देख पाना

मैं भी देख सकती हूं…

जिस दिन उसे पता चला कि गीता का कॉर्निया ट्रांसप्लांट होने वाला है उस दिन से ही देख पाने के एहसास से उसके दिल में मिली-जुली भावनाएं हिलोरे मार रही थी।

गीता ने बड़े ही मधुर स्वर में राम से पूछा, ‘क्या तुम्हारे मन में कभी यह उत्सुकता होती है कि मैं कैसी दिखती हूं?’ राम उसकी बगल में ही सुगंधित चाय का प्याला थामे बैठा था। वह गीता के इस मासूम सवाल को सुनकर मुस्कुराए बिना न रह सका। राम ने अपनी कल्पना को शब्दों में अभिव्यक्त करते हुए कहा, ‘मैंने तुम्हारे बारे में बहुत सारी चीज़ों की कल्पना की है। मैं सोचता हूं कि तुम्हारी दो बड़ी-बड़ी सुंदर आंखें, एक छोटी सी नाक, लंबे-लंबे लहराते बाल और बच्चों जैसी भोली-भाली मुस्कान है’। ‘पर कोई कैसा दिखता है यह कल्पना में देख पाना उन लोगों के साथ न्याय करना नहीं होगा ना। मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि तुम मेरी कल्पना से कहीं अधिक सुंदर हो’। राम का जवाब सुनकर गीता के चेहरे पर बड़ी मुस्कान फैल गई। पर राम इसे देख नहीं पाया।

राम ने यह कहते हुए बातचीत का विषय बदल दिया कि, ‘क्या तुम कल होने वाले ऑपरेशन के लिए तैयार हो’? जिस दिन से उसे पता चला कि गीता का कॉर्निया ट्रांसप्लांट होने वाला है, उस दिन से ही उसके दिल में मिली-जुली भावनाएं हिलोरे मार रही थी।

शुरू-शुरू में तो वह यह सोचकर खुश था कि गीता देख पाएगी। आखिरकार जन्म से दृष्टिहीन किसी व्यक्ति के लिए देख पाना ही सबसे अच्छी बात होती होगी ना। लेकिन ज्यों-ज्यों ऑपरेशन का दिन नज़दीक आता जा रहा था वह बेसब्र होने लगा था। वह नहीं चाहता था कि कहीं कोई गड़बड़ हो।

दूसरी ओर गीता की अपनी ही चिंता थी। जब उसने पहली बार राम की आंखों से देख पाने की संभावना (Possibility of seeing) के बारे में सुना था उसने खेद भरे स्वर में राम से कहा था, ‘मेरी इच्छा थी कि मेरी बजाय दृष्टि का यह उपहार तुम्हें मिलता’। राम ने खुद भी सोचा था। वह भी प्रकृति के रंगों और सौंदर्य को निहारना चाहता था। पर किसी भी दूसरी चीज़ से ज्यादा वह चाहता था कि गीता दुनिया को और उसके सच्चे रंगों को देख पाए।

अगले दिन सुबह वे दोनों ऑपरेशन के लिए अस्पताल पहुंचे। राम डॉक्टर से बातचीत कर रहा था और गीता ऑपरेशन की तैयारी। राम गीता के पास गया। वह अपनी मुस्कान के पीछे छिपी आशंका को छुपाने की कोशिश कर रहा था। उसने गीता से पूछा, ‘तुम्हें कैसा लग रहा है’? गीता ने कहा, ‘थोड़ी नर्वस हूं। पर तुम्हें साथ पाकर खुश हूं’।

ऑपरेशन ठीक-ठाक हो गया। लेकिन अभी कठिन समय समाप्त नहीं हुआ था। यह था उसकी पट्टियां खुलने से पहले हफ्तों का इंतज़ार।

डॉक्टर ने गीता को बताया कि उसकी नज़र थोड़ी धुंधली हो सकती है। पर जिस व्यक्ति ने जन्म से कभी कुछ देखा ही न हो उसके लिए धुंधली नज़र भी किसी उपहार से कम न थी। जब डॉक्टर ने गीता की आंखों पर बंधी पट्टी धीरे से खोली तो राम की चिंता बढ़ गई।

कुछ क्षणों के बाद राम ने नर्वस होते हुए उससे पूछा, ‘तो क्या अब तुम देख सकती हो?’। गीता ने जवाब दिया, ‘राम, तुम ठीक वैसे ही दिखते हो जैसी मैंने तुम्हारे बारे में कल्पना की थी।’

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