अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता

जहां से चले जाने के लिए शीतल ने तीन साल से मेहनत की थी, आखिर आज वहां से उसका जाने का मन क्यों नहीं कर रहा था?

“पापा जा रहे हैं, पीहू। अब तो उठ जा…” शीतल अपनी 4 साल की बच्ची को उठाते हुए बोली। वह एक सरकारी बैंक में कर्मचारी है और पति मुकेश सिंचाई विभाग में क्लर्क है। लगभग 3 साल पहले मुकेश का ट्रांसफर लखनऊ हो गया था। जिसके बाद से शीतल झांसी में और मुकेश लखनऊ में रहने लगे थे। बेटी पीहू, मां के साथ ही रहती थी। मुकेश शनिवार को झांसी आता था और सोमवार सुबह लखनऊ के लिए निकल जाता था। पति के जाने पर शीतल बेहद उदास हो जाती थी। पिछले 3 साल से वह भी लखनऊ में ट्रांसफर लेने का प्रयास कर रही थी, लेकिन अभी तक उसकी अर्जी पर किसी तरह की मुहर नहीं लगी थी।

शीतल किराए के मकान की पहली मंजिल पर रहती थी, जिसकी बालकनी सामने वाले घर की बालकनी से लगभग जुड़ी हुई थी। वो घर रश्मी का था, शीतल और उसका रिश्ता मानो सगी ननद-भाभी का हो। “भईया चले गए क्या भाभी?” रश्मी ने शीतल को आवाज लगाते हुए कहा। शीतल ने हां में सिर हिलाया। इस पर रश्मी ने पीहू से कहा, “पापा गए, अब बुआ-भतीजी आइसक्रिम खाने जाएंगे।” इस बात पर शीतल भौंहे सिकोड़ते हुए बोली, “बिल्कुल नहीं, अभी तो पीहू की सर्दी ठीक हुई है।” तभी रश्मी की मां चाय का कप आगे बढ़ाते हुए बोलीं, “तो फिर क्या हुआ, मां-बेटी चाय तो पी सकते हैं न?” इस बात पर सभी हंसने लगे।

शीतल पीहू को स्कूल भेजने के बाद ऑफिस के लिए तैयार हुई और निकलते-निकलते रश्मी की मां को आवाज लगाते हुए चली गई कि, “आंटी जी, पीहू स्कूल से आ जाएगी तो घर में खाना रखा है, उसे खिला के सुला दीजिएगा।” ये शीतल की दिनचर्या थी। उसके ऑफिस में रहने के दौरान रश्मी और उसकी मां ही पीहू का पूरा ध्यान रखते थे। उस दिन ऑफिस जाते ही शीतल के बॉस ने उसे अपने केबिन में बुलाया और हाथ में एक लेटर पकड़ा दिया। लेटर को देख कर शीतल की आंखें खुशी से चमक उठीं।

शीतल को भरोसा नहीं हो रहा था कि सच में उसका ट्रांसफर लखनऊ में हो गया है। उसने तुरंत अपने पति को फोन लगाया, “मुकेश! हम एक महीने बाद तुम्हारे पास होंगे। मेरा ट्रांसफर हो गया है, वो भी लखनऊ में।” मुकेश भी यह बात सुन कर बहुत खुश हुआ।

उधर, शाम को शीतल घर पहुंचते ही रश्मी के गले लग कर अपनी खुशी जाहिर करने लगी कि वह अब जा रही है। शीतल की बात सुनकर रश्मी के चेहरे का रंग उड़ गया, बोली “भाभी सच में आप हमें छोड़ कर चले जाओगे?” यह बात सुनकर शीतल की खुशी फुर्र हो गई। उसे महसूस हुआ कि सच में उसका अपना एक परिवार तो यही छूट जाएगा।

धीरे-धीरे जाने की तारीख आ गई। मुकेश घर के सभी सामान ट्रक में लोड करा रहा था। शीतल के पांव मानो जमीन में धंस गए थे, उसे जाने की खुशी से ज्यादा उस मुहल्ले को, रश्मी के परिवार को, छोड़ के जाने का गम था। वह सोच रही थी कि कल तक जहां से वह जाने की सोच रही थी, आज वहीं से जाने का दिल नहीं कर रहा था। क्या वाकई उसका रश्मी और उसके परिवार के साथ एक अनोखा रिश्ता बन चुका है? इसी बीच दरवाजे पर किसी की आहट से शीतल का ध्यान टूटा। “अरे रश्मी तुम!” शीतल ने भरे गले से कहा। इसके बाद रश्मी शीतल से लिपट गई और फुट-फुटकर रो पड़ी। मुकेश ने दोनों को संभालते हुए नीचे चलने को कहा।

शीतल को कार में बैठाते हुए रश्मी की मां ने कहा, “मन उदास मत करो, तुम्हारा ही घर है, जब मन करे आ जाना।” पीहू ने तपाक से कहा, “परेशान न हो दादी और बुआ, मैं मम्मी को आप सभी से मिलाने के लिए लेकर आऊंगी।” रश्मी की तरफ देखते हुए शीतल ने बाय किया और कहा, “जो रिश्ता बना लिया है न तुमने कि अब हर महीने मुझे मिलने आना ही होगा।” रश्मी अपने आंसुओं को फिर नहीं संभाल पाई, सिर्फ इतना ही बोल सकी, “भाभी! आपका इंतजार करूंगी।”

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