सर्दियों की शाम थी और दिन लगभग ढलने को था। एक काफी व्यस्त और भीड़-भाड़ वाले रास्ते के बीचों बीच एक कमजोर व बुजुर्ग व्यक्ति खड़ा था। वह घबराया हुआ था, क्योंकि वह उस भीड़ में खो गया था। जनमानस का एक सैलाब उसके पीछे से गुजर रहा था, लेकिन एक युवक को छोड़कर किसी ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
20-22 की उम्र के रौशन ने उस बूढ़े व्यक्ति से पूछा “सॉरी सर, क्या आप ठीक हैं? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं?”
बुजुर्ग ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया “मैं शाम के वक्त पार्क में टहलने आया था। मेरे घर जाने का वक्त हो गया है, लेकिन मुझे मेरे घर का रास्ता मिल नहीं रहा है। सभी गलियां देखने में एक जैसी लग रही हैं।”
रौशन ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि “सर घबराए नहीं। मेरा नाम रौशन है, मैं यहीं पास में ही रहता हूं। मैं आपको आपके घर छोड़ देता हूं।”
बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा “शुक्रिया बेटा। मेरा नाम जगदीश अग्रवाल है, मैं यहां नया आया हूं। आदर्श नगर गली में मेरी बेटी रहती है, मैं उससे मिलने आया हूं।”
युवक ने कहा “अरे वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं तो उसी तरफ जा रहा था। चलिए, मैं आपको छोड़ देता हूं। लेकिन, उससे पहले एक-एक कप चाय हो जाए?” इसके बाद रौशन, जगदीश को लेकर एक चाय की दुकान पर गया।
दो कप चाय का ऑर्डर देते हुए रौशन ने देखा कि जगदीश कांप रहे थे। उसने उन्हें दुकान के अंदर एक कुर्सी पर बैठाया। इसके बाद दोनों चाय आने का इंतजार करने लगे। चाय टेबल पर आई और दोनों ने गर्मा-गर्म चाय की चुस्की ली। इस दरमियान रौशन और जगदीश के बीच में जान पहचान का सिलसिला आगे बढ़ा। रौशन ने बताया कि वह नौकरी तलाश रहा है, जिसके तहत आज दोपहर वह VWX.Inc नामक कंपनी में इंटरव्यू देने गया था और वहीं से लौट रहा था।
रौशन ने आगे आशाजनक लहजे में कहा “मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी नौकरी इस बड़ी कंपनी में हो जाएगी। इस कंपनी का हिस्सा बनना मेरा सपना है। मेरा सपना ज़रूर सच होगा।”
इस बात पर बुजुर्ग ने युवक को आशीर्वाद देते हुए कहा “तुम एक अच्छे इंसान हो, तुम्हारा सपना ज़रूर पूरा होगा। मुझे तुम पर पूरा यकीन है। बेटा, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, खूब तरक्की करो।” इसके बाद चाय की दुकान से निकल कर दोनों आदर्शनगर की तरफ चल पड़े।
थोड़ी ही देर में जगदीश घर के सामने पहुंच गए। जैसे ही घर पहुंचे, वैसे ही उन्होंने अपने बेटी और दामाद को गेट पर खड़ा पाया। दोनों काफी चिंतित लग रहे थे। आगे बढ़कर बेटी ने पिता का हाथ थामते हुए कहा कि “भगवान का शुक्र है कि आप ठीक है और घर आ गए। देर तक घर नहीं आने पर हमें आपकी चिंता हो रही थी।”
हंसते हुए जगदीश ने पूरी घटना विस्तार से बताते हुए कहा “शुक्रिया अदा करना है तो रौशन का करो। इसने मेरी बहुत मदद की।”
बेटी कृतज्ञ भाव के साथ रौशन की तरफ मुड़ी और बोली “आप एक नेक इंसान है। मैं आपकी शुक्रगुजार हूं। मुझे बताएं कि मैं आपका यह एहसान कैसे चुका सकती हूं?”
इस सवाल पर जगदीश ने तुरंत कहा, “बेटी! यह युवक नौकरी तलाश रहा है, क्या हम किसी तरीके से इसकी मदद कर सकते हैं? इससे तुम इनका एहसान भी चुका पाओगी।”
अपने हैंडबैग से कुछ निकालते हुए बेटी ने कहा “बिल्कुल पापा!”
रौशन की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बुजुर्ग की बेटी ने कहा “सर! यह मेरा बिजनेस कार्ड है। इस पर दिए गए ईमेल आईडी पर आप मुझे इस हफ्ते मेल करें।”
रौशन ने कार्ड थामते हुए धीमे से कहा, “थैंक यू मैडम! मैं ज़रूर करूंगा।”
जब रौशन ने उस बिजनेस कार्ड को देखा, तो वह हैरान रह गया। कार्ड पर लिखा था:
तारा वालिया
प्रेसिडेंट VWX.Inc
tara.walia@vwx.inc
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