विश्वभर के बौद्ध, जैन, हिंदू और बोन धर्म असाधारण रूप से अलग होने के बावजूद एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। आप कहेंगे, किस बात से बंधे हुए हैं? एक खूबसूरत पर्वत से। हिमालयन रेंज की गोद में बैठा बर्फ से ढका शांतिपूर्ण 21,778 फीट ऊंचा माउंट कैलाश (Mount Kailash)। यह अजेय पर्वत इन धर्मों की आस्था का केंद्रबिंदु है।
हिंदू मानते हैं कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है। बौद्धों के लिए यह पहाड़ गंग रिंपोचे अर्थात गुरु रिंपोचे का निवास स्थान है। जैनों के लिए यही जगह है जहां उनके पहले गुरु ऋषभ ने ज्ञान प्राप्त किया था। बोन आस्थाओं के लिए यह पर्वत आकाश की देवी सिपाई-में की गद्दी है।
इस तरह के शानदार पर्वत पर बड़े पैमाने पर पर्यटकों का आना लाज़िमी है। साल दर साल दुनियाभर से हजारों भक्त, तीर्थयात्री और पर्यटक समान रूप से एकित्रत होकर इस महान कैलाश पर्वत की कठिन यात्रा करते हैं।
माना जाता है कि माउंट कैलाश की तीर्थयात्रा सबसे कठिन तीर्थयात्राओं में से एक है। 52 किलोमीटर की यात्रा जिसकी शुरुआत 15,000 फीट ऊंचाई से होती है, यह यात्रा शुरू करना किसी साहस से कम नहीं है। कमज़ोर दिल वालों के लिए तो यह बिलकुल भी आसान नहीं है। शारीरिक चुनौतियों के अलावा यह यात्रा करने के लिए काफी दृढ़ता चाहिए। इसकी तैयारी के लिए ही कभी हफ्तों और कभी महीनों तक प्रशिक्षण लेना पड़ता है। ऊंचाई से होने वाली परेशानी, हड्डियां कंपाने वाली ठंड और ऑक्सीजन की कमी के कारण यह सफर आसान नहीं होता। असली परीक्षा शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक होती है। यह परीक्षा पास करने वालों का एक गहन आध्यात्मिक अनुभव इंतजार कर रहा होता है।
माउंट कैलाश चारों ओर से कोरा पर्वतों (kora in Mount Kailash) से घिरा है। हिंदू और बौद्ध जहां क्लॉक वाइस (घड़ी की दिशा में) चलते हैं, वहीं बोन और जैन धर्म के लोग एंटी क्लॉक वाइस (घड़ी के विपरीत दिशा में) चलते हैं। कैलाश-कोरा पर्वत की शुरुआत तिब्बत के छोटे से शहर दारचेन से होती है। मई और अक्टूबर के बीच भोजन और आवास से व्याप्त एकमात्र शहर दारचेन सैलानियों से भरा रहता है।
दारचेन में रात गुज़ारने के बाद तीर्थयात्री ल्हा चू रिवर की बंजर घाटी की ओर प्रस्थान करते हैं। घाटी के मध्य से बहने वाली ल्हा चू नदी तीर्थयात्रियों के लिए जल का एकमात्र साधन है।
चुकु ब्रिज से नदी पार करने के बाद ड्रोलमा-ला की लंबी चढ़ाई शुरू होती है। यह चढ़ाई इस सर्किट की सबसे कठिन चढ़ाई में से एक है। माउंट कैलाश के शिखर के मनमोहक दृश्यों के अलावा चुकु मोंटेसरी और दिरा-पुक मोंटेसरी के बीच की दूरी कोरा के सबसे खूबसूरत स्थान के रूप में पहचानी जाती है।
कुछ लोग एक दिन में यात्रा खत्म कर लेते हैं, जबकि अन्य को लगभग तीन दिन लग जाते हैं। सफर पूरा करने के अलग-अलग तरीके हैं, जिसमें सबसे कठिन साष्टांग दंडवत या प्रणाम करते हुए यात्रा करना है। यात्रा के इस रूप को चुनने वाले लोग ज़मीन पर लेटे हुए सामने की तरफ हाथ फैलाए रहते हैं। जिस बिंदू पर उनकी अंगुलियां पहुंचती हैं, वहां से उनका अगला कदम शुरू होता है। वे उठते हैं, वहां तक चलते हैं और फिर से साष्टांग दंडवत करते हैं। आमतौर पर इसमें लगभग तीन सप्ताह लग जाते हैं। पौराणिक मान्यता है कि पर्वत की 108 परिक्रमा पूरी करके ज्ञानोदय प्राप्त किया जा सकता है।
लोगों को यात्रा करते देखना ही मनोहारी होता है। जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग कठोर मौसम से लड़ते हुए पैदल, याक पर, साष्टांग प्रणाम करते हुए, कष्टदायक रूप से आगे बढ़ते जाते हैं। यहां तक कि यह लोग वापस जाने की अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को भी नहीं सुनते।
यह माना जाता है कि यह पर्वत ब्रह्मांड की नाभी है और यहां पर की जाने वाली आराधना बेजोड़ है।
हिंदुओं, जैनियों, बोन और बौद्धों के प्रति सम्मान रखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब तक किसी ने इस पर्वत की चोटी पर पैर नहीं रखा है। न ही कैलाश पर्वत पर पहुंचने का प्रयास किया है। यह दुनिया का एकमात्र पर्वत है जो आज तक अजेय है। धर्म से नाता न रखने वाले लोगों को भी कैलाश अपनी ओर आकर्षित करता है।
कैलाश ही क्यों?
कैलाश पर्वत ज्ञानोदय का वादा नहीं करता। हालांकि इसकी यात्रा जीवन पर अमिट प्रभाव छोड़ने वाली होती है। यह यात्रा एक रहस्य प्रकट करने वाली, उमंग भरने वाली, जीवन को नया दृष्टिकोण देने वाली या उम्रभर के लिए सुखद अनुभव हो सकती है।
तीर्थयात्रियों का कहना है कि वे न केवल कैलाश की सफेद चोटी और मानसरोवर झील के फिरोजा नीले रंग से आकर्षित होकर यात्रा करते हैं। बल्कि अनेक बार वे अपनी मर्जी से भी यात्रा करने का निर्णय लेकर उसे पूरा करते हैं।
यूं तो पवित्र कैलाश पर्वत पर किसी ने विजय प्राप्त नहीं की है, लेकिन इसकी तीर्थयात्रा कर अनेक लोगों ने अपने अंतर मन को जीतने में सफलता हासिल की है।