दिल सब जानता है

दिल सब जानता है

अंतर्ज्ञान या दिल की आवाज़ एक भावना है, जो हमें जीवन में सही रास्ता दिखाती है। जटिल परिस्थियों का सामना करने के लिए तैयार करती है। यह एक मानवीय उपहार है।

पोर्श कलेक्टर मैग्नस वॉकर टेड टॉक में गो विद योर गट फीलिंग नामक टाइटल के ज़रिए पोर्श कारों के प्रति अपने प्रेम को बता रहे हैं। मैग्नस वॉकर का बचपन इंग्लैंड में बीता है और जब वह 9 साल के थे, तब से ही उन्हें पोर्श से प्यार हो गया। फिर जब वह 15 साल के हुए तो उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। वॉकर ने आजीविका के लिए 19 साल की उम्र में लॉस एंजिल्स में पुराने कपड़े बेचने शुरू कर दिए, जिसके बाद वह धीरे-धीरे फैशन इंडस्ट्री में प्रवेश कर गए। वॉकर का मानना है कि वह अपने प्यार पर ध्यान देते हैं, उन्हें अपने सपने और विश्वास को हकीकत में बदलने के लिए अपने दिल की आवाज़ को सुनना पड़ता है।

एक जाने-माने टॉक शो के होस्ट ओपरा विनफ्रे की भी अपनी एक कहानी है, जो हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन के शुरुआती समय में ही विनफ्रे को बहुत सारे कठिन समय का सामना करना पड़ा। लेकिन, फिर भी उनकी सकारात्मक सोच और सहज प्रवृत्ति के कारण वह आज विश्व प्रसिद्ध हैं। विनफ्रे कहती हैं कि “अपने ऊपर भरोसा रखना सीखना चाहिए, यह समझना चाहिए कि हमारे लिए अच्छा क्या है। यदि आप स्थायी सफलता चाहते हैं, तो अपने सहज ज्ञान पर भरोसा रखना सीखें। मैंने हमेशा अपने दिल की आवाज़ सुनी है। उसी पर भरोसा कर के आगे कदम बढ़ाती गई। अपने जीवन में एक बार मैंने दिल की आवाज़ नहीं सुनी और वह मेरी सबसे बड़ी गलती साबित हुई थी।”

स्टीव जॉब्स के बारे में कौन नहीं जानता है। स्टीव ने एक बार कहा था कि, “अपना कॉलेज पूरा करने के बाद मैं भारत भ्रमण पर निकला। मैंने पाया कि भारत के ग्रामीण व्यक्ति अपने बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते हैं। फिर भी वह समृद्ध और खुश हैं, क्योंकि वे अपने अंतर्ज्ञान का प्रयोग करते हैं। वे हमेशा वही काम करते हैं, जो उनका दिल करता है। मेरा मानना है कि अंतर्ज्ञान सबसे शक्तिशाली ताकत है। मेरे काम पर इस बात का हमेशा से बड़ा प्रभाव पड़ा है।

अब ज़रा आप गौर फरमाइए कि वॉकर, विनफ्रे और जॉब्स या इन जैसे लोग प्रसिद्ध कैसे हुए। इसका सीधा सा जवाब है कि इन्होंने हमेशा अपने दिल की आवाज़ सुनी और वही किया जो इनके अंतर्ज्ञान ने कहा।

लोग सहज प्रवृत्ति में भरोसा रखते हैं, वे हमेशा एक सरल वातावरण में रहना पसंद करते हैं। सहज प्रवृत्ति वाले लोग दिल की धड़कन की तरह होते हैं। उन्हें सिर्फ लगातार धड़कने से मतलब होता है। वे रुकना पसंद नहीं करते हैं। यदि हम मानव शरीर की बात करें, तो दिल पूरे शरीर को न केवल खून पहुंचाता है, बल्कि ऑक्सिजन और भोजन भी अंतिम कोशिका तक पहुंचाता है। दिल का अपना अलग दिमाग होता है, जो सभी तंत्रिकाओं से जुड़ा होता है।

मानव शरीर को आभास पहले से ही हो जाता है। जब कोई भी घटना घटित होती है, तब हमारे शरीर में उसके लिए भावनाएं पहले से ही जागृत होने लगती हैं। उदाहरण के साथ इस बात को समझें तो, हमारा अंतर्ज्ञान ही हमें बताता है कि हमें किस व्यक्ति से मिलना है, किससे नहीं। हमें कौन सा रास्ता चुनना है या हमें किसी समस्या का समाधान कैसे करना है। ऐसी स्थितियों में हमारा शरीर अनजाने में हमें एक अलॉर्म देने लगता है, जिससे ना चाहते हुए भी हम प्रेरित हो जाते हैं। इसलिए इसे अंतर्ज्ञान नाम दिया गया। लेखिका सोफी बर्नहैम अपनी किताब आर्ट ऑफ इंट्यूशन: कल्टिवेटिंग योर इनर विजडम के ज़रिए बताती हैं कि, “हमारा अंतर्ज्ञान कभी भी गलत नहीं होता है। जब आपका दिल आवाज़ देता है, तो उसका सीधा सरोकार आपके भविष्य से होता है। ये संकेत छोटा या बड़ा हो सकता है। इसलिए आपको हमेशा अपने दिल की आवाज़ सुनकर ही काम करना चाहिए।” अंतर्ज्ञान पर ओपरा का मत है कि दिल की आवाज़ में एक साथ कई भावनाएं छुपी होती हैं। यह शांत होने के बावजूद कोलाहल से भरी होती है और आपके अस्तित्व के लिए सीने में धड़कता है।

अंतर्ज्ञान अचेतन अवस्था में ही सही, लेकिन यह एक असामान्य या जटिल परिस्थितियों में ही आता है। कई अध्ययनों में यह बातें सामने आई हैं कि अंतर्ज्ञान कुछ और नहीं बल्कि हमारी धारणाएं हैं, जो किसी भी परिस्थिति से पहले उत्पन्न होती हैं। ये धारणाएं किसी बड़ी घटना से नहीं बल्कि नज़र के सामने से गुजरी हुई एक क्षणिक घटनाओं से भी बन सकती है। अंतर्ज्ञान हमारे मस्तिष्क का कैल्क्यूलेटर है, जो संकेत और मेंटल मैच करके हमें जवाब तुरंत दे देता है। आइए, अब उदाहरण से समझते हैं कि आखिर ये अंतर्ज्ञान काम कैसे करता है। जब कभी भी आप किसी विषम परिस्थिति में अटक जाते हैं, तो आपका मस्तिष्क उस स्थिति से मिलती-जुलती फाइलों को तुरंत स्कैन करता है। फिर जो भी बेहतर परिणाम होते हैं, उन्हें तुरंत आपके सामने पेश करता है। उसके अनुसार ही आप उस स्थिति का सामना करते हैं। आपने पाया होगा कि जीवन में कुछ घटनाएं स्वयं तो दोहराती हैं। फिर ये आपके मस्तिष्क में संग्रहित हो जाते हैं।

हमारा मस्तिष्क स्मृतियों का भंडार है। यह स्मृतियां दो प्रकार की होती हैं, स्पष्ट स्मृति और निहित स्मृति। किसी भी चीज़ को जानने की जिज्ञासा एक घोषणात्मक स्मृति है, जिसके बाद यह अंतर्निहित स्मृति में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण से समझें तो, सांस लेना एक अंतर्निहित स्मृति है, जिसे आप सोते समय भी नहीं भूलते हैं। वहीं, किसी बात को याद रखना, तथ्यों और आंकड़ों को याद रखना एक स्पष्ट स्मृति है। स्पष्ट स्मृति बनाने के लिए आपको तथ्यों और आंकड़ों को याद करना पड़ता है। बार-बार दोहराते रहने से आप स्पष्ट स्मृति को अंतर्निहित स्मृति में बदल सकते हैं।

किसी भी चीज़ को बार-बार दोहराने से वह आदत बन जाती है और उसके अनुसार ही हमारी पसंद और नापंसद तय हो जाती है। वहीं, अंतर्ज्ञान एक अनुभवात्मक ज्ञान की देन है। कई अनुभवों को मस्तिष्क में संरक्षित किया जाता है, फिर वैसी स्थिति पैदा होने पर मस्तिष्क एक निश्चित तरीके से काम करता है और भावनाओं के साथ प्रतिक्रिया देता है। इसी तरह से अंतर्ज्ञान कहीं न कहीं हमारी भावना से संबंधित है। हमें अनुभवों से सीखने के लिए भावनाएं ही प्रेरित करती हैं।

विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए हमें अंतर्ज्ञान ही तैयार करता है। यह सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि मानवीय उपहार है। जो सबसे अधिक डरावनी चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देती हैं। जीवन के किसी ज़रूरी मुद्दे पर जब फैसला लेना हो, तब अपने दिल की आवाज़ को ज़रूर सुनें, यह कुछ और नहीं आपका अंतर्ज्ञान है। ऐसा भी हो सकता है कि आपको अंतर्ज्ञान का मार्ग चुनने के बाद दो बार सोचना पड़े। लेकिन, सच मानइए, यह आपके लिए जो भी होगा, बेहतरीन होगा।

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