जीत का महत्व

ज़िंदगी में जीत ही सब कुछ नहीं…

एनुअल स्पोर्टस मीट (Annual sports meet) के अंतिम दिन राहुल का मुकाबला स्कूल के सबसे तेज़ दौड़ने वाले खिलाड़ी के साथ था।

राहुल अपने स्कूल के सबसे तेज दौड़ने वाले एथलीट की लिस्ट में शामिल था। कई महीनों से एनुअल स्पोर्टस मीट (Annual Sports Meet) में रनिंग में हिस्सा लेने के लिए वह पूरे दमखम के साथ प्रैक्टिस कर रहा था। उसके मन में बस एक ही धुन सवार था कि उसे हर हाल में जीत हासिल करनी है और उसे जीत का महत्व अच्छी तरह पता था। चाहे इसके लिए कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े।

कंपीटिशन के दिन दौड़ देखने के लिए मैदान में दर्शकों की काफी भीड़ थी। उन दर्शकों में एक बुजुर्ग व्यक्ति भी शामिल था, जो राहुल की दौड़ देखने के काफी दूर से पहुंचा था।

पहले फेज की दौड़ शुरू हुई। राहुल ने जीत के महत्व को समझते हुए पूरी ताकत और दृढ़निश्चय के साथ इस अग्निपरीक्षा में उतरा और सबसे पहले फिनिशिंग लाइन को पार कर लिया। इसे देखकर वहां मौजूद दर्शकों के साथ राहुल भी बहुत खुश था।

प्रतियोगिता के दूसरे दिन राहुल का मुकाबला दो नए एथलीट के साथ होना था। लेकिन, इस रेस में भी राहुल सबसे पहले फिनिशिंग लाइन को पार कर गया और फर्स्ट रहा। मैदान में मौजूद दर्शक उसकी खूब वाहवाही कर रहे थे और इस तरह उसने प्रतियोगिता के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी का खिताब पा लिया।

प्रतियोगिता के अंतिम दिन राहुल का सामना स्कूल के सबसे तेज दौड़ने वाले खिलाड़ी के साथ होना था। उसने अच्छी शुरुआत की और प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को कड़ी चुनौती दी। पूरे रेस के दौरान दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे को बराबरी की टक्कर दे रहे थे। इसी बीच राहुल के साथ दौड़ने वाला एथलीट अचानक मैदान में संतुलन खोकर ट्रैक पर ही गिर पड़ा।

उस खिलाड़ी के पैरों में गहरी चोट आई थी और वह दर्द से छटपटा रहा था। लेकिन, राहुल के सिर पर जीत की धुन सवार थी। वह बिना परवाह किए लगातार दौड़ता रहा और आखिरकार उसकी जीत हुई। उसे जीत के महत्व का पता था। लेकिन, उसकी जीत को देखकर लोगों में इतना उत्साह नहीं दिखा, जो पहले के मैच में दिखा था।

राहुल अपने आसपास नजर दौड़ा कर देखा और सोचने लगा, ये क्या है? मेरी जीत पर खुशी जताने की बजाय दर्शकों के बीच इतनी उदासीनता क्यों है?

राहुल ने अपने मन में आए ख्यालों में खोते हुए व सोचते-सोचते प्रजेंटेशन सेरेमनी में हिस्सा लेने के लिए चला गया। उसने देखा कि जो बुजुर्ग दर्शक उसे देखने के लिए दूर से आया था, वह इस प्रतियोगिता का चीफ गेस्ट था। वह बुजुर्ग भी अपने समय में स्कूल का सबसे तेज धावक रह चुका था।

प्रजेंटेशन सेरेमनी के समापन के बाद उस बुजुर्ग ने राहुल को अपने पास बुलाया और पूछा, बेटे बताओ तुम्हारा परफॉर्मेंस कैसा रहा?

“सर, टूर्नामेंट में मेरी जीत हुई। इसलिए मुझे लग रहा है कि मैंने बेहतर प्रदर्शन किया, राहुल ने जवाब दिया।” पर मैं यह सोचकर बहुत हैरान हूं कि आखिर क्या बात थी कि दर्शकों ने मेरी जीत पर हौसला आफजाई नहीं की।

“बेटे ऐसा है कि जीवन में कुछ ऐसी भी बात होती है, जो किसी जीत से ज्यादा महत्व रखती है,” बुजुर्ग व्यक्ति ने जवाब दिया।

“दरअसल, तुमने अपने प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को पीड़ा में छोड़ कर आगे बढ़ गए। ऐसे में तुम यह कैसे उम्मीद कर सकते हो कि दर्शक तुम्हारी वाहवाही करे? बुजुर्ग ने अपनी बात जारी रखी। “एक बेहतरीन खिलाड़ी का मकसद सिर्फ टूर्नामेंट जीतना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने चाहने वालों और दूसरे खिलाड़ियों का दिल भी जीतना आना चाहिए। इस मामले में तुम्हारी हार हुई है।”

इसके बाद राहुल को उस वक्त अपनी गलती का अहसास हुआ। राहुल ने इस सलाह के लिए उस बुजुर्ग चीफ गेस्ट का आभार जताया और अपने घायल साथी खिलाड़ी को देखने के लिए ड्रेसिंग रूम की तरफ चला गया।

उस वक्त राहुल पहली बार बतौर एक आदर्श स्पोर्ट्स मैन के रूप में आगे आया।

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