क्या आप जानते हैं भारत में सबसे ज्यादा गर्मी कहां पड़ती है? आप बिल्कुल सही समझे हैं, इसका आंसर है राजस्थान। लेकिन मैं अगर आपसे कहूं कि राजस्थान में एक जगह ऐसा भी है, जहां का मौसम हमेशा ठंडा बना रहता है, तो क्या आपको मेरी बात पर यकीन होगा। खैर चलिए अब आपको मैं लेकर चलता हूं राजस्थान (Rajasthan) के बेहद खूबसूरत और एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू (Mount Abu) के शानदार सफर पर। तो अब आप इस लेखक के साथ इस शानदार सफर को इंज्वॉय कीजिए। माउंट आबू राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है और यहां के बारे में कहते हैं कि राजस्थान का समर कैपिटल भी है। माउंट आबू प्राचीन काल से ही साधू-संतों का रहने वाला स्थान रहा है और कथाओं के अनुसार हिंदू धर्म के 33 कोटि के देवी-देवता यहां पवित्र पर्वत पर भर्मण करते थे। साथ ही यहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी भी यहां आये थे और उसके बाद से माउंट आबू जैन धर्म को मानने वालों के लिए पवित्र स्थल बन गया।
माउंट आबू धार्मिक दृष्टिकोण से जैन धर्म के लिए स्पेशल स्थान रखता है। यहां 13वीं सदी में दिलवाड़ा के जैन मंदिर को बनाया गया था। दिलवाड़ा मंदिर (Dilwara Mandir) पांच मदिरों का समूह है। इसमें सबसे पूराना विमल वसाही मंदिर है। जो कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर को संगमरमर को तराशकर कर बनाया गया है। इसके अलावा यहां लूना वसाही मंदिर, पित्तलहार मंदिर, श्री पार्श्वनाथ मंदिर, श्री महावीर स्वामी मंदिर हैं। इन मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। दिलवाड़ा मदिंर घूमने के बाद मैं राजस्थान और अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोट गुरु शिखर को देखने निकल पड़ा। माउंट आबू से गुरु शिखर की दूरी लगभग 15 किमी है। माउंट आबू की सबसे खास बात यह है कि यहां एक जगह से दूसरे जगह जाने के दौरान सड़कों पर काफी सारे मोड़ से होकर गुजरना पड़ता है। इस दौरान आपको चारों ओर हरे-भरे पेड़ और प्राकृतिक सुंदरता देखने को मिल जाएगा, जो कि आपके सफर को शानदार बना देता है। इन खूबसूरती को निहारते-निहारते आपका सफर कब पूरा हो जाता है आपको पता ही नहीं चलता है। मैं जब गुरु शिखर की ओर जा रहा था, तो रास्ते में बारिश शुरू हो गई, जिसने हमारे यात्रा को आनंद से भर दिया। जब मैं गुरु शिखर के पास पहुंचा, तो भी बारिश हो रही थी, तो हमने गाड़ी मैं बैठे-बैठे ही मिठाई, नकमीन सहित अन्य जायकों का लुत्फ उठाया।
गुरु शिखर (Guru Shikhar) की ऊंचाई 1722 मीटर है। यहां पर भगवान विष्णु के रूप में गुरु दत्तात्रेय का मंदिर है गुफा में। जहां पहुंचने के लिए आपको सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। बारिश होने की वजह से हमने मंदिर तक पहुंचने के लिए किराये पर छतरी ले ली। लेकिन कुछ ही मिनटों में बारिश रुक गई और हम सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के पास पहुंचे। इस दौरान आसपास बिक रहे मैगी की खूशबू हमें अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। सीढ़ियों के किनारे राजस्थानी हस्तशिल्प की काफी दुकानें है, जिसमें अलग-अलग तरह के हस्तशिल्प सामग्री आपको मिल जाएगा। इन सभी को अपनी नज़रों से निहारते-निहारते मैं गुरु शिखर के चोटी पर पहुंच गया। यहां पहुंचने के बाद मैं मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने पहुंचा। ऊंची चोटी पर बने इस मंदिर में पहुंचते ही आपको शांति महसूस होगा, जो कहीं और आपको नहीं मिलने वाला है। अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी पर खड़ा होकर यहां की खूबसूरती को निहारना एक अलग ही अनुभव देता है। यहां पर आप मौसम के बदलते रूप को बहुत पास से महसूस कर सकते हैं। यहां एक पल धूप खिलता है, तो दूसरे ही पल आसमान में बादल छा जाते हैं। कभी बादलों का समूह आपको छूकर निकल जाएगा, तो कभी आपके वारों ओर छाई धुंध की वजह से आपको अपने आसपास का क्षेत्र भी दिखना बंद हो जाता है।
गुरु शिखर से वापस आते ही मैं पहुंचा शूटिंग प्वाइंट। यहां से आसपास के पहाड़ों व घाटियों का बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखता है। यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग हुई, इसलिए इसका नाम शूटिंग प्वाइंट रख दिया गया है। इस समय तक शाम होने को आ गई थी, तो मैंने सोचा की क्यों ना यहां का सूर्यास्त देख लिया जाए। बादलों के बीच लाल-नारंगी सूरज की किरणों से सिंदूरी होती शाम का सुंदर दृश्य काफी ही मनमोहक था। अगले दिन फिर से इस सफर की शुरुआत मैंने की और पहुंच गया नक्की झील।
नक्की झील (Nakki Jheel) के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसे देवताओं ने राक्षसों से बचने के इसे अपने नाखूनों से खोदा गया था। नक्की झील के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है कि रसिया बालम नाम के गरीब आदमी को यहां की राजकुमारी से प्रेम हो गया था। राजकुमारी भी उसे चाहती थी। राजा ने विवाह की शर्त रखी कि जो भी व्यक्ति एक रात में झील खोद देगा उसी से राजकुमारी की शादी करा दी जाएंगी। रसिया बालम ने राजकुमारी से शादी करने के लिए रातभर में नक्की झील को खोद दिया, लेकिन राजकुमारी की मां रसिया बालम से नफरत करती थी। इसलिए उसने रसिया बालम को धोखा देने के लिए सुबह होने से पहले ही मुर्गे की बांग लगा दी। रसिया बालम अपना प्रेम नहीं मिलने की वजह से दुखी होकर जान दे दिया। यहां पर रसिया बालम तथा राजकुमारी का मंदिर भी स्थित है। रसिया बालम और राजकुमारी की प्रेम कथा के साथ ही इस सफर को मैं यही खत्म करता हूं।
सोलवेदा के साथ इस तरह के और भी यात्रा पर चलने के लिए पढ़तें रहे सोलवेदा।