1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद बंगाल पर अंग्रेजों की पकड़ मजबूत हो गई थी। भूमिहीन किसान और दस्तकारों (हाथ से कारीगरी का काम करने वाले लोग) का शोषण शुरू हो गया। तीर्थ यात्राओं पर भी रोक लगा दी गई थी। जब 1770 में बंगाल में भयानक अकाल आया, तो उसने आग में घी डालने का काम किया। अकाल की ऐसी भीषण स्थिति थी कि जहां पहले एक शाम लोगों को उपवास करना पड़ रहा था, वहां अब लोगों को सुबह और शाम, दोनों वक्त उपवास करना पड़ रहा था।
भीख देने वाला कोई नहीं था। केवल मांगने वाले ही बचे थे। लोगों ने अपने बच्चों को बेचना शुरू कर दिया, लेकिन केवल बेचने वाले ही थे, खरीदने वाला कोई नहीं था। ऐसी स्थिति में टैक्स वसूलने वालों का कहर अलग था। इसलिए विद्रोह तो होना ही था। उसी समय बंगाल में एक संगठित विद्रोह शुरू हुआ, जिसे संन्यासी विद्रोह (sanyasi vidroh) कहा जाता है। इस विद्रोह और उस समय के माहौल को लेकर बंकिम चंद्र चटर्जी (Bankim Chandra Chatarjee) ने आनंद मठ उपन्यास लिखा। इस आर्टिकल में हम आपको आनंद मठ उपन्यास का उद्देश्य और इसकी खासियत के बारे में बताएंगे।
आनंद मठ उपन्यास का इतिहास (Anand Math upanyas ka itihas)
सन्यासी आंदोलन और बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि पर लिखा गया उपन्यास आनंद मठ (Ananda Math) पहली बार 1882 में छपा। इन उपन्यास की क्रांतिकारी विचारधारा ने बंगाल के नवाबों और अंग्रेजों के खिलाफ देश में सामाजिक और राजनीतिक चेतना जगाने का काम किया। यह प्रभाव इतना ज़्यादा था कि इसी उपन्यास के एक गीत ‘वंदे मातरम’ आज़ादी के दीवानों का कुलगीत और देश की आज़ादी के बाद, राष्ट्रगीत बना।
आनंद मठ उपन्यास कई भाषाओं में हो चुका है प्रकाशित (Ananda math upanyas kai bhashaon mein ho chuka hai prakashit)
आनंद मठ जब पहली बार प्रकाशित हुआ था, तब से लेकर आज तक यह कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस उपन्यास में उस दौर की सिर्फ तस्वीर ही नहीं खींची है, बल्कि हर उन पहलुओं को दिखाया है, जो कड़वी सच्चाई है। इस उपन्यास में समाज की कुरीति को सुधारने की ज़रूरत को दर्शाया गया है। यह ऐसा ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसकी बराबरी और किसी भी उपन्यास से हम नहीं कर सकते।
बंकिम चंद्र चटर्जी बनें राष्ट्रवाद के ऋषि (Bankim Chandra Chatarjee bane rashtravad ke rishi)
वंदे मातरम का सबसे पहला जिक्र बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास आनंद मठ में ही मिलता है। हालांकि, बताया जाता है कि इस गीत के पहले दो छंद 1872 से 1875 के बीच ही लिख लिए गए थे। लेकिन, इन्हें 1881 में आनंद मठ के हिस्से के रूप में ही प्रकाशित किया गया। यह गीत आगे चलकर राष्ट्रवादी आंदोलनों का मूल मंत्र बन गया। आज़ादी के आंदोलन के क्रांतिकारी अरविंद घोष ने वंदे मातरम की रचना के लिए बंकिम चंद्र चटर्जी को ’राष्ट्रवाद का ऋषि’ की उपमा दी थी।
‘वंदे मातरम’ सबसे पहले गाया रवींद्रनाथ टैगोर ने (‘Vande maataram’ sabse pahle gaya Ravindranath Tagore ne)
बंकिम चंद्र चटर्जी ने सबसे पहले ‘वंदे मातरम’ को आनंद मठ में लिखा था, लेकिन इसे सबसे पहले गाया था रवींद्रनाथ टैगोर ने। बताया जाता है कि टैगोर ने इस गीत के पहले अंतरे को 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता वाले अधिवेशन में गाया था और वे इसे अपना सौभाग्य मानते थे। इस बात का जिक्र रवींद्रनाथ ने 1937 में जवाहरलाल नेहरू को लिखे एक पत्र में किया था।
राष्ट्रीयता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है आनंद मठ (Rashtriyata ki drishti se mahtvapoorn hai ananda math)
बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित आनंद मठ, राष्ट्रीयता की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस उपन्यास को एक नया राग सुनाने के लिए ही लिखा था। इस उपन्यास को सामाजिक भी कहा जा सकता है और एक हद तक ऐतिहासिक भी। इस उपन्यास को लिखने का प्रमुख उद्देश्य था लोगों को देशभक्ति के प्रति जागरूक करना। इस उपन्यास में अन्याय के खिलाफ एक, दो नहीं बल्कि पूरे समाज को विद्रोह के लिए तैयार होते दिखाया गया है।
आनंद मठ उपन्यास में उस समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों का वर्णन है। इस उपन्यास ने बंगाल के लोगों के अलावा पूरे देश के लोगों में राष्ट्रभक्ति जगाने का काम किया था। इस उपन्यास की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सामाजिक स्थितियों का वर्णन करते हुए लोगों को अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा दी गई।
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