धर्मशाला

धर्मशाला: घर से दूर एक घर

अपने आप को तलाशने के प्रयास में सैकड़ों लोग मैक्लोडगंज (धर्मशाला) जाते हैं। कुछ जीवन के प्रति एक नए दृष्टिकोण के साथ लौटते हैं, कुछ वहीं बस जाते हैं।

नाम, पेशा, धर्म, वंश और भूमि एक व्यक्ति की पहचान बनाती है। इनमें से किसी एक पहचान के अचानक गायब हो जाने से किसी के अस्तित्व के बारे में एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। अपने आप को तलाशने के प्रयास में विभिन्न आयु वर्ग के कितने ही लोग हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के एक छोटे से शहर मैक्लोडगंज (Mcleodganj) में अलग-अलग यात्राओं पर आते हैं। जबकि कुछ जीवन के प्रति एक दृढ़ दृष्टिकोण (Strong point of view) लेकर लौटते हैं, तो अन्य सुन्न हो जाते हैं और कुछ स्थायी रूप से यहीं बस जाते हैं। माना जाता है कि धौलाधार श्रेणी के हरे-भरे ढलानों की शांति का कारण निर्वासन के लिए आए बौद्ध भिक्षुओं की उपस्थिति है।

गंगचेन किशॉन्ग एक तिब्बती वाक्यांश है, जिसका अर्थ है ‘बर्फ की खुशनुमा घाटी’ जो धर्मशाला (Dharamshala) में तिब्बती बौद्ध धर्म का एक स्थल है। इसकी जड़ों में नेपाली शाक्य राजा, सिद्धार्थ गौतम बुद्ध की शिक्षाएं बसी हैं। तिब्बत अलग-अलग जनजातियों की भूमि है जिस पर स्वदेशी बोन धर्म का प्रभाव है। वहां 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हिमालय के पार तिब्बत और भारत के बीच एक बौद्ध सांस्कृतिक आदान-प्रदान देखा गया। भारतीय संतों को स्थानीय लोगों में बौद्ध शिक्षा का प्रचार करने के लिए तिब्बत में आमंत्रित किया था। यह अनुमान लगाया जाता है कि धर्मशाला में प्रचलित विशिष्ट वज्रयान बौद्ध धर्म, बोन धर्म की प्रथाओं के साथ भारत में निहित तंत्रवाद का एक मिश्रण है। 1959 में तिब्बती बौद्ध धर्म (Tibbati Baudh Dharm) के आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा, तिब्बत में चीनी कम्युनिस्ट शासन के चंगुल से बचकर भारत में अपनी ‘निर्वासन सरकार’ को स्थापित करने के लिए आए थे।

पहचान के संकट से घिरे इन बेघर प्रवासियों ने धर्मशाला जैसे एक ऐसे शहर में बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाने के लिए चुना, जिसने उनके अस्तित्व में एक नई जान फूंक दी थी। कई लोग बौद्ध धर्म की शिक्षा शुरू करने के लिए अपने गृहनगर (होम टाउन) लौटने की इच्छा रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक तिब्बती बौद्ध अपने पैतृक वंश से मज़बूती से जुड़ा हुआ होता है और कहा जाता है कि उन्होंने वर्षों तक अपनी भूमि की रक्षा की है। उनके पहाड़ों और पवित्र झीलों पर आक्रमण को धार्मिक विश्वासों का उल्लंघन और उनके पूर्वजों की विरासत का विनाश माना जाता है।

भिक्षुओं और ननों को लोकप्रिय रूप से लामाओं के रूप में जाना जाता है। ये सामूहिक रूप से अपनी विरासत की रक्षा करने और सांसारिक इच्छाओं से खुद को मुक्त करने के लिए बौद्ध धर्म-निर्वाण या आत्मज्ञान के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कायाकल्प को इस लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग माना जाता है।

अपने पैतृक विश्वासों के रास्ते में आने वाली बुरी ऊर्जा को खत्म करने के लिए, लामा मंत्र लिखे हुए अलग-अलग आकार के प्रार्थना पहियों को घूमाते हैं, जो हिमालय के बौद्ध धर्म की एक अनोखी प्रथा है। यह कहा जाता है कि चक्रस्वामरा मंडला एक ध्यान की तकनीक है, जो स्वयं और दुनिया के मौलिक अनुभवों में जड़ से परिवर्तन लाती है। यह भी माना जाता है कि यह प्रक्रिया किसी व्यक्ति को अपनी विशिष्टता का सामना करने में सक्षम बनाती है।

मैक्लोडगंज (धर्मशाला) में नामग्याल मठ (Namgyal math) एक बौद्धिक केंद्र है जहां भिक्षु पढ़ाते हैं, अपनी दैनिक प्रथाओं में भाग लेते हैं और मौन का अवलोकन करते हुए अपने स्वयं के मन का भी विश्लेषण करते हैं। प्रत्येक भिक्षु अपने अतीत के अनुभवों के आधार पर दुनिया की एक व्यक्तिगत धारणा रखता है, जिसे ढूंढने से उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का पता चलता है। जब सभी एक साथ ध्यान करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की पहचान बनाने में मदद कर रहा है। कई लोग अपने निर्वाण को प्राप्त करने में देरी करते हैं ताकि दूसरों को इसे हासिल करने में मदद मिल सके।

आत्मज्ञान के एक सामान्य अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विविध विचारधाराओं का एक साथ काम करने का एक रंगीन प्रतिबिंब नृत्य में दिखता है। यह त्योहारों के दौरान हिमालय के भिक्षुओं द्वारा किए गए कई कर्मकांडों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि यह सम्मोहित करने वाला नृत्य सटीक ध्यान को दर्शाता है, जिसमें एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को पारित करने में गहन अभ्यास की आवश्यकता होती है। भिक्षु अपनी पहचान को छिपाने के लिए मुखौटे पहनते हैं, देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी वैकल्पिक पहचान को दर्शाते हैं। अक्सर इन आवश्यक कौशलों में पूर्णता हासिल करने के लिए पूरा जीवन लग जाता है।

मैरून रंग (धरती माता से जुड़े रंग) में लपेटे हुए हुई कई लोगों ने अपने बचपन के उन चित्रों को संभाल कर रखा है, जब वे अपनी ज़मीन से भाग गए थे। जबकि कुछ चित्रों में एक व्यक्ति को साधु के भेष में बंदूक की नोक पर गोली मारते हुए दिखाया गया है। वहीं कुछ अन्य लोगों ने हिमालय को पार करते हुए पैरों के निशान की एक श्रृंखला को चित्रित किया है। धरती माता के पालने में बुद्धत्व के माध्यम से कई भूमिहीन लामाओं ने नई पहचान बनाई है जबकि अन्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

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