आखिर चिड़िया ने अपना अलग आसमान बना ही लिया

आखिर चिड़िया ने अपना अलग आसमान बना ही लिया

लोग लड़कियों को सिर्फ इसलिए पढ़ाते थे कि उनकी शादी एक अच्छे घर में हो सके। लेकिन, शालू के सपने कुछ और ही थे, उसे अपना एक अलग आसमान बनाना था।

“लड़की है, बहू। शहर न भेजो पढ़ने के लिए, कदम बहक गए तो शादी-ब्याह भी न होगा ऊंचे खानदान में।” राकेश अपनी बहू रेखा से अपनी पोती शालू के बारे में बात कर रहे थे। रेखा ने कहा, “पढ़ लेगी, तो उसके लिए ही अच्छा होगा न बाबू जी!” राकेश ने जवाब दिया, “अरे नहीं बहू! गांव में भी तो कॉलेज हैं। ग्रेजुएशन ही करना है, तो यहां से भी कर सकती है।” थोड़ा हंसते हुए बोले, “वैसे भी कौन सा पढ़ लिख कर शालू कॉलेज टॉप कर लेगी?” अपने दादा और मां की ये बातें शालू दीवार की ओट से सुन रही थी।

एक छोटे से गांव में एक संयुक्त परिवार में शालू रहती थी, जिसका सपना कुछ बड़ा करने का था। शालू के पिता परिवार के भरण-पोषण के लिए बड़े शहर में रहते थे और मां गांव में रहकर परिवार संभालती थी। वह अपने खानदान की पहली बेटी थी, उसके बड़े पिता के बेटे शहर में रह कर पढ़ाई करते थे। यह देख कर उसने भी अपनी छोटी आंखों से बड़े सपने देखे थे। लेकिन, परिवार की सोच उसके और सपनों के बीच में आ रही थी।

उस गांव में बेटियों को सिर्फ शादी-ब्याह के लिए ही पढ़ाया जाता था। लोग लड़कियों को 12वीं कक्षा के बाद ग्रेजुएशन सिर्फ इसलिए कराते थे कि उनकी शादी एक अच्छे घर में हो सके। लेकिन, इन सबसे अलग 18 साल की शालू का सपना पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी करने का था। वह शहर में रह कर एक अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहती थी। बारहवीं की परीक्षा खत्म होते ही उसने अपनी मां को यह बात बताई थी। रेखा ने अपनी बेटी की इस इच्छा को पूरा करना चाहा। इसलिए उसने अपने परिवार में इस बात को रखा। लेकिन, लड़की के शहर जाकर पढ़ने वाली बात परिवार के किसी भी सदस्य को पसंद न आई।

परिवार की राय जानकर रेखा और शालू दोनों बहुत दुखी हुईं। रेखा ने शालू को समझाते हुए कहा कि “बेटी! तुम्हारे दादा नहीं मान रहे हैं और तुम्हारे पिता यहां है नहीं कि तुम्हें शहर लेकर जाए। इसलिए गांव के कॉलेज का ही फॉर्म भरकर दाखिला ले लो।” शालू ने मां को भरोसा दिलाते हुए कहा, “विश्वास करो मां, मैं मन लगाकर पढ़ाई करूंगी और कुछ बन कर दिखाउंगी। मुझे शहर की यूनिवर्सिटी में ही पढ़ना है।” बेटी की बात सुनकर रेखा सोच में पड़ गई।

उधर, शालू ने साइबर कैफे में जाकर, शहर की यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए ऑनलाइन फॉर्म भर दिया। कुछ दिनों बाद प्रवेश परीक्षा की तिथि और प्रवेश पत्र भी आ गया। शालू ने मां को प्रवेश परीक्षा की बात बताई। इस पर मां ने बेटी को शहर भेजने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। घरवालों से रेखा ने कहा कि उसके बहन की तबीयत सही नहीं है, तो उन्होंने शालू को मदद के लिए बुलाया है। इसलिए वह शहर जा रही है, कुछ ही दिनों में आ जाएगी। इस पर राकेश ने उसे शहर जाने की अनुमित दे दी।

शालू के मौसी का घर शहर में था और उनके घर से यूनिवर्सिटी नजदीक भी थी। शालू, मौसी के घर गई और प्रवेश परिक्षा में शामिल हुई। कुछ ही दिनों में रिजल्ट आया और वह परीक्षा में पास हो गई। अब रेखा की चिंता यह थी कि वह घरवालों से क्या कहेगी? यह सोचकर उसे पूरी रात नींद नहीं आई। एक तरफ परिवार था तो दूसरी तरफ बेटी के सपने।

अगले दिन सुबह रेखा ने पूरे परिवार के सामने कहा, “शालू का दाखिला शहर में ही होगा और यह मेरा फैसला है।” इस पर घर के सभी लोग रेखा को घूर कर देखने लगे। राकेश ने कहा, “बहू, ये कौन सी बात हो गई। हम सबने पहले ही तय किया है कि वह गांव के कॉलेज से ही पढ़ेगी।” रेखा ने बगावती तेवर से कहा, “नहीं बाबू जी, मेरी बेटी है और मेरा फैसला है। वह शहर की यूनिवर्सिटी में ही पढ़ेगी।” राकेश ने तुनक कर बोला, “कल को कुछ ऊंच-नीच हो गई, तो रोते बैठना। इस घर में तो मेरी कोई सुनता ही नहीं है।” रेखा वहां से कहते हुए निकल गई कि “कल सुबह की बस से शालू शहर जाएगी अपना एडमिशन कराने।”

घर में गंभीर माहौल देख कर शालू को अंदर से बहुत रोना आ रहा था। लेकिन, जब वह अपनी मां का चेहरा देखती, तो मन ही मन सोचती कि जो मां पूरे परिवार से उसके लिए बगावत कर रही है, उसकी हिम्मत कमजोर नहीं होने देना है। भारी मन से वह अगले दिन शहर जाने की तैयारी करने लगी। रेखा ने अपनी बहन के पास शालू के रहने की व्यवस्था करा दी थी। सुबह विदा करते समय मां ने बेटी से कहा, “खूब मन लगा कर पढ़ाई करना और अपने सपनों को पूरा करना। तुमसे ही मेरी सारी खुशियां हैं।” नम आंखों से शालू ने हां में सिर हिलाया और चली गई।

यूनिवर्सिटी में शालू का दाखिला हुआ और वह मन लगाकर पढ़ाई करने लगी। धीरे-धीरे दिन बीते, फिर महीने बीते और फिर साल। तीन साल में शालू ग्रेजुएट हो गई। परीक्षा खत्म होने पर वह अपने गांव वापस आई। परीक्षा का रिजल्ट अभी आना बाकी था। गाहे-ब-गाहे परिवार के लोग उसे ताना मार ही देते थे, “और भाई, कर ली पढ़ाई, बन गई टॉपर?” दोनों मां-बेटी कभी कुछ नहीं कहते थे। एक दिन रेखा को बेटी की यूनिवर्सिटी से फोन आया, “हैलो! रेखा जी, बधाई हो! आपकी बेटी ने तो कमाल कर दिया।” रेखा थोड़ा सकपकाई, “जी, क्या हुआ मैं कुछ समझी नहीं।” उधर से आवाज आई, “आपकी बेटी ने तो पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया है। अगले दीक्षांत समारोह में आपको सपरिवार आना है। शालू को प्रदेश के राज्यपाल के हाथों गोल्ड मेडल मिलेगा।”

रेखा पागलों की तरह बाहर की तरफ भागी। शालू को गले लगाकर रोने लगी और जोर-जोर से कहने लगी, “बधाई हो सबको, अपने घर टॉपर पैदा हुई है।” घर के सभी सदस्य शोर सुनकर कमरे से बाहर आए। रेखा ने अपने ससुर के पैर छूते हुए कहा, “बधाई हो बाबू जी! आपकी बात सच हुई। बेटी कॉलेज की नहीं, यूनिवर्सिटी की टॉपर बन गई।” राकेश का सिर शर्मिंदगी से झुका था। अपने कांपते हाथों को शालू के सिर पर रखते हुए राकेश ने कहा, “आखिर चिड़िया ने अपना अलग आसमान बना ही लिया।”

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