डर पर काबू पाना

डर के आगे जीत है

अर्जुन जानता था कि अब शार्क्स को लेकर उसे जो फोबिया (डर) है उससे ऊपर उठने का समय आ गया है। इसलिए उसने अपने दोस्तों को बुलाया और स्नॉर्केलिंग करने के लिए भारत के एक कोरल आइलैंड, लक्षद्वीप जाने की योजना बनाई।

जब अर्जुन 15 साल का था, तब उसकी पूरी दुनिया एक्शन, थ्रिलर और सस्पेंस फिल्मों के इर्द-गिर्द घूमती थी। एक अलसाई रविवार की दोपहर को, उसके स्कूल के सभी दोस्त 1975 की अमेरिकी क्लासिक फिल्म ‘जॉज़’ देखने के लिए उसके घर पर आए थे। वे सभी बहुत उत्साहित थे, क्योंकि उन्होंने इस फिल्म के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें सुनी हुई थी, जैसे- इसकी स्टोरीलाइन, दिल को थामने वाले दृश्य और प्लॉट में आने वाले ट्विस्ट्स।

जब फिल्म शुरू हुई तो वे सभी फिल्म (Film) से ऐसे चिपके रहे जैसे शहद से मधुमक्खियां चिपकी होती हैं। अगले कुछ घंटों तक, कमरा बच्चों की तेज़-तेज़ सांसों, उनकी चीखों और तालियों से गूंजता रहा। अंत आते- आते, फिल्म ने अर्जुन पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। उसे अब शार्क से डर लगने लगा था। फिल्म के प्रभाव की वजह से अर्जुन की कल्पनाशक्ति बेलगाम दौड़ने लगी थी। अगले कुछ महीनों में जब भी वह समुद्र किनारे घूमने जाता, तो उसे ऐसा लगता मानो कोई शार्क उसके टुकड़े-टुकड़े कर सकती है, ठीक फिल्म जॉज़ में दिखाए गए दृश्य की तरह।

अर्जुन को लगता था कि समुद्र (Ocean) के खून पीने वाले हिंसक जानवर राक्षस होते हैं, इसलिए एक साल बाद जब एक पत्रिका से उसे यह पता चला कि शार्क एक लुप्तप्राय प्रजाति है, वह काफी हैरान हुआ। उत्सुकतावश उसने यह समझने के लिए और अधिक पढ़ा कि संभवत: उनके अस्तित्व को किन वजहों से खतरा हो सकता है। और तभी अर्जुन ने महसूस किया कि शार्क के बारे में उसका परसेप्शन (धारणा) वास्तव में सिर्फ उसकी कल्पना की उपज मात्र थी।

अर्जुन को पता चला कि शार्क की लगभग 440 ज्ञात प्रजातियां हैं और उनमें से केवल कुछ ही घातक हैं। लेकिन जिस चीज़ ने उसे सबसे ज़्यादा हैरान किया वह यह थी कि शार्क एक साल में केवल 6 से 10 इंसानों की ही जान लेती है। वह भी इसलिए क्योंकि वे इंसानों को देखकर उन्हें किसी अन्य समुद्री जानवर जैसे सील या समुद्री शेर समझ लेती हैं। दूसरी ओर उसने पाया कि मानव तो हर साल 100 मिलियन शार्क की जान ले लेते हैं।

सच्चाई जानने के बाद, अर्जुन रविवार की उस अलसाई दोपहर के बारे में सोचने से खुद को रोक नहीं सका। उस दिन उसके मन में जो डर पैदा हुआ था, उसने उसे वास्तविकता से अनजान कर दिया था। यदि अर्जुन ने कल्पना से सच को अलग करने में कुछ और वक्त लगाया होता तो शायद उसका डर एक फोबिया (किसी खास चीज़ का डर) में नहीं बदलता। और उसके मन में एक ऐसी प्रजाति के लिए घृणा पैदा नहीं होती, जिसके बारे में यह प्रचलित कर दिया गया था कि वह एक प्रतिशोधी जीव है जो हमेशा किसी की जान लेने का इरादा रखकर ही हमला करता है।

अर्जुन जानता था कि अब शार्क्स को लेकर उसे जो फोबिया (डर) है, उससे ऊपर उठने का समय आ गया है। इसलिए उसने अपने दोस्तों को बुलाया और स्नॉर्केलिंग करने के लिए भारत के एक कोरल आइलैंड, लक्षद्वीप जाने की योजना बनाई। अर्जुन ने लंबे समय तक खुद को समुद्री तटों (बीच) से दूर रखा था। पर अब वह डरता नहीं था। अर्जुन डर को पीछे छोड़ चुका था। अब उसकी दुनिया सीप (मोती रखने वाला खोल) बन चुकी थी।

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