असफलता, सफलता

विफलता तो सफलता की शुरुआत है

9 लोगों की कहानियां, जिन्होंने विफलता (failure) को ‘एंड ऑफ द रोड’ नहीं समझा, बल्कि इसे कुछ नया और अर्थपूर्ण सीखने की नई यात्रा की शुरुआत के रूप में देखा।

किसी सयाने ने एक बार कहा था, ‘सफलता (Success) दरअसल एक विफलता (Unsuccess) से दूसरी विफलता की ओर बगैर उत्साह गंवाए बढ़ते रहने का नाम है।’ इन शब्दों से साफ हो जाता है कि सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों को एक-दूसरे से जुदा नहीं देखा जा सकता। ऐसे में यदि लोग विफलता को सफलता की सीढ़ी मानते हैं, तो अचरच की बात नहीं है। ज़िंदगी की शुरुआत से ही फिर चाहे वह स्कूल हो, कॉलेज हो, माता-पिता की भूमिका हो, पति-पत्नी के रूप में, मित्र के रूप में या दादा-दादी, नाना-नानी के रूप में हो, लोग सफलता ही चाहते हैं। लेकिन जब आप सफल होने का सपना देखकर उसकी योजना बनाते हैं तो ज़िंदगी की हकीकत से सामना होने लगता है।

ज़िंदगी चुनौती, अड़चन, विफलता से भरी पड़ी है, जो आपके सपने की दुनिया को आपकी आंखों के सामने ही ताश के पत्तों की तरह ढहते हुए दिखाती है। जब सफलता की खोज में लगातार मिल रही विफलता लोगों को बेचैन बनाती है, तो दूसरे लोगों की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने की वजह से लोग टूटने लगते हैं। ऐसा होने पर अनेक लोग समझदारी का साथ छोड़कर खुद को विफल मानने लग जाते हैं। ऐसे लोग किसी कार्यक्रम या घटना को लेकर यह सोचते ही नहीं कि ऐसा भी हो सकता है। भारत की सबसे बड़ी कॉफी चेन ‘कैफे कॉफी डे’ के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक परफेक्ट जेंटलमैन, अच्छे परिवार से दयालु स्वभाव वाले सिद्धार्थ फाइनेंशियल प्रेशर के तले दब गए। अपने कर्मचारियों को लिखे उनके अंतिम पत्र से यही पता चलता है कि उन पर चारों ओर से दबाव था। उन्होंने लिखा, ‘मैं बतौर कारोबारी फेल रहा’। लेकिन जो उन्हें जानते हैं, उन्हें पता है कि वे फेल नहीं हुए थे।

न जाने ऐसी कितनी ही कहानियां हैं, जिसमें लोग अपनी कोशिश में लगातार विफल रहे, लेकिन उन्होंने कठिन से कठिन स्थिति में भी हार नहीं मानी। ऐसे ही लोग उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने की इच्छा रखते हैं। सोलवेदा ने यहां 9 लोगों की कहानियां दी हैं, जिन्होंने विफलता को ‘एंड ऑफ द रोड’ नहीं समझा, बल्कि इसे कुछ नया और अर्थपूर्ण सीखने की नई यात्रा की शुरुआत के रूप में देखा।

जैक मा : विफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है

जैक मा (Jack Ma) करोड़पति बनने से पहले लाखों बार विफल हुए। आज उनकी गिनती चीन के सबसे धनी लोगों में होती है। अलीबाबा ग्रुप के सहसंस्थापक एवं पूर्व सीईओ जैक मा ने पढ़ाई, कैरियर और कारोबार जैसे हर क्षेत्र में असफलता देखी। वह अपनी प्रायमरी स्कूल की परीक्षा में भी दो बार फेल हुए, मिडिल स्कूल में 3 बार और हांगझोऊ नॉर्मल यूनिवर्सिटी में 3 कोशिशों के बाद प्रवेश पा सके। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) में प्रवेश के लिए भेजे गए उनके 10 पत्र अस्वीकार हुए थे। यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने के बाद वो नौकरी हासिल करने में विफल रहे और उनके दो कारोबार पूरी तरह असफल हुए। दावोस वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि, ‘जब केएफसी ने चीन में कदम रखा तो 24 लोग वहां नौकरी मांगने पहुंचे, जिसमें से 23 को चुना गया, सिर्फ मुझे रिजेक्ट किया गया था’। लेकिन इस बात से निराश होने की बजाय जैक मा ने सपना देखा और अलीबाबा ग्रुप की स्थापना की। जैसे कहा जाता है न, ‘रेस्ट इज हिस्ट्री।’

स्टीफन किंग : आपको अपनी क्षमता के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ करना चाहिए

स्टीफन किंग (Stephen King) को 4 दशकों से शानदार हॉरर शैली की किताबें लिखने के लिए पहचाना जाता रहा है। इतिहास में सबसे ज्यादा 30 से अधिक बेस्ट सेलर देने वाले किंग को प्रकाशकों ने सैकड़ों बार भगाया और आरंभिक यात्रा में आलोचकों ने उन्हें जमकर आड़े हाथों लिया था। उनकी पहली नॉवल ‘कैरी’ को 30 बार रिजेक्ट करने के बाद प्रकाशित किया गया था। 1994 में जब उनकी शॉर्ट स्टोरी ‘द मैन इन ब्लैक सूट’ (The Man in the Black Suit) ने प्रतिष्ठित ओ हैनरी अवॉर्ड जीता, तो पब्लिशर्स वीकली ने लिखा था कि ‘यह उस वर्ष की कमजोर कहानियों में से एक थी’। किंग ने ’60मिनट’ का एक साक्षात्कार दिया था। इसमें उन्होंने अपनी आलोचना का जवाब दिया था। उन्होंने कहा कि ‘मेरे आलोचकों ने मेरे काम को खराब और थोड़ा दर्दनाक बताया था, तो मैं उन्हें कहना चाहता हूं कि मैं भी यह बात जानता हूं। मैं अपनी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने की कोशिश कर रहा हूं’।

क्रिस गार्डनर : असल खुशी तो उस बात में है कि जब आप कभी हार न मानें

हॉलीवुड की फिल्म ‘द परस्यूट ऑफ हैप्पीनेस’ फिल्म देखने वालों को रंक से राजा बनने वाले क्रिस गार्डनर (Chris Gardner) की प्रेरणादायक कहानी तो पता ही होगी। लेकिन गार्डनर की ज़िंदगी की कहानी पर दोबारा नज़र दौड़ाना ज़रूरी है, क्योंकि इससे हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। किशोरावस्था में क्रिस ने एक रेस्तरां और नर्सिंग होम में छोटे-मोटे काम किए थे। रात को वह अपनी मां को अपने सौतेले पिता से सुरक्षित रखने की जुगत में रहते। बगैर किसी डिग्री और अनुभव के उन्होंने घर-घर जाकर मेडिकल उपकरण बेचना शुरू किया। उनकी यह कोशिश उन्हें कंगाल कर गई। खाली जेब और एक बच्चे की जिम्मेदारियों के बीच भी गार्डनर आगे बढ़ते रहे। उनके पास न तो सिर पर छत थी, न सहयोग और न ही कोई गॉडफादर। उनके पास केवल खुद को लेकर आत्मविश्वास और दृढ़ता थी, जिसने उन्हें चतुराई से अपनी स्टॉक ब्रोकरेज फर्म गार्डनर रिच एंड को खोलने और उसे सफल बनाने की प्रेरणा दी।

असफलता, सफलता

“आप तब तक फेल नहीं होते जब तक आप कोशिश करना बंद नहीं कर देते।”- अल्बर्ट आइंस्टीन

अल्बर्ट आइंस्टीन : धीरज और लगन महत्वपूर्ण है, डिग्रियां नहीं

केवल फिजिसिस्ट और मैथमेटिशियनही मॉर्डन फिजिक्स के बीज बोने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के प्रशंसक नहीं हैं। सारी दुनिया इस महान वैज्ञानिक के योगदान, उनकी अद्वितीय क्षमताओं और आउट ऑफ द ऑर्डिनरी थॉट प्रोसेस का लोहा मानती है। उन्हें विलक्षण प्रतिभा का धनी कहना उन्हें कमजोर बताने वाली बात साबित होगी, क्योंकि आज भी वैज्ञानिक उनकी 100 साल पूर्व की गई वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को सही मानते हैं। लेकिन हकीकत यही है कि बचपन में आइंस्टीन के पास विलक्षण प्रतिभा नहीं थी। दरअसल वे उन छात्रों में शामिल थे, जो केवल पास होने जितने अंक ही परीक्षा में हासिल करते थे। 1895 में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के एंट्रेस एग्जाम में फिजिक्स और गणितको छोड़कर आइंस्टीन अन्य सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हुए थे। ग्रेजुएशन के बाद आइंस्टीन अपना कैरियर फिजिक्स के अस्सिटेंट प्रोफेसर के रूप में शुरू करना चाहते थे, लेकिन उन्हें किसी ने स्वीकार नहीं किया। दो वर्ष तक बेरोजगार रहने के बाद उन्हें पेटेंट ऑफिस में काम मिला, जहां उनके सहयोगी उन्हें विलक्षण और गैर पारंपरिक व्यक्ति मानते थे। इसके बावजूद फिजिक्स को लेकर आइंस्टीन का प्यार बढ़ता रहा। कुछ वर्ष बाद 1905 में उन्होंने रिलेटिविटी पर पेपर लिखा और दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में शामिल हो गए।

“फेल्योर महत्वपूर्ण नहीं है। खुद को मूर्ख बनाने के लिए काफी हिम्मत की ज़रूरत होती है।’’ – चार्ली चैपलिन

चार्ली चैपलिन (Charlie Chaplin) : लाफ ऑफ द हार्डशिप्स

इस ब्रिटिश कलाकार का बचपन बहुत तकलीफ में बीता क्योंकि उनके पिता उनके परिवार से तब अलग हो गए जब वे सिर्फ दो साल के थे। उन्हें 7 साल की उम्र में अनाथाश्रम भेज दिया गया क्योंकि उनकी मां के पास उनके बेटों की परवरिश के लिए पैसे नहीं थे। मां खुद भी मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गई और उन्हें पागलखाने में रखना पड़ा। चैपलिन (Charlie Chaplin) और उसके भाई को अपना ख्याल खुद रखना होता था। वे अक्सर कई दिनों तक भूखे रहते और सड़को पर सोकर जीवन का संघर्ष करते। इन दिनों, चैपलिन ने अपनी टेप डांसिंग के हुनर और हंसाने की कला का इस्तेमाल कर स्टेज शो करना शुरू किया। बचपन के संघर्षो ने उनकी मासूमियत तो छीन ली थी पर उनकी मां ने उनमें हास्य के प्रति एक रुझान पैदा किया था। विषम परिस्थितियों में भी चैपलिन ने यह सुनिश्चित किया कि दुनिया हंसे चाहे वे खुद अपने गम और आंसुओं के परदे के पीछे छिपे रहे। शुरू-शुरू में तो हॉलीवुड ने भी उन्हें नकार दिया था, लेकिन समय के साथ चैपलिन विश्व के महानतम ‘साइलेंट एक्टर’ कहलाए जाने लगे।

स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) : हिम्मत को अपाहिज मत होने दो

एक बेहतरीन फिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) को महज 21 बरस की उम्र में खतरनाक और कष्टदायक मोटर न्यूरॉन नामक बीमारी हो गई थी। उनके चिकित्सकों ने कहा था कि हॉकिंग के पास अब जीने के लिए 2 से 5 वर्ष ही बचे हैं। लेकिन हॉकिंग न केवल 76 वर्ष की आयु तक जीवित रहे, बल्कि उन्होंने अपना बेहतरीन काम, जिसमें ‘ब्रीफ हिस्ट्र ऑफ टाइम’ भी शामिल है, दुनिया को दिया।

जीवन के प्रति अपने नजरिए से हॉकिंग ने लोगों को खतरनाक बीमारी होने के बावजूद जिज्ञासु एवं हंसमुख रहने की प्रेरणा दी। उनके प्रसिद्ध शब्द, “अन्य दिव्यांग व्यक्तियों को मेरा सुझाव यह है कि आप इस बात पर ध्यान न दें कि आपकी दिव्यांगता आपको क्या करने से रोक रही है, बल्कि इस बात पर ध्यान दें कि यह आपको क्या करने का मौका दे रही है। उन बातों को नज़रअंदाज करें जो दिव्यांगता से आप नहीं कर पाते। आप शारीरिक रूप से भले ही दिव्यांग हैं, लेकिन अपनी हिम्मत को दिव्यांग न होने दें।”

लुडविग वान बीथोवेन (Ludwig van Beethoven) : संकट में दृढ़ता रखें

संगीतकारों के परिवार में पैदा हुए बीथोवेन को अपने वायोलिन का अटपटे ढंग से उपयोग करने और निराशाजनक संगीतकार (होपलेस कंपोजर) होने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। उनके पिता जो स्वयं संगीतकार थे, इस बात को लेकर काफी खफा थे कि उनका बेटा उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है। इससे वे उनकी पिटाई भी करते थे। लोगों में यह बात भी फैली हुई है कि इससे बीथोवेन (Ludwig van Beethoven) की सुनने की क्षमता प्रभावित हुई थी। लेकिन इतनी कड़ी आलोचना और अपने पिता के क्रूर बर्ताव के बावजूद बीथोवेन ने म्यूजिक कंपोज करना बंद नहीं किया। उन्होंने बधिर होने के बाद ही अपनी सबसे बेहतरीन संगीत की रचना की। बीथोवेन के अनुसार, ‘यह किसी भी अच्छे व्यक्ति की विशेषता होती है कि वह संकट में दृढ़ता रखता है।’

“यह ज़रूरी है की सही रवैया रखें। विनम्र, जिज्ञासु, दृढ़ निश्चयी होने के साथ असफल होने पर हमेशा प्रयास करने की कोशिश करते रहें।”- सर जेम्स डायसन

सर जेम्स डायसन (Sir James Dyson) : विफलता को समस्या निदान की राह समझें

वैक्यूम क्लीनर्स बनाने वाली अग्रणी निर्माता कंपनी डायसन के संस्थापक एवं ब्रिटिश इनवेंटरसर जेम्स डायस (Sir James Dyson) ने 15 साल तक 5126 प्रयासों के बाद एक ऐसा प्रोटोटाइप बनाया, जो सफल रहा। आज वे इस कई मल्टी बिलियन डॉलर कंपनी को सफलतापूर्वक चला रहे हैं, जिसे अपनी क्रिएटिव एवं इनोवेटिव डिजाइन के लिए पहचाना जाता है। एक गुमनाम व्यक्ति से कई अरब डॉलर की कंपनी का मालिक बनने का डायसन का सफर विफलता को समस्या निदान की राह पर चलने वाले व्यक्ति का सफर समझा जा सकता है। कहा जाता है कि आप जब कोई बात पहली बार करते हैं, तो असफलता का डर आप में नहीं होता। डायसन ने पूर्व में प्रकाशित एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘यह सही दृष्टिकोण होने का सवाल होता है। आपको विनम्र, जिज्ञासु, दृढ़ और विफलता के बावजूद लक्ष्य की दिशा में काम करते रहना होगा’।

मिल्टन हर्षे : उस पर ध्यान दें जो आपको खुशी दे

अमेरिकन कारोबारी एवं परोपकारी मिल्टन हर्षे, हर्षे चॉकलेट मन्युफैक्चरिंग कंपनी के संस्थापक हैं। साधारण वित्तीय स्थिति वाले परिवार में जन्मे हर्षे के पास बेहद कम शिक्षा थी और उससे भी कम अवसर। कंपनी की स्थापना से पहले हर्षे को स्थानीय प्रिंटिंग प्रेस में प्रशिक्षु के रूप में काम करते हुए निकाल दिया गया था। 30 वर्ष की आयु में वे दीवालिया हो गए, लेकिन उन्होंने फिर भी 3 अलग कैंडी कंपनियां खोलीं जो डूब गईं। अंतत: लैंकेस्टर कारमेल कंपनी से उन्होंने सफलता का स्वाद चखा और फिर हर्षे कंपनी ने उनकी स्वीट कन्फेक्शन (मिठाइयां) को घर-घर तक पहुंचाया। एक पूर्व प्रकाशित साक्षात्कार में हर्षे ने कहा था कि, ‘मैंने यह तय कर लिया था कि मैं अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले सबसे बेहतरीन निकेल चॉकलेट बार बनाऊंगा और मैंने ऐसा ही किया।’

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