बीते दिनों हम सब ने दीवाली का पर्व मनाया। नये कपड़े, साज-सजावट, मिठाइयां और खुशियों के साथ एक और चीज़ भी थी, जिसकी ज़रूरत न होने पर भी हमने उसे त्योहार का हिस्सा बना रखा है, और वो है आतिशबाजी करने के लिए पटाखे। आज मार्केट में तरह-तरह के बस और पटाखे देखने को मिल जाते हैं। जो आसमान में अपनी कलाकारी बिखेरने के साथ-साथ बहुत सारा धुआं भी छोड़ते हैं और वो धुआं स्वच्छ हवा में घुलकर हवा को दूषित कर देता है।
हम बचपन से ही विज्ञान की किताब में ऑक्सीजन के बारे में पढ़ते आए हैं कि हमें ज़िंदा रहने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है और पेड़ ऑक्सीजन छोड़ते हैं। लेकिन, ऑक्सीजन लेने के लिए हम सीधे जाकर पेड़ों से नहीं तो लिपटते। ऑक्सीजन हवा के साथ आकर हमारी सांसों तक पहुंचती है और तब हम ज़िंदा रह पाते हैं।
ऐसे में अगर हवा में ऑक्सीजन के साथ कुछ ऐसे रसायन मिल जाए जो हानिकारक हैं तो फिर हवा विषैली हो जाती है और मानव शरीर के लिए ज़हर बन जाती है। लेकिन, हवा को आखिर दूषित किया किसने? किसी ने किसी दूसरे ग्रह से आकर तो ऐसा नहीं किया। इसको प्रदूषित करने में हम सब का बराबर का योगदान है। हमने मिलकर हवा में ज़हर खोला है। अब आप कहेंगे कि आपने तो ऐसा कुछ नहीं किया, पर जाने-अंजाने हम सब इसके ज़िम्मेदार हैं।
घर-घर से फैल रहा है वायु प्रदूषण (Ghar Ghar se fail raha hai vayu pradushan)
घरों में कूड़े के ढेर को जलाना हो या हमारी मोटरसाइकिल से निकलता धूंआ, इनसे भी वायु प्रदूषित होती ही है। बढ़ते संसाधन और मशीनों ने हमारा काम भले ही आसान किया हो, पर सांसों को मैला कर दिया है। हमारे देश की राजधानी आज-कल इस मैलेपन से जूझ रही है। हर तरफ इतना पॉल्यूशन है कि आसमान में हर वक्त एक धुंध सी छाई रहती है। इस माहौल में न केवल रहना बल्कि सांसें लेना खुद अपने हाथों से ज़हर का प्याला पीने जैसा है। अगर हम सब प्रदूषण को कम करने में वैसे ही योगदान दें, जैसे हम प्रदूषण को बढ़ाने में दे रहे हैं तो हवा को प्रदूषण रहित बनाया जा सकता है और पर्यावरण की देखभाल की जा सकती है।
क्या है नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे? (Kya hai National Pollution Control Day?)
प्रदूषण से होने वाले नुकसान को देखते हुए हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे के रूप में मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद पॉल्यूशन से निजात पाने के उपायों पर चर्चा करना और लोगों को जागरूक करना होता है ताकि इसके खतरे को कम किया जा सके। प्रदूषण से सिर्फ दिल्ली-एनसीआर या भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया परेशान है। प्रदूषण के तीन रूप हैं, एयर पॉल्यूशन, साउंड पॉल्यूशन और वॉटर पॉल्यूशन, ये तीनों ही हमारे शरीर को कई बीमारियां दे रहे हैं।
कुछ समय पहले हुई एक स्टडी में खुलासा हुआ था कि पॉल्यूश की वजह से भारत में रहने वाले लोगों की औसत उम्र 5 साल तक घट रही है। ऐसे तमाम खतरों को देखते हुए हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे के रूप में मनाया जाता है।
कब मनाया जाता है नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे? (Kab manaya jata hai National Pollution Control Day?)
राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर साल 2 दिसंबर को मनाया जाता है। 2 और 3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी में जान गंवाने वालों की याद में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है।
भोपाल गैस त्रासदी क्या थी? (Bhopal Gas Tragedy kya thi?)
भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना (Industrial Accident) हुई। इसे ‘भोपाल गैस कांड’ या ‘भोपाल गैस त्रासदी’ के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनेट (MIC) नामक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। जिसने जाने कितनी ही जिंदगियां तबाह कर दी थीं।
मरने वालों के बलिदान को देखते हुए हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पोल्यूशन कंट्रोल डे के रूप में मनाया जाता है ताकि आगे चलकर कोई भी व्यक्ति दूषित हवा की वजह से अपनी जान न गवाये। चलिए आगे जानते हैं वायु प्रदूषण के पांच कारणों के बारे में जिनसे दिन-प्रतिदिन हमारे चारों ओर की जल-वायु दूषित हो रही है।
वायु प्रदूषण के पांच कारण (Vayu pradushan ke panch karan)
इनडोर वायु प्रदूषण
घर की सफाई में ज़हरीले प्रोडक्ट्स का उपयोग जिसे ‘वाष्पशील कार्बनिक यौगिक’ (वीओसी) भी कहा जाता है, अपर्याप्त वेंटिलेशन, असमान तापमान और आर्द्रता यानी नमी के स्तर के कारण इनडोर वायु प्रदूषण का कारण बन सकता है। चाहे आप ऑफिस में हों, स्कूल में हों, या अपने घर में हों, अनजाने कारकों के कारण घरेलू वायु प्रदूषण हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक कमरे के अंदर तम्बाकू, धूम्रपान या मोल्ड-संक्रमित दीवारें भी वायु प्रदूषण करती हैं। लकड़ी के चूल्हे या स्पेस हीटर का उपयोग नमी के स्तर को बढ़ाने में सक्षम है, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को तुरंत प्रभावित कर सकता है। इनडोर वायु प्रदूषण से कार्सिनोजेन्स (carcinogens) और विषाक्त पदार्थ फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 17% मौतों का कारण बनते हैं।
परिवहन से प्रदूषण
सड़कों पर कारें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वायु प्रदूषण में वाहन प्रदूषण का प्रमुख योगदान है। खासकर शहरों में, जहां कारें ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बहुत हैं। जब कार गैसोलीन जलाती है, तो यह हवा में प्रदूषकों को रिलीज करती हैं, जो एक दिन में 10 सिगरेट पीने के बराबर हानिकारक है।
कचरे को खुले में जलाना
कचरे को खुले में जलाना आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जितना सोचा जा सकता है उससे कहीं अधिक हानिकारक है। एंगेज ईपीडब्ल्यू के अनुसार, दिल्ली का वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य का गला घोंट रहा है। दिल्ली से निकलता है हर दिन 9500 टन कचरा, जो इसे भारत का दूसरा सबसे बड़ा कचरा डंपिंग शहर बनाता है। कचरे को खुले में जलाने से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं जिनमें शामिल हैं- कैंसर, जिगर की समस्या, प्रतिरक्षा प्रणाली की हानि, प्रजनन कार्यों में कमी।
खेती से जुड़े काम
वायु प्रदूषण के कारण, घटती वायु गुणवत्ता पर कृषि गतिविधियों का गंभीर प्रभाव पड़ा है। शुरुआत करने के लिए, कीटनाशक और फर्टिलाइजर मुख्य स्रोत हैं, जो आस-पास की हवा को दूषित करते हैं। आजकल, फसलों और वनस्पतियों के तुरंत विकास के लिए कीटनाशकों और फर्टिलाइजर को नई आक्रामक प्रजातियों के साथ मिलाया जाता है, जो प्रकृति में नहीं पाई जाती हैं। एक बार छिड़काव करने के बाद, कीटनाशकों की गंध और प्रभाव हवा में रह जाते हैं। कुछ पानी में मिल जाते हैं और कुछ जमीन में रिस जाते हैं, जिससे न केवल फसल नष्ट होती है बल्कि कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होती हैं।
जीवाश्म ईंधन का जलना
सबसे ज़्यादा वायु प्रदूषण जीवाश्म ईंधनों (Fossil Fuels) के अधूरे जलने की वजह से होता है। इनमें बिजली या परिवहन के लिए ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए कोयला, तेल और गैसोलीन शामिल हैं। यह हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे जहरीले प्रदूषकों को भी रिलीज करता है। प्राकृतिक गैस और जीवाश्म ईंधन के जलने से प्रदूषकों से प्रेरित हवा में साँस लेना, हृदय की पंप करने की ताकत को कम करता है।
अगर हम सब ऐसे रसायनों का उपयोग न करें जो वायु को दूषित करते हैं और जब तक ज़रूरी न हो तब तक बड़े मोटर वाहनों का इस्तेमाल न करें तो हम बहुत हद तक वाय प्रदूषित होने से रोक सकते हैं। इसके साथ कचरे को जलाने की बजाय जमीन में गाड़ देना चाहिए और ऐसे रसायनिक कारखाने जो हवाओं में ज़हर खोलने का काम करती हैं, उन्हें शहर से बहुत दूर जाकर बनाना चाहिए। ऐसा करने से ही हम वायु प्रदूषण को रोक पाएंगे और प्रकृति की रक्षा कर पाएंगें।।
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