मानसिक तनाव शरीर, मन और दिमाग को करता है प्रभावित, जानें लक्षण

जब तक व्यक्ति अपने मन को बाधाओं से मुक्त नहीं करता, तब तक मानसिक तनाव से मुक्त नहीं हो सकता। तनाव शरीर का एक प्रतिक्रियात्मक तंत्र है, जो किसी भी असामान्य व्यवहार या प्रतिकूल स्थिति में प्रकट होता है।

किसी लिखित परीक्षा से घंटों पहले मैं अपने पेट में गड़गड़ाहट भरे एहसास का अनुभव करता हूं। यह पेट से लेकर कंधे तक धड़कता है और इसका परिणाम होता है, ऐंठन और खिंचाव। मेरी मां इसे परीक्षा का बुखार कहती हैं। भोजन की मेज़ पर होने वाली बहसा-बहसी के बाद वे बार-बार बेचैनी और सुस्ती के दौरों का अनुभव करती हैं, उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और उन्हें दवा खानी पड़ती है। पिताजी उन्हें इमोशनल लेवल से कमज़ोर कहते हैं। सप्ताह के अंतिम दिन पिताजी अपना मासिक हिसाब-किताब लिखा करते हैं। इस दौरान वे कभी-कभी अपनी आंखें भी मसलते हैं। मेरी मां पिताजी की इस स्थिति को अनिद्रा (sleeplessness) का नाम देती हैं। काम समाप्त कर चुके कर्मचारियों का एक समूह आधी छुट्टी में कार्यालय परिसर के बाहर बैठकर नई ऊर्जा प्राप्त कर रहा है। वे निश्चित ही अपने कार्य खत्म करने लक्ष्यों का हिसाब-किताब कर रहे हैं। कर्मचारी इसे उत्पादन-दबाव कहते हैं। प्रतिक्रियाएं भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, पर इनमें से हर कोई सामान्य उत्तेजित करने वाले तनाव से ग्रसित है, ऐसा दिखता है।

दोषी कौन?

लोग कहते हैं कि कोई स्त्री या पुरुष मुझे मानसिक तनाव (Mansik tanav) देता है। क्या यह पूर्णत: संभव है कि तनाव को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरित किया जा सके? तनाव एक तरीका है, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति का शरीर किसी असामान्य व्यवहार या किसी प्रतिकूल परिस्थिति का जवाब देता है। चेन्नई में स्थित प्राणिक हीलिंग होम के संस्थापक पद्मिनी रमेश के अनुसार “तनाव किसी वातावरण या ऊर्जा क्षेत्र में प्रचलित और व्याप्त रहने वाली ऊर्जा है जो आपको शारीरिक रूप से बेचैन कर सकती है”। यह भावनात्मक शरीर में रहने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसकी यदि अनदेखी की जाए तो भौतिक शरीर को एक समयावधि तक प्रभावित करती है। इसे भावनात्मक रूप में क्रोध, दुख, कुंठा, थकान, दबाव का सामना करने में असमर्थता, सामर्थ्य पूर्ण जीवन जीने की असमर्थता अथवा शारीरिक रूप से पुरानी बीमारियों की पीड़ा के निकास द्वार के रूप में प्रकट किया जा सकता है।

मानसिक तनाव (Mental stress) के स्रोत को पहचान कर इसके प्रभावों को कम किया जा सकता है। सर्वाइवल स्ट्रेस तेज़ तनाव है, यह मनुष्य में संवेदी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला एक ऐसा अपरिहार्य स्वचालित जन्मजात तंत्र है जो पूर्वानुमानित संकटहानि का सामना करने या उससे दूर भागने के लिए शरीर को तैयार करता है। यह सर्वाइवल सुनिश्चित करने के लिए बहुत बड़ी मांसपेशीय यात्रा करता है और इसे आपातकालीन परिस्थितियों में बहुत अच्छा माना जाता है। वैश्विक तनाव संगठन – अन्य सामान्य पर्यावरणीय तथा मनोवैज्ञानिक स्रोतों की ओर ध्यान दिलाता है। पर्यावरणीय तनाव धूल, ध्वनि परिवेश के प्रदूषण के कारण उत्पन्न होता है।

मन-शरीर-मन 

मनोवैज्ञानिक तनाव (Manovaigyanik tanav) किसी ऐसे विचार से प्रारम्भ होता है जिसके बार-बार आने से मन में आशंकाओं का पहाड़ जमा हो जाता है और इससे मांसपेशीय तंत्र में खिंचाव उत्पन्न होता है। इससे शरीर का प्रत्येक अंग प्रभावित होता है जो बदले में मन की दशा को प्रभावित करता है। मानसिक तनाव उत्पन्न होने का स्थान या तो मन में है या थकान के रूप में शरीर के अंदर, यह कार्य-कारण संबंसाझा करता है।

इसे समझने की शक्ति किसी व्यक्ति को उत्पत्ति स्थान को खोजने व उसे नष्ट करने में सक्षम बनाती है। बेंगलुरू निवासी वैकल्पिक चिकित्सक डी. उषा रानी शरीर के चक्रों के बारे में बताती हैं। ये चक्र वे 7 ऊर्जा के केन्द्र हैं जो विभिन्न अव्यवों में अनुरूपता बनाए रखते हैं। इन चक्रों में तनाव का जमावड़ा किसी मनुष्य की मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक व आध्यात्मिक दशाओं को प्रभावित करता है।

आधारहीन महसूस करना

बार-बार काम बदलने की प्रवृत्ति मूलाधार चक्र के असंतुलन के कारण होती है। मूलाधार चक्र सुरक्षा, अतिजीवन व समृद्धि का स्थान है। मूलाधार चक्र में मानसिक तनाव के जमा होने से व्यक्ति स्वयं को आधार रहित अवसाद ग्रस्त, आत्मघाती, अकेला, जिसे उपेक्षापूर्ण छोड़ दिया हो ऐसा महसूस करता है मानसिक तनाव के लक्षण में भय, सिर चकराना, कमर के निचले भाग में पीड़ा, बुरी आदत सनकीपन जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। तिब्बती योग के प्रथम संस्कार का दैनिक अभ्यास – मूलाधार चक्र सहित सभी चक्रों को पुनर्जीवित करने का सरल तरीका है।

रचनात्मक अवरोध

स्वाधिष्ठान चक्र – रचनात्मकता एवं यौनाचरण का स्थान होता है। यह आत्मविश्वास को बढ़ाने की कुंजी है। जो महिलाएं गर्भधारण में समस्या, कामेच्छा में कमी, अनियमित मासिक चक्र, किडनी की समस्या, स्पलिन, आंत-पित्त की थैली से संबंधित परेशानियां होती हैं, उनका स्वाधिष्ठान चक्र असंतुलित होता है। ऐसी तनाव संबंधी बीमारियों के समाधान के रूप में पद्मिनी प्राणिक मनोचिकित्सा का सुझाव देते हैं।

ध्यान केन्द्रित करने में समस्या

जिन विद्यार्थियों व किशोरों की ज्ञान ग्रहण करने, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती है उन्हें मणिपुर अथवा सूर्य चक्र विकसित करने की आवश्यकता है। यह चक्र शक्ति भावना और बुद्धिमत्ता को बढ़ाता है, जिनका इंबैलेंस शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को बाधित करता है। इसके परिणामस्वरूप स्मृति-हानि, अनिद्रा, कील-मुंहासे, अपच, त्वचा-एलर्जी व मोटापे जैसी समस्याएं होती है। उषा जी तनाव के लिए एक्यूपंक्चर उपचार के रूप में सुजोक के साथ कर्ण-चिकित्सा का सुझाव देती हैं।

अस्पष्ट प्रेम

मनुष्यों में उत्पादक एवं उपयोगी गतिविधियों को अपनाकर मानसिक तनाव की ओर से ध्यान हटाने की प्रवृत्ति होती है। यह अच्छी चीज़ है पर लम्बे समय तक मानसिक तनाव से अंजान रहने से हृदय चक्र अवरुद्ध हो जाता है। इससे हृदय से संबंधित बीमारियां होती हैं। अनाहत अथवा हृदय चक्र भावात्मक-बुद्धि का उत्पत्ति स्थान है। इसका संबंध प्रेम, आत्मसंतुष्टि, संतुलन, वचन से बंधा हुआ और स्वास्थ्य एवं समृद्धि से होता है। दबाया हुआ तनाव निमोनिया, दमा, कमर के निचले हिस्से तथा कंधे में पीड़ा का कारण बनता है। अनाहत चक्र को सक्रिय करने के लिए पद्मिनी द्वारा सुझाई गई यमज हृदय ध्यान तकनीक सबसे अधिक प्रभावी तरीका है।

दम घुटना महसूस करना

विशुद्धि चक्र या कंठ चक्र में तनाव संप्रेषण की योग्यता को रोकता है। इसके कारण चिंता, ध्यान कम होने का विकार, श्वास समस्याएं, साइनस, थॉयराइड, टांसिल्स जैसी बीमारी होती है। सार्वजनिक वक्ताओं का विशुद्ध चक्र या कंठ चक्र सुसंतुलित होता है।

अंतर्ज्ञान कौशल का कम होना

आज्ञाचक्र या तृतीय नेत्र चक्र के सही से बैलेंस होने से हरफनमौला विद्यार्थियों का अंतर्ज्ञान कौशल तेज़ होता है। यह अतीन्द्रिय ज्ञान का स्रोत है। इसमें मानसिक तनाव होने से आंख, नाक, गले की समस्याएं, माइग्रेन, उपचारात्मक योग्यता की कमी, व्यक्तित्व विकार जैसे रोग होते हैं।

अध्यात्म से कटना

आध्यात्मिकता की उत्पत्ति का स्थान सहस्रार चक्र में स्थित है। इसे मुकुट चक्र भी कहते है। इस चक्र का असंतुलन तंत्रिका-संबंधी विकारों, स्मृति-लोप, मिर्गी और खंडित मानसिकता जैसे रोगों का कारण बनता है। शारीरिक व्यायाम, ओम के नाद के साथ प्राणायाम तथा चक्रध्यान जैसे घरेलू उपचारों से तनाव में तुरंत आराम मिलता है।

वैसे तो शारीरिक तौर पर की गई कोशिश मदद करती है परंतु जब तक मन पूरी तरह विघ्न-बाधाओं से मुक्त नहीं होता तब तक व्यक्ति को तनाव से मुक्ति नहीं मिलती। यह आश्चर्य की बात है कि कैसे एक अकेला विचार शरीर की असंख्य तंत्रिकाओं को प्रभावित कर डालता है, परिणामस्वरूप लघु-समयावधि की पीड़ा, जटिल रोग और भावनात्मक ब्रेकडाउन (ध्वंस) जैसी समस्याएं होती हैं। केवल सोचने से समस्याओं का समाधान नहीं होता। सोचते रहने से तो समस्याएं बढ़ती हैं। व्यक्ति जितना अधिक किसी समस्या के बारे में सोचता है समस्या उतनी ही अधिक बड़ी लगती है। समस्या जितनी बड़ी होती है – मानसिक तनाव उतना ही अधिक होता है और उतने ही अधिक गंभीर होते हैं मानसिक तनाव के लक्षण।