हरमन हेसे

हर बात का एक उत्तर नहीं होता, कहती है हरमन हेसे की रचना सिद्धार्थ

सभी को प्यारा एक ब्राह्मण बालक, खुद को लेकर एक शाश्वत प्रश्न का जवाब खोजने और आत्मज्ञान की प्यास बुझाने के लिए सब कुछ छोड़कर निकल पड़ता है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हरमन हेसे का उपन्यास  ‘सिद्धार्थ’, गौतम बुद्ध के बारे में नहीं है। मुख्य पृष्ठ देखकर तो यही आभास होता है। हरमन हेसे (Herman Hesse) के मशहूर उपन्यास का नायक क्षत्रिय राजकुमार नहीं, बल्कि एक ब्राह्मण बालक है, जो कि गौतम बुद्ध की ही तरह पशोपेश से गुजरता है। कहानी के नायक का नाम और उसका चित्रण दोनों ही साफ-साफ दर्शाते हैं कि वह गौतम बुद्ध से प्रेरित है।

पुस्तक में इस बात का सबूत भी मिलता है, जबकि सिद्धार्थ की राह गौतम बुद्ध से टकराती है और इसके बाद की कहानी पाठक को हैरान कर देती है।

सभी को प्यारा एक ब्राह्मण बालक खुद को लेकर एक शाश्वत प्रश्न का जवाब खोजने और आत्मज्ञान की प्यास बुझाने के लिए सब कुछ छोड़कर निकल पड़ता है। हरमन हेसे  के उपन्यास की कहानी का सार यही है।

इसका प्रस्तुतिकरण सरल और लयबद्ध है। हरमन हेसे ने छोटे और स्पष्ट वाक्यों का उपयोग करते हुए दोनों चरित्रों के बीच होने वाले चुटीले संवादों को सहजता के साथ पाठकों के समक्ष रखा है। सिद्धार्थ के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों का जिक्र लेखक ने एक बहती नदी की धारा की तरह किया है जो अविरल बहती रहती है। कहानी में एक आध्यात्मिक सुर है, लेकिन यह इसकी गति को प्रभावित नहीं करता, क्योंकि सिद्धार्थ अपनी खोज की राह से कभी भटकता ही नहीं।

कहानी में मुख्य पात्र सिद्धार्थ, खुद के लिए प्रथम पुरुष की बजाय, तृतीय पुरुष का संबोधन करता है, जिसे पूर्वी सभ्यता में आत्म ज्ञान का संकेत माना जाता है। इसमें व्यक्ति स्वयं को या आत्मा को अपने शरीर से अलग कर लेता है।

उदाहरण के तौर पर सिद्धार्थ और उसके पिता के बीच होने वाले एक वार्तालाप में, उसके पिता कहते हैं, ‘क्या तुम अपने पिता की आज्ञा मानने की बजाय मरना पसंद करोगे?’, जिसका उत्तर देते हुए वह कहता है, ‘ सिद्धार्थ ने हमेशा ही अपने पिता की आज्ञा मानी है’।

जब सिद्धार्थ ‘मानसिक और शारीरिक’ भावनाओं के भंवर से गुजरता है,  तो वह अपने आत्मपरक के दोनों चरम असंयम (सुखवाद) और आत्म-संयम (संन्यास) का अनुभव करता है और उसे आत्मा की अनेकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

वह व्याकुलता, प्यार, वासना और लोभ का अनुभव करने के साथ ही दुख, पीड़ा और भूख से व्याकुल नहीं होता। उसकी उन्मुक्त खोज, स्वयं की तलाश को अपनाना और आत्मसात करना, यह उसकी यात्रा को न सिर्फ असाधारण बल्कि अप्रत्याशित भी बनाता है। साथ की खुद से प्यार करना भी सिखाती है। एक स्थान पर वह चुंबन के बदले में पूरी कविता की रचना कर देता है।

किताब का एक अंश :

‘अपने बाग में गई सुंदर कमला
बाग के द्वार पर खड़ा था भूरा सामना
जैसे ही उसने कमल फूल देखा
वह नतमस्तक हो गया
मुस्कुराती कमला ने अभिवादन स्वीकारा
युवा सामना ने सोचा, अच्छा है
कि इस सुंदर कमला के लिए त्याग किया जाए
बजाय उन भगवानों के’

अंत में संदेश बेहद साफ है। किसी भी अच्छी किताब की तरह इसकी प्रस्तुति पाठकों को इतनी आजादी देती है कि वे अपनी स्वयं की धारणा बना सकें और यह अभिव्यक्त करें कि हर कोई एक ही पथ नहीं चुनता है और यह भी कि हर बात का केवल ‘एक’ उत्तर नहीं होता।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।