सफरनामा के मेरे इस लिस्ट में तवांग (Tawang) उन खास जगहों में से एक था, जिसे मैं बाइक से तय करना चाहता था। मैं महसूस करना चाहता था पहाड़ी वादियों से गुज़रते सफेद बादलों को, जी भर कर सांस लेना चाहता था पहाड़ों से छन कर आ रही सर्द हवाओं का, मैं एहसास करना चाहता था ठंडक का… ऐसे ही हजारों लम्हों का एहसास करने के लिए मैं निकल पड़ा था अपने सफर की ओर। ये सफर था भारत के जन्नत की ओर।
ये सफर मैं बाइक से कर रहा था, इसके लिए मैंने अपने सारे गैजेट्स जैसे जैकेट, शूज, ग्लव्स आदि की पहले से ही खरीदारी कर ली थी और मैं निकल गया अपने सफर की ओर। जैसे ही मैंने अरुणाचल प्रदेश में इंट्री की वहां के सर्दिले मौसम ने मेरा जोरदार स्वागत किया। सुबह इतना घना कोहरा था कि महज कुछ कदम दूर देख पाना भी मुश्किल था, वहीं ठंड इतनी ज्यादा कि हाथों में ग्लव्स और जैकेट पहनने के बावजूद कंपकपा देने वाली सर्दी का एहसास हो रहा था। मैं तवांग के रास्ते में रूपा नाम के एक जगह पर रुका, इस समय तक मैं काफी थक चुका था इसलिए होम स्टे लेकर थोड़ा आराम करने की सोची। वैसे रूपा जगह ठहरने के लिहाज से ठीक थी, यहां पास में एक छोटा मार्केट भी था, जहां कुछ समोसे व चाय का आनंद भी लिया।
रात में आराम फरमाने के बाद मैं सुबह अपने लक्ष्य यानि की तवांग की ओर निकल पड़ा। क्योंकि सुबह राइडिंग करने से आप खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकते हैं, यहां आने का मेरा मकसद भी यही था। तवांग जाने के रास्ते में जहां खूबसूरत नज़ारे दिखे, वहीं कई बार मुझे पथरीले रास्तों पर डर भी लगा। क्योंकि स्थानीय लोग बता रहे थे कि ये लैंड स्लाइडिंग जोन है, ऐसे में उन्होंने सेफ्टी के साथ सफर करने की बात कही। अब मैं पहुंच चुका था बामडिला के गेट पर, उसकी कुछ ही दूरी पर बामडिला टाउन भी था। अब तक मुझे भूख लग चुकी थी, वहीं मैं ऐसी जगह की तलाश में था, जहां मैं खाना खा सकूं। यहां मैंने अपनी गाड़ी में तेल भी भरा लिया, क्योंकि तवांग तक कोई पेट्रोल पंप नहीं है। इस रास्ते में पहाड़ों पर मुझे चारों तरफ बादल ही बादल दिखाई दे रहे थे। मैं रोड साइड होटल में रुका, यहां पर ज्यादातर लोग तिब्बतियन, नेपाली बोलने वाले थे, लेकिन उन्हें हिंदी की भी अच्छी-खासी समझ थी। यहां वैसे तो थुकपा, चाउमिन, फ्राइड राइस, मोमो और पूरी भी थी। ऐसे में मैंने पूरी सब्जी खाई। क्योंकि काफी दिनों से मुझे ये खाने का मन कर रहा था। यहां पूरी और आलू की सब्जी खाकर मजा आ गया।
नाश्ता करने के बाद मैं फिर निकल गया अपने सफर पर। यहां की एक बात मुझे ज्यादा अच्छी लगी वो ये कि यहां के लोग काफी अच्छे व मिलनसार दिखे। देखते ही देखते मैं पहुंच गया दिनांग वैली। यहां पहाड़ी के नीचे एक नदी बह रही थी, यहां से तवांग 144 किलोमीटर का बोर्ड दिखा। यहां पर मुझे ऑफरोडिंग करने का भी मौका मिला, क्योंकि खराब और कीचड़ से सने हुए रास्ते के बीच से गुजरते हुए मैं एक खाली जगह पर रुका और कुछ तस्वीरें भी खिंचवाई। इस दौरान सबसे खास बात ये कि सुबह में भी झिंगुर की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जिसे सुनते ही मेरी थकान गायब हो रही थी। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे रास्ते से होते हुए मैं आगे बढ़ता गया। मैं बताना चाहूंगा कि यहां की सड़कों पर गाड़ी चलाना काफी मुश्किल भरा है, क्योंकि रोड के नीचे खाई आपको सावधानी से गाड़ी चलाने के लिए आगाह करती जाएगी। ऐसे रास्तों पर गाड़ी चलाने का अपना अलग एक्सपीरियंस दिखा। अब मैं उस जगह पर था जहां मैं ऊपर था और बादल मुझसे नीचे। मैं सेला पास से कुछ ही दूरी पर था। मेरा अगला स्टॉपेज यही था, जहां मैं थोड़ा ब्रेक लेने वाला था।
अब मैं पहुंच चुका था सेला पास, ये समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊंचाई पर था, यहां मैं सबसे पहले किसी होटल में जाकर कुछ खाना चाह रहा था। मुझे एक होटल मिल गया, वहां मैं गया और समोसे और चाय के बारे में पूछा, इत्तेफाक से उनके पास ये दोनों थे। मैंने चाय और समोसे खाए और अपनी भूख मिटाई। यहां पर मेरे जैसे ही कई राइडर्स भी मिले, तो असम और अरुणाचल प्रदेश के अलग-अलग जिलों से आए थे।
यहां से अब मैं निकल चुका था तवांग के सफर पर, मैं आपको एक बात बताना चाहूंगा यदि आप सर्दियों में यहां आ रहे हैं, तो पूरे इंतजाम के साथ आइए, क्योंकि ग्लव्स, जैकेट आदि होने के बावजूद मुझे सफर के दौरान काफी ठंड लग रही थी। तवांग जाने के रास्ते में कई पुल भी पड़े, इन्हीं में से एक था चायनाथ ब्रिज जो बादलों में पूरी तरह ढका हुआ था। अब मैं वहां से निकला, बाइक चलाते हुए मुझे कई बार ऐसा लग रहा था कि मैं बादलों के बीच गाड़ी चला रहा हूं।
अब मैं पहुंच चुका था त्वांग, यहां पर मैंने होटल लिया और रात का खाना खाकर अपने रूम में आराम किया। यहां पर हमें खूब स्वादिष्ट खाना खाने को मिला। यहां पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया था। ऐसे में खाना खाकर मैंने आराम करने की सोची और अगले दिन सुबह इस शहर को घूमने का प्लान किया।
यहां कई मठ भी हैं, जो बौद्ध भिक्षुओं के लिए खास जगहों में से एक है। आप यहां आएं तो तवांग मठ जिसे तवांग मोनेस्ट्री भी कहते हैं वहां जा सकते हैं। इस जगह को गोल्डन नामग्याल ल्हासे (Golden Namgyal Lhatse) के नाम से भी जानते हैं। इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ कहा जाता है, ये 400 वर्ष पुराना है। मैं यहां गया और इस जगह की खूबसूरती को देखते ही मोहित हो गया। इसके अलावा आप बादलों से गिरते झरने को देखना चाहते हैं, तो नूरानांग फॉल देखने जा सकते हैं। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है, पहाड़ों की गोद में बसे इस फॉल को देखने के लिए दूर-दराज़ से लोग आते हैं। इसके अलावा माधुरी झील (संगेतसर झील), तवांग वार मेमोरियल, जसवंतगढ़ और सेला दर्रा भी घूमने जा सकते हैं। माधुरी झील इसलिए भी फेमस है, क्योंकि यहां पर फिल्म कोयला की शूटिंग हुई थी, तब माधुरी दीक्षित यहां आई थी, तभी से इस जगह का नाम माधुरी झील रख दिया गया। अगर आपको पहाड़ों पर बर्फबारी को देखना है, तो सीजन में गोरीचेन पीक का रुख कर सकते हैं और बर्फ से ढके पहाड़ जैसे खूबसबरत नजारों का आनंद ले सकते हैं। वहीं, पीची त्सो झील जाकर प्रकृति के बीच समय बीता सकते हैं।
तवांग आकर मुझे एक ओर खूबसूरती का एहसास हो रहा था, वहीं यहां गाड़ी चलाकर मुझे कभी-कभार डर भी लग रहा था। खैर, यहां के खूबसूरत लोकेशन के क्या ही कहने। आप यहां घूमने आना चाहते हैं, तो गर्मियों में प्लान करें, सर्दियों में आना चाहते हैं तो आपको बर्फबारी दिख जाएगी। यहां का तापमान काफी कम रहता है, ऐसे में पूरी प्लानिंग के साथ यहां आएं। फिर मिलते हैं एक नए सफर पर, तब तक के लिए पढ़ते रहिए सोलवेदा पर ऐसे ही खास आर्टिकल और आप भी घूमने के अपने सपने को पूरा करते रहें।