शाम के वक्त वह अपने कमरे की बालकनी में खड़ी पक्षियों की चहचहाहट सुनते हुए चिड़िया को अपने बच्चों को दाना खिलाने के लिए अपने घोंसले में लौटता देख रही थी। जैसे-जैसे अंधेरा आसपास के इलाके को अपनी बाहों में समेटता जा रहा था, वह अपने ही विचारों के घुमड़ रहे बादलों से परेशान हो रही थी। वह रोज़मर्रा की ज़िंदगी से परेशान थी और सोच रही थी कि कैसे वह अपनी बेड़ियों को खोलकर कुछ ऐसा करे जो उसकी आत्मा के द्वार खोलकर खुशियों से उसकी झोली भर दे। वह जितनी बेचैन होती, डांस करने की उसकी इच्छा और मज़बूत होती जाती। सच, वह न जाने कितनी बार प्रयास कर विफल हो चुकी थी। लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं थी।

आज वह सूर्योदय से पहले ही उठ गई। उसने नौवीं बार फिर नृत्य का अभ्यास किया। अपने डांस कॉस्ट्यूम पहनकर उसने खुद को परीक्षा के लिए तैयार किया। यह परीक्षा उसे शहर के प्रतिष्ठित डांस स्कूल में प्रवेश दिलवाने वाली थी। सहमी हुई लेकिन मज़बूत इरादे लेकर उसने परफॉर्म किया और जीता। इंस्ट्रक्टर को उसके डांस को लेकर संदेह था, लेकिन उसने उसकी हिम्मत को महत्व दिया। उन्होंने उसके दृढ़ निश्चय के आगे घुटने टेक दिए। उसके लिए तीन साल की यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन उसकी अदम्य इच्छाशक्ति (Indomitable will) ने उसे कभी हार नहीं मानने दिया। उसने स्कूल में अब तक की बेस्ट डांसर बनने की कसम जो खाई थी।

जब ग्रेजुएशन डे आया तो उसके शानदार नृत्य ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वह गाने की धुन पर ऐसे झूमी मानो कमल का फूल हवा में हिचकोले खा रहा हो। उसके डांस और उसकी कटीली निगाहों ने सभी को मोह लिया था। मंच पर आज उसका राज था। उसकी फुर्तीली थिरकन और चाल ने मंच को मानो सुबह के सूरज से आकाश की तरह रोशन कर दिया था।

खचाखच भरे सभागार (हॉल) में तालियों की गड़गड़ाहट रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसने अभिनंदन स्वीकार करते हुए अपने संघर्षों और बलिदानों को याद किया। एक ओर उसकी आंखें नम हो गई थी और दूसरी ओर उसके चेहरे पर  विजयी मुस्कान थी। लेकिन क्या किसी को इस बात का आभास था कि मंच पर राज करने वाली यह शानदार नृत्यांगना उन्हें देख नहीं सकती थीं। वह तो जन्मजात नेत्रहीन थीं।