में संभवतः व्यापारी समाज की अहम भूमिका रही होगी और स्त्रियों का भी अपना महत्व रहा होगा। भारत को समझने के लिए संस्कृत साहित्य के अलावा दूसरे साहित्यों का भी अध्ययन करना आवश्यक है। इनमें से प्राचीन तमिळ साहित्य विशेष है, जो प्राचीन साहित्यों में एक है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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