उम्मीद की किरण

उम्मीद की किरण

राजीव ने बड़ी हैरानी से उसे घूरकर देखा। वह सोच रहा था कि अपने बेटे के लिए दो साल में एक दिन भी कभी दुकान लगाना बंद नहीं किया।

राजीव अपने करियर के सबसे खराब लेखकों के ब्लॉक के बीच बुरी तरह घिर गया था। उसने पिछले एक हफ्ते से एक शब्द भी नहीं लिखा था। इधर, पुस्तक को पूरा करने की डेडलाइन फांसी के फंदे की तरह उसकी गर्दन के आसपास झूल रही थी। उसने अपनी ओर से पूरी कोशिश कर ली, जो वह कर सकता था। लेकिन उसकी परफेक्ट एंडिंग अब भी उम्मीद से कोसो दूर थी।

इधर, पुस्तक को पूरा के लिए उसके पास सिर्फ दो हफ्ते ही शेष बचे थे। इससे परेशान होकर अपने दिमाग को कुछ तरोताजा और आराम देने के लिए राजीव ने कुछ दिन सुदूर ग्रामीण इलाकों में समय बिताने का फैसला किया। वह अपने हसीन पलों को प्रकृति के बीच शांत माहौल में व्यतीत करना चाहता था।

पहले दिन से ही राजीव उसकी तलाश में जुट गया। लेकिन वातावरण में बदलाव के बावजूद उसे कोई विशेष लाभ नहीं मिला। वह हर दिन कुछ न कुछ पन्ने लिखता, लेकिन उस दिशा की ओर नहीं बढ़ पा रहा था, जो वह पाना चाहता था।

मुझे नहीं लगता कि मैं इस पुस्तक को पूरा कर पाऊंगा। मैं एकदम ही आलसी लेखक हूं, राजीव यह सोचकर नाराज हो गया। वह खुद से भी काफी निराश था। इसके बाद निराश होकर पब्लिशर्स को ईमेल टाइप किया, जिसमें उसने इस प्रोजेक्ट को स्थगित करने की गुजारिश की थी। लेकिन वह इस ईमेल को भेजने की साहस जुटा नहीं पाया।

राजीव ने अपने लैपटॉप का कवर बंद कर दिया और कुर्सी से उठकर टहलने के लिए निकल पड़ा। उसने गली में एक फल बेचने वाले को देखा और उसके पास गया। ‘केला कैसे दे रहे हैं?’, राजीव ने पूछा। ‘चालीस रुपए किलो है सर। ये काफी मीठे हैं। आपको बहुत पसंद आएंगे, फल वाले ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया’। राजीव उसे मुस्कुराते हुए देखकर काफी खुश था। हालांकि, वह खुद मुस्कुराना भूल चुका था

‘आपका नाम क्या है? कितने सालों से आप फल बेच रहे हैं?’, राजीव ने अपनी बातचीत जारी रखी।

‘भोला सर। मैं यहां करीब ढाई साल से फल बेच रहा हूं’। मैंने एक दिन भी अपनी दुकान लगाना बंद नहीं किया है’, यह कहते हुए उसकी आवाज में एक विश्वास झलक रहा था

‘क्या वास्तव में आपने एक दिन भी अपनी दुकान बंद नहीं की है?’, राजीव को यह सुनकर यकीन नहीं हो पा रहा था।

‘हां.. दरअसल मैं अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे जमा कर रहा हूं। मैं तो गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर सका। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरे बेटे भी मेरे जैसे ही परेशानी झेलें’, भोला धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ अपनी बातों को जारी रखा।

राजीव बड़ी ही हैरानी से उसे घूरकर देखा। इस इंसान ने अपने बेटे के खातिर एक दिन भी दुकान बंद नहीं किया। यह सोचकर वह काफी आश्चर्यचकित हुआ। भोला की मुलाकात ने राजीव के अंतर्मन को एक नई प्रेरणा से भर दिया। भोला से केला खरीदने के बाद राजीव सीधे अपने कमरे में चला गया।

सबसे पहले उसने कुछ देर पहले टाइप किए ईमेल ड्राफ्ट को डिलीट कर दिया। आखिरकार मुझे मिल गया, जिसकी तलाश थी, उसने खुद से कहा। इसके बाद वह टाइपिंग करने में जुट गया। उसे पता था कि अब इस पुस्तक को उम्मीद और आशावादी संदेशों के साथ खत्म करना है

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