सच्ची खुशी

सच्ची खुशी का अमृत

आरव यह देखकर भौंचक्का रह गया। उसकी ज़िंदगी में सुख-सुविधाओं के तमाम साजो-समान होने के बावजूद शायद ही कभी उसे इस तरह की अथाह खुशी महसूस हुई हो, जो इस बच्चे के चेहरे पर दिख रही थी।

मम्मी, मेरे नए एक्सबॉक्स का कंसोल खराब हो गया है। मुझे नया एक्सबॉक्स लेना है।” उस दौरान आरव पूरी तरह अपने में मग्न था। “लेकिन, आरव तुम्हारे पास तो पहले से ही बहुत सारे एक्सबॉक्स हैं। तुम्हें और कुछ नहीं चाहिए”, माला ने गुस्से भरे लहजे से कहा।

यह सुनकर उत्साहित आरव काफी निराश हो गया।” आई हेट यू”, वह गुस्से से बिफर पड़ा। इसके बाद अपनी बाइक की चाबी उठाई और वहां से चला गया। माला यह सोचकर परेशान थी कि अपने इकलौते बेटे की खुशी के लिए वह और क्या करे। आरव की मनमाफिक डिमांड को पूरी करने के लिए उसके पति ने शायद ही कभी ना कहा होगा। महज एक 16 साल के बच्चे के लिए आरव के पास वे सारी चीज़ें मौजूद थीं, जो उसकी उम्र के बच्चों को चाहिए होती हैं।

उस दौरान आरव के मन-मस्तिष्क में असंख्य विचार घूम रहे थे, जब वह बेवजह बाइक से पूरे शहर की चक्कर काट रहा था। मेरा भाग्य ही खोटा है। काश! मेरे भी पैरेंट्स बहुत अच्छे होते, वह उदासी का भाव लिए सोच रहा था। रेड लाइट पर जब बाइक रुकी, तो पास में सड़क किनारे एक परिवार पर उसकी नज़र गई। उनके फटे-पुराने और गंदे कपड़ों से उनकी तंगहाली साफ तौर पर झलक रही थी। लेकिन, इस दुनिया की परवाह किए बगैर एक गंदे और पुराने टेडी बियर से खेल रहे मासूम बच्चे को देखकर आरव आश्चर्यचकित रह गया और उसकी नज़र उस बच्चे पर ही टिकी रह गई।

आरव यह देखकर भौंचक्का रह गया। उसकी ज़िंदगी में सुख-सुविधाओं के तमाम साजो-समान होने के बावजूद शायद ही कभी उसे इस तरह की अथाह खुशी महसूस हुई हो, जो इस बच्चे के चेहरे पर दिख रही थी।

जब सिग्नल ग्रीन हो गया, तो आरव के भीतर एक चिंगारी-सी जल उठी। इसके बाद उसने अपनी ज़िंदगी और इस सड़क दोनों में ही सार्थक बदलाव की पहल करने का निर्णय लिया। वह लौट कर अपने घर गया और सीधे अपनी मम्मी के पास पहुंचा। “उम्म, मम्मी..मुझे माफ कर दो। मैंने आपके साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया था। अब मुझे एक्सबॉक्स की ज़रूरत नहीं है। मेरे पास पहले से ही ढेर सारे हैं।”, आरव ने बड़े ही ईमानदारीपूर्वक कहा

“सच में? तुममें यह बदलाव कैसे आया, समझ नहीं रहा? मैं तो समझ रही थी कि तुम मुझसे नफरत करते हो,” आरव की मम्मी ने नज़दीक आकर उसके हाथों को अपने हाथों में थाम लिया।

“नहीं, मम्मी… भला मैं ऐसे कैसे कर सकता हूं। आप और पिताजी मेरे लिए सबसे बेस्ट पैरेंट्स हैं, जिनसे मैं कुछ मांग सकता हूं। आप लोगों ने मेरी हर डिमांड पूरी की है”, आरव ने कहा।

अगले दिन आरव अपने स्टोर रूम में गया और उन खिलौने को खोजने लगा, जिन्हें उसकी मम्मी ने बड़े ही कायदे से संभाल कर रखे थे। वहां उसके कुछ पुराने कपड़े भी मिल गए। आरव ने उन खिलौनों और कपड़ों को एक बैग में भरा और उन्हें लेकर सिग्नल पर रहने वाले बच्चे और उसके परिवार के पास पहुंच गया।

गरीब बच्चे और उसके मां-बाप के चेहरे पर बिखरी मुस्कुराहट देखने लायक थी। पहली बार उसने वास्तविक खुशी जैसे अमृत का स्वाद चखा था।

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