पहलगाम की खूबसूरत वादियों को देखते ही निदा फाज़ली का ये शेर याद आ गया,
दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए
जब तक न सांस टूटे जिए जाना चाहिए।
अप्रैल में गर्मी से राहत पाने के लिए मैं निकल गया अपने सफर पर। ट्रेन से सफर कर के सबसे पहले मैं जम्मू पहुंचा। फिर यहां से टैक्सी पकड़कर मैं पहलगाम (Pahalgam) के लिए निकल गया। कुछ घंटों की यात्रा करने के बाद मैं पहुंच चुका था ‘धरती पर बसे स्वर्ग’ पर, यानि कश्मीर। यहां प्राकृतिक सुंदरता तो थी ही साथ ही यहां की आबो-हवा में मैं आध्यात्मिकता की खुशबू का एहसास कर पा रहा था। सोच रहा था कि इसी रास्ते से होते हुए लाखों भक्त अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) तय करते हैं और श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करते हैं।
जब मैं पहलगाम पहुंचा, तो यहां की खूबसूरती हैरान कर देने वाली थी। नीले आसमान के नीचे, बर्फीली पहाड़ियां, केसर की खेती, देवदार के पेड़ों से भरे जंगल काफी खूबसूरत थे। पहलगाम के बीचो-बीच लिद्दर नदी बहती है। इसके पास जाकर नदी की कल-कल आवाज़ को करीब से सुनना मेरी यात्रा का सबसे खुशनुमा पल था।
मुझे जंगल काफी पसंद है, ऐसे में मैं लोकल गाइड को साथ में लेकर जंगल की सैर पर निकल गया। जहां मैंने सुंदर पक्षियों को करीब से देखने के साथ, लिद्दर नदी किनारे घंटों समय बिताया। मुझे कई और जगह भी कवर करने थे, लेकिन यहां की हरियाली को देख मैं ऐसा खोया कि 4 घंटे कब गुज़रे मुझे पता ही नहीं चला। फिल्मों में कहा भी गया है चाहे आप लाख कोशिश करें लेकिन कुछ तो छूटेगा ही, इसलिए जहां हैं वहीं का मजा लिया जाए।
चारों ओर पहाड़ और बीच में झील (Charo Aur pahad aur beech mein jheel)
सफर के अगले पड़ाव पर मैं निकल पड़ा शेषनाग झील की ओर। पहलगाम से 22 किलोमीटर का सफर तय कर जब मैं यहां पहुंचा, तो सुंदरता देख मैं चंद मिनटों के लिए खो सा गया। हो भी क्यों न, ये जगह थी ही इतनी खूबसूरत। चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़ और बीचो-बीच झील इस जगह की सुंदरता को कई गुना ज्यादा बढ़ा रही थी। इस झील को वासुकी झील और वासुकी कुंड के नाम से भी जानते हैं। यहां के लोगों ने बताया कि इस झील से दिखने वाली पहाड़ियां जून में भी बर्फ से ढकी रहती हैं।
पहाड़ से आ रही 5 जलधाराओं का संगम है पंचतरणी (Pahad se aa rahi 5 jaldhar ka sangam hai Panchtarni)
शेषनाग झील से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है पंचतरणी। ये जगह आध्यात्मिक नज़रिए से भी खास है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हेलिकॉप्टर से आने वाले श्रद्धालु इसी जगह से अमरनाथ यात्रा करने की शुरुआत करते हैं। यहां पहुंचते ही मैंने खूबसूरत नदी पंचतरणी को देखा। इसे पंचतरणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये पहाड़ों से छनकर आ रही 5 धाराओं का संगम है। सोचकर देखिए, पांच धाराएं किसी एक जगह आकर, एक हो जाती है, यह कितना खूबसूरत होगा। पंचतरणी नदी घाटी की इस खूबसूरती को देखने के लिए ही लोग दूर-दूर से आते हैं। रात हो चुकी थी, ऐसे में मैंने यहीं पर कैंपिंग कर रात बिताने की सोची। नदी के बगल में खुद को कंबल से लपेटकर आग सेंकने के आनंद को मैं शायद ही कभी भुला पाऊंगा।
ममलेश्वर मंदिर में की भगवान शिव की पूजा (Mamleshwar mandir mein ki bhagwan Shiv ki puja)
वैसे तो अमरनाथ यात्रा करना मेरे जीवन का मकसद है, लेकिन इस यात्रा को करने के लिए सरकार से इजाज़त लेनी होती है। लेकिन, मैं पहलगाम के आसपास के मंदिरों में तो जा ही सकता था। ऐसे में मैं निगल गया पहलगाम से 1 किलोमीटर दूर ममल गांव। यहां भगवान शिव का एक ममलेश्वर महादेव मंदिर है। लिद्दर नदी के किनारे बसे इस मंदिर के बारे में लोग बता रहे थे कि ये सालों पुराना है और कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसे 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। राजा जयसीमा ने इसका निर्माण करवाया था। मंदिर की वास्तुकला को देख लग रहा था कि इसे वर्षों पहले बनाया गया होगा। यहां मुझे अजीब-सी शांति महसूस हुई।मैंने कुछ घंटे मंदिर प्रांगण में ही बिताए।
अरु वैली में घुड़सवारी का लिया आनंद (Aru Valley mein ghudsawari ke liye anand)
अब मैं पहुंच चुका था अरु वैली, यहां चीड़ के लंबे-लंबे पेड़ और देवदार के पेड़ देखने को मिले। यहां पर लोग घुड़सवारी कर रहें थे। लेकिन, मैं सिर्फ वादियों को देखना और उसी में खो जाना चाहता था। कई बार ऐसा होता है हम देखना बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन कोई एक जगह जैसी हमारी नजरों को अपना कैदी बना लेती हैं। हम चाहकर भी उस नजारें से अपनी नजर हटा नहीं सकते। इस जगह की खूबसूरती मान लीजिए, कुछ ऐसी ही थी।
हमेशा बर्फ से ढकी रहती है तुलियन झील (Hamesha barf se dhaki rahti hai tuliyan jheel)
पहलगाम से करीब 15 किलोमीटर दूर है तुलियन झील। ये झील यूं तो शेषनाग झील से काफी मिलती- जुलती थी। लेकिन, सिर्फ एक चीज इसे शेषनाग झील से अलग करती थी, वो था बर्फ से ढका पहाड़। तुलियन बीच की खासियत यह है कि यहां सालों भर बर्फ से ढके पहाड़ देखने को मिल जाएंगे। हम अक्सर ठंडी जगह पर जाते ही इसलिए हैं कि हमें बर्फ देखने को मिल जाए, ऐसे में गर्मी के महीने में आने वाले टूरिस्ट भी यहां बर्फ से ढंके पहाड़ आसानी से देख सकते हैं।
घास के मैदान से पटी है बेताब घाटी (Ghas ke maidan se pati hai Betaab Ghati)
पहलगाम आएं और बेताब घाटी का नज़ारा न लें, ऐसा भला कैसे हो सकता था। यहां मुझे पहाड़ों और प्राकृतिक वादियों से घिरे घास के मैदान देखने को मिले। इस जगह के बारे में मुझे एक रोचक बात भी पता चली। इस घाटी का नाम बेताब घाटी इसलिए पड़ा क्योंकि यहीं पर सन्नी देओल की फिल्म बेताब की शूटिंग हुई थी।
आप भी पहलगाम आएं, तो इन जगहों पर ज़रूर जाएं और प्राकृतिक सुंदरता के बीच शांति से समय गुज़ारें। फिर मिलते हैं अगले सफर पर तब तक आप सोलवेदा के सफरनामा पर पढ़ते रहें आर्टिकल।