मीनल ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा “अब मेड को भी संडे की छुट्टी चाहिए, पूरे हफ्ते बाहर काम करो और संडे को घर में।” मीनल की बात सुनकर रवि ने उसे समझाते हुए कहा “छुट्टी लेती है तो सैलरी कट कर लो।”
मीनल ने गुस्से से जबाव दिया “मुझे संडे को काम नहीं करना है। मैं नहीं देने वाली उसे कोई छुट्टी और अगर उसने एक भी छुट्टी ली तो मैं आधे महीने के पैसे काट लूंगी।”
शादी के बाद मीनल और शुभम दोनों ही दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में काम करते थे। ऐसे में दोनों को घर के काम के लिए समय नहीं मिल पाता था। इसलिए उन्होंने सविता को नौकरी पर रखा था।
सविता मीनल के घर का सारा काम खत्म करने के बाद, तीन दूसरे घरों में भी काम करती थी। एक दिन सविता के बेटे शुभम की तबीयत खराब हो गई। वैसे तो सविता की बहन उसके बच्चे का ख्याल रखती थी लेकिन, मां की कमी बच्चे को तो खलती ही है।
सविता को हर घर में रोज़ काम के लिए जाना पड़ता था। जब सविता के बेटे की तबीयत खराब हुई तो उसे एहसास हुआ कि वो अपने बच्चे को एक दिन का भी समय नहीं दे पाती है। इसके बाद उसने हर घर में ‘संडे की छुट्टी’ मांगी।
थोड़ा मनाने के बाद बाकी के घरों में उसे सप्ताह में किसी एक दिन छुट्टी लेने की मंजूरी तो मिल गई, लेकिन मीनल के घर में वो भी नहीं।
इधर मीनल जैसे ही ऑफिस पहुंची, उसके बॉस ने उससे कहा ‘मीनल तुम्हें ओवरटाइम करना पड़ेगा।’ मीनल ने चौंककर पूछा ‘क्यों?’ बॉस ने जबाव दिया “काफी काम पेंडिंग है, जिसे तुम्हें डेडलाइन से पहले खत्म करना होगा। कुछ सप्ताह तक तुम संडे को ऑफिस आकर भी काम कर सकती हो।”
बॉस की बात सुनकर मीनल का दिमाग सुन्न हो गया। वो बिना कुछ कहे वहां से अपनी डेस्क पर चली गई। वो सारा दिन चिंता और तनाव में रही। डेडलाइन पूरा करने के लिए वो अगले सप्ताह संडे को ऑफिस आई। पूरा दिन वो यही सोच रही थी ‘एक दिन…एक दिन भी मैं चैन से नहीं रह सकती। संडे की छुट्टी तो सबको चाहिए होती है….’ ये सोचते-सोचते अचानक उसके दिमाग में सविता की तस्वीर उतर आई। उसके दिल ने उसे आवाज़ दी ‘संडे की छुट्टी तो सबको चाहिए होती है…सविता को भी।’ इस वक्त उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई और आंखों से आंसू की दो छोटी बूंदे उसके लैपटॉप पर आ गिरी।
मीनल को आंसू की उन दो बूंदों में, संडे की दो छुट्टियां नज़र आ रही थी, एक खुद के लिए और एक सविता के लिए। घर जाकर मीनल ने सविता से कहा ‘तुम संडे की छुट्टी ले सकती हो।’ सविता ने सोनल को जबाव दिया ‘मैडम, हम दोनों को संडे की छुट्टी चाहिए, फिर काम कौन करेगा? एक काम कीजिए आप मुझे शनिवार की छुट्टी दे दीजिए और आप संडे की छुट्टी ले लीजिए।’
सविता की बात सुनकर मीनल का दिल पिघल गया और उसकी आंखें भर आईं, जिसे छिपाने के लिए वो कमरे में चली गई। कमरे की दीवार पर एक कैलेंडर टंगा था, जिसपर ‘संडे’ शब्द नज़र आ रहा था। आज मीनल को ‘संडे’ दुनिया का सबसे सुकून भरा शब्द लग रहा था।