दयालुता

एक मुठ्ठी प्यार भरी

जहां कहीं भी ज़रुरतमंद इंसान होता है, वहां दया दिखाने का अवसर होता है- यह सबक 5 वर्षीय ईसा ने अपने जीवन में बहुत पहले ही सीख लिया था।

स्कूल से लौटकर ईसा अपनी कार से उतरकर सीधा अपने कमरे में गया। उसके बिस्तर पर एकदम नए खिलौने रखे थे, जिन्हें उपहार वाले कागज़ में लपेटकर वहां सजाया हुआ था। ये खिलौने उसके पिता अपनी हाल की विदेश यात्रा (Foreign Travel) से उसके लिए लेकर आए थे।

5 साल का बच्चा आज अपने सामान्य दिनों की तरह खुश नहीं था। वह परेशान और खोया हुआ लग रहा था। घर वापस आते समय ईसा ने गली के कोने में बच्चों को भोजन के लिए भीख मांगते देखा था। उनके भूखे चेहरों को देखकर वह विचलित हो गया था। ईसा अपनी बालकनी में गया और उसने नीचे गली में झांककर देखा। वहां वे बच्चे सड़क पर एक चॉकलेट के लिए आपस में लड़ रहे थे।

“ईसा?” उसकी मां ने नीचे से आवाज़ लगाई।

उसने जल्दी से अपने कपड़े बदल कर पजामा पहना और डाइनिंग हॉल की ओर चल पड़ा। खाने की मेज़ पर चाय व नाश्ता लगा हुआ था। ईसा को विचारों में खोया देखकर उसकी मां ने उससे पूछा कि, “क्या बात है।”

ईसा ने एक अजीब अनुरोध किया। “मैंने कुछ लड़कों को बाहर खेलते हुए देखा। क्या मैं उनके साथ खेल सकता हूं?”

उसकी मां ने शब्दों से तो कुछ नहीं कहा लेकिन उनके भाव से उनका ‘नही’ बिल्कुल साफ पता चल रहा था। उसकी बात का जवाब देने की बजाय उन्होंने विषय ही बदल दिया, “क्या तुमने पापा के लाए हुए नए खिलौने देखे हैं?”

निराश ईसा अपने केयरटेकर रज़ा के साथ घर के पिछले हिस्से में खेलने चला गया।

“मुझे गली के नुक्कड़ पर लड़कों के साथ क्यों नहीं खेलना चाहिए?” उसने रज़ा से पूछा।

रज़ा उसकी बातों को सुनकर हैरान लग रहा था। “आप उन बच्चों के साथ क्यों खेलना चाहते हैं, जबकि आपके पास खेलने के लिए मैं जो हूं?”

“मैं हर दिन तो तुम्हारे साथ खेलता हूं लेकिन आज मुझे उनके साथ खेलने दो। मुझे यकीन है कि हम बहुत मज़े करेंगे।” ईसा ने उसे समझाने की कोशिश की। जब उसने देखा कि रज़ा अभी भी हैरान था, तो उसने कहा, “मैंने उन्हें भोजन के लिए लड़ते हुए देखा। हमारे पास घर पर इतना खाना है। तो क्या मैं उनके साथ कुछ खाना बांट सकता हूं?”

रज़ा ने छोटे लड़के को गौर से देखा।” क्यों न इफ्तार के बाद हम उन्हें सरप्राइज दें?”

ईशा का चेहरा खुशी से खिल उठा। जब उसके पिता अब्दुल रात के खाने के लिए घर लौटे, तो उन्हें उनका बेटा कहीं नज़र नहीं आ रहा था। उनकी पत्नी परिवार के लिए शानदार भोजन पकाने में व्यस्त थी। आखिर यह रमजान का पवित्र महीना था।

अपने बेटे की तलाश में अब्दुल घर से बाहर निकले। कुछ ही दूरी पर उन्होंने ईसा को रज़ा के साथ देखा। दोनों गली के बच्चों से घिरे हुए थे। घबराते हुए वह उनकी ओर दौड़े। लेकिन वहां उन्होंने जो देखा उसे देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। ईसा गली के बच्चों को अपने पुराने खिलौने और नाश्ता बांट रहा था।

“क्या मैं भी तुम्हारे साथ इसमें शामिल हो सकता हूं?” अब्दुल ने ईसा से पूछा।

“हां” छोटा लड़का खुशी से चिल्लाया और उसने अपने पिता को गले से लगा लिया।

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