कुर्ग की सैर

बादलों से घिरे पहाड़, कॉफी के बागान ही है कुर्ग की असल पहचान

ज़रा सोचिए सुबह-सुबह आपकी नींद खुले और बादलों से घिरे पहाड़ दिख जाए, हल्की बारिश हो रही हो, मौसम में हल्की ठंडक हो, बड़े-बड़े पेड़ों और कॉफी के बागानों से झिंगूर की टर्र-टर्र वाली आवाज़ आती हो...कुछ ऐसा ही है अपना कुर्ग। जानने के लिए पढ़ें ये आर्टिकल।

ऑफिस में दो-चार दिनों की छुट्टी थी, तो मैं निकल पड़ा कुर्ग के सफर पर। बेंगलुरु बस स्टैंड से टिकट कराकर चढ़ गए। कंडक्टर से पूछा, अन्ना कुर्ग कितने बजे पहुंचेंगे, उन्होंने कन्नाडिगा में जवाब दिया, सुबह के 6 बजे। बेंगलुरु में रहते हुए अब मुझे यहां की लोकल लैंग्वेज भी थोड़ी बहुत समझ आने लगी थी। बस स्टैंड के पास ही कुछ खाया और थकान इतनी ज्यादा थी कि अपनी सीट पर बैठते ही झपकी आ गई।

अचानक सुबह-सुबह मेरी नींद खुली। मैं अभी भी बस ही में था, नींद कच्ची थी इसलिए आंखों को मसला, नज़ारा कुछ साफ हुआ तो खिड़की से बाहर झांकते ही मेरी नींद और थकान दोनों ही गायब हो गई थी। हम कुर्ग पहुंचने से पहले टेढ़े-मेढ़े और तीखे मोड़ वाले रास्ते से गुज़र रहे थे। जंगल इतना घना और हरा था कि जमीन नहीं दिख रही थी। हल्की बारिश हो रही थी और सड़क पर धुंध था। कुछ देर के बाद जैसे-जैसे कोहरा कम हुआ बादलों से घिरे पहाड़ देख मन खुश हो गया। अब लग रहा था कि इस बार सही जगह आए हैं। अबतक मेरी कच्ची नींद गायब हो गई थी। वहीं, सोने व झपकी मारने का मन तो छोड़िए, मैं नजारों को निहारने में व्यस्त हो गया। इधर-उधर नज़र दौड़ाया तो देखा दूसरे यात्री भी अपने कैमरे व मोबाइल से प्राकृतिक सौंदर्य को कैद कर रहे हैं। रास्ते में सुंदर घर, होटल, पहाड़, नदियां, पेड़ और जंगल को देखने का अपना ही आनंद आ रहा था।

अब हम पहुंच चुके थे मडिकेरी, जिसे कुर्ग का मुख्य चौराहा भी कहते हैं। यहां पर कदम रखते ही डलहौजी के चौक जैसा एहसास हो रहा था। क्योंकि खाने-पीने की सुंदर दुकानें और उसके पीछे पहाड़ दिख रहे थे। जो मानो बादलों से हमें निहार रहे हों। मौसम में हल्की सर्द होने की वजह से बस से उतरते ही मैंने चाय पी और नाश्ता करने के लिए पास के ही होटल में चला गया। वहां बैठे-बैठे होम स्टे के बारे में पता किया। क्योंकि कुर्ग आओ और होटल में रुको… ये जमता नहीं। फिर टैक्सी बुक की और चला गया अपने डेस्टिनेशन पर। इस बार मैंने भी पक्का कर लिया था कि अगर होम स्टे ठीक न रहा तो मैं दूसरे लोकेशन को चुनूंगा। लेकिन, जैसे ही मैं वहां पहुंचा, मुझे वो बंगला दिखा, जहां मुझे ठहरना था, उसके पीछे और आगे कॉफी के बगान और उसके आगे पहाड़ दिख रहा था। मैंने देर न लगाते हुए तुरंत डन कह दिया।

कभी आपने दिन में झिंगूर या मेंढ़क की आवाज़ सुनी है… अगर नहीं, तो आप एक बार कुर्ग ज़रूर जाएं। कंक्रीट के जंगलों से दूर कुर्ग में दिन में भी झिंगूर और मेंढक की आवाज सुनने को मिल जाएगी, जो अलग ही सुकून का एहसास दिला रही थी। हम जिस होम स्टे में रुके थे, उन्होंने शाम ढलते ही हमारे लिए बॉर्नफायर का इंतजाम कर दिया और कुछ देर के बार पारंपरिक खाना तैयार कर लेते आए। गर्म खाना, सामने बॉर्नफायर और वो सब भी प्रकृति की सौंदर्यता के बीच, भला और क्या चाहिए। होम स्टे और कुर्ग का प्राकृतिक नज़ारा, चाय के बागान, बादलों से घिरे पहाड़ जैसे नज़ारे इतने खूबसूरत थे कि पहले 2 दिन मैंने होम स्टे में ही गुजारे। लेकिन, जब आप इतनी दूर आए हैं तो थोड़ा घूमने के बारे में भी हमने सोचा।

फिर कहां जाना है उसकी लिस्ट तैयार की, जिसमें हम पास के एबी फॉल्स, जिसे जेसी फॉल्स भी कहते हैं वहां गए, मंडलपट्टी व्यूप्वाइंट में जाकर सन सेट का आनंद लिया। पुष्पगिरी वन्यजीव अभ्यारण में जाकर जानवरों व प्रकृति के बीच समय बिताया। इसके अलावा आप ताडियांदामोल पीक, राजा की सीट पार्क, इरुप्पु फॉल्स जैसे जगहों पर घूमकर प्रकृति के बीच समय बिता सकते हैं। अगर आपको भी जंगलों में समय बिताने का शौक है, प्रकृति की सौंदर्यता देखना चाहते हैं, कॉफी के बागानों के बीच रहना चाहते हैं और सबसे खास बात शहर की गर्मी के बीच ठंडक का एहसास पाना चाहते हैं, तो कुर्ग का रुख करें।

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