राष्ट्रीय पर्यटन दिवस: सफर और शिक्षा बराबर कैसे है?

हम 100 किताबों को पढ़ कर जितनी शिक्षा हासिल नहीं कर सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा यात्रा से शिक्षा हासिल कर सकते हैं। किताबें पढ़ कर हम किसी भी विषय के थ्योरी को तो समझ सकते हैं, लेकिन यात्रा हमें असलियत से वास्ता करवाती है।

सफर अपने आप में एक ऐसा शब्द है, जिसमें लगभग हर चीज़ समाहित है। सफर में ज़िंदगी भी है, तो संस्कृति (Culture) भी। सफर हम सिर्फ घूमने-फिरने के ही लिए नहीं करते हैं बल्कि सफर में हम बहुत सारा ज्ञान (Knowledge) अर्जित करते हैं। सफर चाहे हम किसी भी मकसद से कर रहे हों, यह हमें बहुत कुछ सिखाता है। किसी भी यात्रा (Travel) पर जब भी हम जाते हैं, तो रास्ते में बहुत से लोगों से मिलते हैं। बहुत-सी नई चीज़ों से रूबरू होते हैं। ये सभी हमें कुछ न कुछ नया सीखा के जाती है। हम कभी नई-नई संस्कृति से रूबरू होते हैं, तो कभी भाषाओं और रहन-सहन से भी। इन चीज़ों को हम किताबों में पढ़ तो सकते हैं, लेकिन किसी भी चीज़ को सामने से देखने और समझने का मज़ा ही कुछ और है।

हम 100 किताबों को पढ़ कर जितनी शिक्षा हासिल नहीं कर सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा यात्रा से शिक्षा हासिल कर सकते हैं। किताबें पढ़ कर हम किसी भी विषय के थ्योरी को तो समझ सकते हैं, लेकिन यात्रा हमें असलियत से वास्ता करवाती है। सफर में हर दिन हम कुछ न कुछ नया अनुभव करते हैं और वह शिक्षा लेते हैं, जो किसी स्कूल या कॉलेज में हम आसानी से हासिल नहीं कर सकते हैं।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको राष्ट्रीय पर्यटन दिवस के अवसर पर बताते हैं कि हमारे लिए सफर और शिक्षा बराबर कैसे है।

राष्ट्रीय पर्यटन दिवस कब मनाया जाता है? (Rashtriya Pryatan Divas Kab manaya jata hai?)

भारत में राष्ट्रीय पर्यटन दिवस (National Tourism Day) 25 जनवरी को मनाया जाता है। राष्ट्रीय पर्यटन दिवस 2024, 25 जनवरी के दिन मनाया जाएगा।  हालांकि, विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day) 27 सितंबर को मनाया जाता है। पर्यटन दिवस मनाने का मुख्य मकसद पर्यटन के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही इससे जुड़े रोज़गार को बढ़ाना है। साथ ही लोगों को यात्रा के महत्व और टूरिस्ट स्पॉट के बारे में जानकारी देना भी राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाने का मकसद है।

सफर करने से मिलने वाली सीख (Safar karne se milane wali seekh)

जीवन को खुल कर जीने की शिक्षा

अगर हम सही मायने में समझें, तो सफर बहुत बड़ा शिक्षक होता है। सफर करने से हम जीवन के महत्व को तो समझते ही हैं। साथ ही हम जब घर से निकलते हैं और घुमक्कड़ी करते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं, तो पाते हैं कि दुनिया में खुश रहने के लिए कितना कुछ है। सफर करने से हमें जीवन को खुल कर जीने की सीख मिलती है। इस्माइल मेरठी ने भी लिखा था, ‘सैर कर दुनिया की गाफिल, ज़िंदगानी फिर कहां? ज़िंदगी गर कुछ रही, तो नौजवानी फिर कहां।’

सही निर्णय लेने की क्षमता

जब भी हम सफर करते हैं, तो नये-नये जगहों पर जाते हैं। इस दौरान हर तरह की परिस्थितियों का सामना करते हैं। मुश्किलों का भी। इस दौरान हमारे साथ कोई शिक्षक नहीं होता है, जो हमें सही रास्ते या फिर तरीके के बारे में बताए। ऐसे में हम सभी तरह के माहौल में सर्वाइव करना सीखते हैं। इससे दौरान निर्णय लेते हैं, वो सही भी होता है और गलत भी। फिर हमें एहसास होता है कि हमनें क्या सही निर्णय लिया है और क्या गलत। इससे सही निर्णय लेने की हमारी क्षमता बढ़ती है।

सोचने की क्षमता बढ़ती है

जब भी यात्रा करते हैं, तो किसी न किसी नयी चीज़ के तलाश में होते हैं। साथ ही हैप्पीनेस और आनंद की खोज कर रहे होते हैं। ऐसे में आपकी सोच एक दायरे से बाहर जाकर सोचना शुरू करती है और आपको सही रास्ते पर लेकर चलती है। इससे आपकी सोच में पॉजिटिविटी भी समाहित होते जाती है। इसके अलावा आपके अंदर मदद करने की भी सोच विकसित होती है।

खूबसूरती का एहसास

सफर के दौरान आप अलग-अलग जगहों का दौरा करते हैं। इस दौरान आप दुनिया की खूबसूरती से भी रूबरू होते हैं। आप नये लोगों से मिलते हैं, तो उनकी अच्छाईयों के बारे में जानते हैं। इससे आपके अंदर से लोगों को लेकर नेगेटिविटी दूर होती है और आपको एहसास होता है कि ये दुनिया काफी खूबसूरत है। दुनिया की इस सुंदरता को देख कर आपको जीवन को लेकर नई प्रेरणा मिलती है। साथ ही साथ नई-नई उम्मीदें भी जगती हैं।

केपेबल होने का होता है एहसास

आप जब अकेले यात्रा करते हैं, तो इस दौरान आपकी मदद करने के लिए न तो परिवार के लोग होते हैं और न ही यार,दोस्त। आपके अंदर जो क्षमता होती है, उसी के हिसाब से आप डिसिजन लेते हैं और सफर करते हैं। इससे आपके भीतर छिपी क्षमता बाहर निकलती है और आपको अपनी क्षमता का एहसास होता है।

हम जो कुछ और जितना पढ़-लिख कर सीख सकते हैं, वो ही और उतना ही सफर करके भी। किताबों में लिखी बातों का जीवंत चेहरा है सफर करना। दोनों बिल्कुल एक जैसे होते हैं।

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