एक शाम अयोध्या में

कोई भी शहर खूबसूरत, वहां के लोगों से ही तो होता है। कुछ कारणों से मैं एक शाम के लिए ही अयोध्या में रुक पाई थी। लेकिन, इस शहर में एक शाम काफी है, इस शहर को ताउम्र दिल में बसाने के लिए।

मैं जानती हूं सोलवेदा के सफर में आपको आदत है किसी जगह की खूबी, वहां के फेमस टूरिस्ट प्लेस, खाने आदि के बारे में जानने की। आज भी मैं आपको एक शहर के सफर पर ले चलने के लिए बिल्कुल तैयार हूं, लेकिन थोड़े अलग अंदाज़ में। ऐसा भी नहीं है कि इस सफर से मैं तुरंत होकर आई हूं और बेताब हूं उस जगह के बारे में बताने के लिए। जिस खूबसूरत शहर के बारे में मैं बात कर रहीं हूं, वहां गए हुए मुझे 4 साल बीत चुके हैं, लेकिन यादें अब भी बिल्कुल ताज़ा है और वो शहर है अयोध्या।

जी हां अयोध्या, जिसकी चर्चा राम मंदिर के कारण देश के कोने-कोने में हो रही है। लेकिन, 4 साल पहले जब मैं अयोध्या घूमने गई थी तो मुझे वहां के लोगों ने सबसे ज़्यादा अपनी ओर आकर्षित किया था। कोई भी शहर खूबसूरत, वहां के लोगों से ही तो होता है। कुछ कारणों से मैं एक शाम के लिए ही अयोध्या में रुक पाई थी। लेकिन, इस शहर में एक शाम काफी है, इस शहर को ताउम्र दिल में बसाने के लिए। तो चलिए मेरे साथ अयोध्या के सफर पर और वो महसूस कीजिए जो मैंने महसूस किया।

अपना-सा लगता है अयोध्या शहर (Apna-sa lagta hai Ayodhya shahar)

जब मैं सुबह-सुबह बस से अयोध्या पहुंची तो मौसम हल्की ठंड का था। बस से उतरते ही मुझे लगा जैसे ये शहर तो बिल्कुल मेरे शहर जैसा है। वही सड़कें, मस्ती में अपना काम करते वही लोग, वही हल्की ठंडी हवा और वही कच्चे-पक्के मकान। छोटे शहरों से निकलकर जब हम किसी दूसरे छोटे शहर में ही घूमने जाते हैं, तो लगता है कि घर हमारा पीछा छोड़ ही नहीं रहा। नुक्कड़ पर वही समोसे मिल रहे होते हैं, सभी बूढ़े चाय की टपरी पर गप्पे लड़ा रहें होते हैं और बिल्कुल अपने घर की ही तरह कोई बच्चा साइकल लेकर तेजी से हंसते हुए बगल से निकल जाता है। यही नहीं चलते-चलते लगता है किसी सड़क के किनारे हमें हमारा घर भी दिख जाएगा और तब बिल्कुल अपना-सा लगता है अयोध्या शहर।

कुछ यादें जो हमेशा साथ रहेंगी (Kuch yaadein jo hamesha sath rahengi)

मेरे पास एक ही शाम थी तो दोपहर में मैं होटल से अयोध्या के कुछ फेमस जगहों की सैर के लिए निकल गई। लेकिन, इन सब में मेरे लिए जो सबसे यादगार जगह रही वो है सरयू घाट। यह घाट राम मंदिर के पास ही स्थित है। जिस वक्त मैं यहां गई थी, उस वक्त घाट पर ज़्यादा भीड़ नहीं थी। इस घाट पर बैठकर अगर सरयू नदी को एकटक देखा जाए तो मन की सारी परेशानी कम होने लगती है। घाट का नज़ारा तो अद्भुत है ही मगर मुझे जो देखने को मिला वो शायद इस नज़ारे से भी खूबसूरत है।

मैं घाट किनारे चुपचाप बैठी थी, मगर मेरे सामने तीन बच्चे घाट पर दौड़ लगा रहें थे। इस घाट पर बंदर काफी होते हैं। बच्चे उन्हीं में से एक बंदर को चिढ़ा रहें थे। बंदर बच्चों को जैसी हरकतें करते देखता, वो भी वैसी ही हरकतें करता। कभी बच्चे नाक-मुंह बनाते तो कभी डांस करके दिखाते। बंदर भी इधर-उधर उछलकर वही करने की कोशिश में लगा हुआ था। मौसम ठंड का था, मगर बच्चे इतना दौड़ रहें थे कि उनके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं थी। कुछ देर बाद उनमें से एक बच्चे ने पानी में छलांग लगा दी। मुझे लगा बंदर भी ऐसा ही करेगा, लेकिन बंदर अपनी जगह पर ही खुश होकर इधर-उधर उछलता रहा। मुझे कुछ समझ नहीं आया। कुछ देर तक बच्चा पानी में गोते लगाता रहा और फिर बाहर मुट्ठी भर सिक्कों के साथ आया। उसे बाहर आता देखकर बाकी दोनों बच्चे उसकी ओर तेजी से बढ़ें और फिर तीनों एक साथ बाहर चले गए।

उनके जाने के बाद बंदर एक कोने में बैठ गया और उन्हें जाता देखने लगा। मैं भी वापस घाट की ओर देखने लग गई। मगर, थोड़ी देर बाद उन तीन बच्चों की आवाज़ फिर से मेरे कान में पड़ी। मैंने देखा तीनों के हाथ में दोने थे, जिसमें कुछ खाने की चीज़ थी। शायद जो सिक्के वो लेकर गए थे, उससे कुछ खरीद कर लाए थे। तीनों वहीं ज़मीन पर बैठ गए और दोने को अपने सामने रख दिया। तभी एक बच्चे ने सीटी बजाई और बंदर तेजी से दौड़ता हुआ उनके पास आ गया। मैंने देखा बच्चे अपने-अपने दोने से, एक चौथा खाली दोना, बंदर के लिए खाने से भर रहें थे। जो बंदर थोड़ी देर पहले इतनी मस्ती कर रहा था, वो चुपचाप बैठकर अपने दोने में ऐसे खा रहा था, जैसे वो चारों सालों पुराने दोस्त हों और आज पार्टी देने की बारी बाकी तीनों दोस्तों की हो। फिर उन बच्चों की नज़रें मुझपर पड़ी क्योंकि काफी देर से मैं उन्हें देख रही थी। उन तीनों बच्चों ने मुझे अपनी ओर देखता देखकर चम्मच उठाकर खाने का इशारा किया। मैंने हंसकर सिर हिलाकर मना कर दिया। मगर फिर मैंने देखा, बंदर भी अपना दोना उठाकर बिल्कुल उनकी तरह नकल करके मुझसे खाने के लिए पूछ रहा था। यह देखकर मेरे दोनों आंखो में आंसू और होंठों पर एक मुस्कान बिखर आई।

मैं उठी और उन बच्चों को अपने साथ फिर आइसक्रीम खिलाने ले गई। हां, पीछे-पीछे वो चौथा दोस्त भी फुदकता हुआ आ रहा था। अयोध्या का ये सफर मुझे हमेशा पूरा लगता है। मुझे कभी नहीं लगता कि वहां कुछ देखना रह गया है। मैंने वहां वो देख लिया जो अक्सर पूरा देश-विदेश घूमने के बाद भी लोगों को देखने को नहीं मिलता।

आर्टिकल पर अपना फीडबैक कमेंट में ज़रूर दें। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।