भारतेन्दु हरिश्चंद्र की रचनाएं और उससे मिलने वाली सीख

कलम, धन और शोहरत के धनी थे भारतेंदु हरिश्चंद्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) 18वीं और 19वीं शताब्दी के बड़े साहित्यकारों में से एक थे। यूं तो कलम से जिसका रिश्ता होता है, उनका रिश्ता धन से कम ही होता है। लेकिन, भारतेंदु उन साहित्यकारों में से थे, जो उस ज़माने के अमीर परिवार में जन्मे थे। यही वजह भी है कि इन्होंने हिंदी भाषा के लिए योगदान तो दिया ही, साथ ही अपने धन से साहित्यकारों और ज़रूरतमंदों की भी मदद की। भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताओं और उसकी विशेषताओं के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये आर्टिकल।

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) की रचनाओं और उसकी विशेषताओं के बारे में जानने से पहले इनके जीवन के बारे में जान लेते हैं। इनका जन्म गुलाम भारत में 1850 में हुआ था। इनकी मृत्यु महज़ 34 साल में 1885 में हो गई थी।

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) कलम, धन और शोहरत के धनी थे। कलम के धनी इसलिए क्योंकि इनकी कविताएं पढ़ते ही मन खो-सा जाता था। इन्होंने प्रेम पर 7 संग्रह लिखे, जो प्रेम सरोवर, प्रेम फुलवारी, प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप, प्रेम मालिका, प्रेमाशु वर्णन और प्रेम माधुरी हैं। ब्रजभाषा और खड़ी बोली में इनकी पकड़ बेहद मजबूत थी।

इनके लिखे नाटकों में, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सती प्रताप, सत्य हरिश्वंद्र, प्रेम जोगिनी, श्री चंद्रावली, भारत दुर्दशा, अंधेरी नगरी और अन्य हैं। इनकी लिखी कविताओं में चने का लटका, रोअहूं सब मिलिकै, उधो जो अनेक मन होते, चूरन का लटका, हरि भूमि सब भूमि, गंगा वर्णन, परदे में कैद औरत की गुहार, मुकरियां और अन्य काफी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने पूर्ण प्रकाश व चंद्रप्रभा जैसे उपन्यास लिखे। यात्रा रचनाओं में सरयूपार की यात्रा और लखनऊ खास है। इससे हमें ये पता चलता है कि इन्हें यात्राएं करने का काफी शौक था। वहीं, भारतेंदु काफी धनी थे, इन्होंने न सिर्फ अपने धन से साहित्यकारों की मदद की बल्कि राजसी जीवन जीने के साथ खूब दान भी किया।

आइए एक नजर भारतेंदु की रचनाओं पर डालते हैं : –

‘नए जमाने की मुकरी में अंग्रेजों की कानून व्यवस्था पर किया व्यंग

नई नई नित तान सुनावै
अपने जाल में जगत फंसावै।
नित नित हमै कराई बल सून
क्यों सखि साजन नहीं कानून।

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) ने ‘नए ज़माने की मुकरी’ के जरिए अंग्रेजों की कानून व्यवस्था पर व्यंग किया। कवि बताते हैं कि अंग्रेजों ने जिन-जिन तरीकों से भारत को लूटा उसमें कानून सबसे अहम था। देश को लूटने के लिए अंग्रेजों ने मनमाने ढंग से कानून बनाए। उन्होंने जितने भी कानून बनाए, सभी अपने फायदे के लिए बनाए। ऐसा कर के वो भारतीय लोगों को गुलाम बनाते गए। अंग्रेजों के बनाए इस कानून में फंसे भारतीय की पीड़ा को ‘नए ज़माने की मुकरी’ में बयां किया है।

‘प्रेम मालिका में कृष्ण के सौंदर्य रूप का वर्णन

नैना वह छवि नाहिन भूलै।
दया भरी चहुं दिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले।
ह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरै।
वह बतरानि मुरलि हरि की वह देखन चहूं कोरे।
वह धीरी गति कमल फिरावन कर लै गायन पाछै।
वह बीरी मुख वेनु बजावति पीत पिछौरी काछे।
पर बस भए फिरत है नैना एक छन टरत न टैरे।
हरीचंद ऐसी छवि निरखत तन मन धन सब हारे।

ये पद ‘प्रेम मालिका’ से लिया गया है, जिसका प्रकाशन 1871 में हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) ने इसके जरिए भगवान कृष्ण के सौंदर्य रूप का वर्णन किया है। कवि बताते हैं कि भक्तों की आंखों के रास्ते होते हुए भगवान कृष्ण दिल में बस गए हैं। भक्त हर समय उस दृष्टि को याद करते हैं, जिसकी बदौलत भगवान कृष्ण के सौंदर्य को देखने व दर्शन करने का मौका मिला। भगवान कृष्ण की चंचलता से भरी मुस्कान, जो आंखों की ओर से सभी ओर देख लेने की तस्वीर मनमोहित करने वाली है।  मुस्कुराते और बातचीत करते हुए मुरलीमनोहर जो अपनी खुली आंखों से भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए दर्शन कर ले, वो कहीं और अपनी नज़रों को घुमा नहीं सकता है। पीले वस्त्र पहने हुए श्याम ने भक्त की उन आंखों को अपना दास बना लिया है कवि हरिश्चंद्र कहते हैं, ऐसे मुरलीमनोहर को देखने का अपना ही आनंद है। भगवान की इस सुंदरता पर मेरा सब कुछ अर्पण है। इस काव्य से हमें ये पता चलता है कि भारतेंदु भक्ति भावना में सराबोर थे।

काव्य के जरिए अंग्रेजों को बताया चतुर और चालाक

भीरत भीतर सब रस चूसै।
हंसि हंसि के तन मन धन मूंसै।
जाहित बातन में अति तेज
क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज।

यह पद ‘नए जमाने की मुकरी’ से लिया गया है। उस जमाने में इस मुकरी को सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही पसंद नहीं करते थे, बल्कि जो इसे एक बार सुन लेता वो भी इसे याद कर लेता था। यानि  जो पढ़े-लिखे नहीं थे, वे भी इसे खूब पसंद करते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) ने इसके जरिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई थी। इस मुकरी में इन्होंने अंग्रेजों को चालाक और तेज़ बताया है। कवि बताते हैं कि  बातचीत कर और भारतीय को फंसाकर अंग्रेजों ने खूब लूटा है। अंग्रेजों ने धोखा देकर भारत को लूट लिया और सारा धन लेकर खुद समृद्ध हो गए। अंग्रेजों पर शब्दों के जरिए प्रहार करते हुए भारतेंदु  कहते हैं कि उन्होंने हर लेवल पर भारतीय को चोट पहुंचाई है। लूटना और शासन करना यही अंग्रेजों के हथियार हैं। इस रचना के ज़रिए हमें ये पता चलता है कि भारतेंदु के दिल में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बगावत की आग थी।

विनय प्रेम पचासा’ में प्रेम की शुद्धता का है बखान

प्रेम में मी मेष कछूं नाहिं।
अति ही सरल पंथ यह सूधो छल नहिं जाके माही।
हिंसा द्वैष इरखा मत्सर मद स्वारथ की बातै।
कबहूं याके निकट न आवै छल प्रपंच की धातै।
सहज सुभाविक रहनि प्रेम की प्रीतम सुख सुखकारी।
अपो कोटि कोटि सुख पिय के तिनकहि पर बलिहारी।
हं ने ज्ञान अभिमान नेम ब्रत विशय-वासना आवै।
रीझ खीज दोऊ पीतम की मन आनंद बढ़ावै।
परमारथ स्वारथ दोऊ पीतम और जगत नहिं जाने।
हरिश्चंद य प्रेम-रीति कोउ विरले ही पहिचाने।

ये पंक्तियां 1881 में प्रकाशित ‘विनय प्रेम पचासा’ से ली गई है। इसमें प्रेम की शुद्धता का बखान भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) ने किया है। कवि बताते हैं कि प्रेम में किसी प्रकार का अवगुण-दोष नहीं होता। इसमें धोखेबाजी की कोई जगह नहीं है। प्रेम का रास्ता सीधा व आसान है। हिंसा, अहंकार, दुर्भावना जैसी नकारात्मकता का प्रेम की राह में कोई जगह नहीं है। प्रेम सरल है, इसका मारपीट और जलन से कोई रिश्ता नहीं है। सच्चा प्रेम सुख देने वाला है। हम जिसे चाहते हैं उसकी खुशी के लिए अपनी खुशी की कुर्बानी देना ही सच्चा प्रेम होता है। समाज के  तमाम नकारात्मकता से प्रेम आज़ाद है। प्रेम में वासना, ज्ञान का अंबार, लालच, अभिमान जैसी बातों की जगह नहीं है। अपने प्रेमी पर साथी चाहे गुस्सा क्यों न हो जाए, लेकिन प्रेम हर परिस्थिति में जीतता ही है। हमारा समाज जिस लालच में उलझा है, प्यार इन तमाम चीजों से परे है। कवि को ऐसा लग रहा है, प्यार को सिर्फ कुछ लोग ही जान पाते हैं। संसार के बाकी लोग तो अपनी इच्छा में ही लिप्त हैं।

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) की रचनाएं आज के ज़माने के लिए सीख है। इनके काव्य के बारे में जितना लिखा जाए कम है, ऐसे ही रचनाकारों के बारे में जानने के लिए और उनकी रचनाओं से रू-ब-रू होने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा पर आर्टिकल्स।

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