शिक्षक दिवस का महत्व

हमें सफल बनाने वाले शिक्षकों को सलाम

जब बच्चा पहली बार अपने घर को छोड़ता है, तो उसे एक ऐसे शिक्षक को सौंप दिया जाता है, जो उसका भविष्य संवारते हैं। जो आने वाले कुछ वर्षों में उस बच्चे को एक संस्कारवान व्यक्ति बना कर इस दुनिया को सौंप देते हैंI इसमें अनेक शिक्षकों का योगदान रहता हैI आइए इस शिक्षक दिवस (Teachers Day) पर जानते हैं ऐसे ही शिक्षकों के बारे में।

संस्कृत की कहावत ‘माता-पिता गुरु दैवम’ का अर्थ है कि ‘माता, पिता, गुरु, भगवान’। जब सवाल इन सभी में किसी व्यक्ति की ज़िंदगी को प्रभावित करने का आता है, तो शिक्षकों का दर्जा माता-पिता के बराबर और संभवत: भगवान से कुछ ज्यादा ऊंचा माना जाता है। शायद यह सही भी है। जब बच्चा अपनी पालकी की छाया से पहली बार बाहर जाता है, तो लड़के या लड़की को शिक्षक का ही साथ मिलता है। अगले दो दशकों तक वह बच्चा सुशिक्षित, संस्कारवान, अपने खुद के विचारों, योजनाओं व व्यक्तित्व को तराश कर लौटता है। इस कार्य में शिक्षक ही उसको सहयोग देते हैं।

इस शिक्षक दिवस पर सोलवेदा ऐसे शिक्षकों की बात कर रहा है, जिन्हें हमने देखा और जिन्होंने हमें वह बनाया जो आज हम हैं।

परफेक्शनिष्ट शिक्षक

शिक्षक दिवस पर टीचर्स के बारे में खास बातें जानने से बेहतर भला दूसरा दिन क्या हि होगा। कुछ ऐसे शिक्षक होते थे जिनकी कक्षा में हमें संपूर्ण और केंद्रित होकर ध्यान देना पड़ता था। ऐसे शिक्षक जब होमवर्क देते थे, तो उसे पूर्ण करने में संपूर्ण एकाग्रता और प्रयास की ज़रूरत होती थी। यह संभव है कि ऐसे शिक्षकों की वजह से आपको कई बार सारी रात जागना पड़ता हो, ताकि आप मोटी पुस्तकों में लिखे फार्मुले अपनी कॉपी में उतार सकें। ऐसा करते-करते अनेक बार उंगलियों में दर्द भी होने लगता था। लेकिन वे शिक्षक आपकी बहानेबाजी और आंसुओं से भरी शिकायत की ओर ध्यान ही नहीं देते थे। वे खुद परफेक्शनिस्ट होते थे और आपसे भी आपके बेहतरीन प्रयास की अपेक्षा करते थे। आज आप उन्हें इसके लिए धन्यवाद ही देते हैं क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करते, तो शायद आप अपने आराम के चक्र व आलस्य को छोड़कर अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाते। इस शिक्षक दिवस पर उन्हें शुक्रिया अदा करें।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के अंतिम वर्ष के छात्र चंद्रामौलीश्वरन अपने कम्प्यूटर साइंस के प्रोफेसर के साथ ऐसे ही खट्टे-मीठे रिश्तों को याद करते हैं। इन प्रोफेसर महोदय ने उनसे एक प्रोजेक्ट सात बार बनवाया था, ताकि वह परफेक्ट बन सकें। चंद्रा के अनुसार उस वक्त वह काफी पीड़ादायक लगता था, लेकिन अब लगता है कि प्रोफेसर ने ठीक ही किया था। 7 बार प्रयास करने के दौरान मुझे हमेशा मेरी उस गलती का अहसास होता था, जो मैं कर रहा था या जहां मैं बेहतर कर सकता था।

इन दिनों चंद्रामौलीश्वरन कोई भी बड़ी प्रोजेक्ट रिपोर्ट पलक झपकते ही बना सकते हैं। इसके लिए वे सदैव अपने प्रोफेसर का आभार व्यक्त करते नहीं थकते। उनके दृष्टिकोण ने ही हमारे विचारों को गढ़ा और हमारे प्रयासों को दिशा दी, जिसकी वजह से आज हम इस मुकाम पर खड़े हैं। इस तरह की अनेक बातें हैं, जिनके लिए हम ऐसे प्रोफेसर के ताउम्र शुक्रगुजार रहेंगे। इस शिक्षक दिवस पर अपने ऐसे ही शिक्षकों को धन्यवाद दें।

शांत स्वभाव के शिक्षक

कुछ शिक्षक एकदम शांत स्वभाव के होते थे। उन्हें आज की भाषा में ‘चिल’ करने वाला कहा जा सकता है। वे न तो इस बात की परवाह करते थे कि आपने क्या पहना है या फिर आपके बाल कुछ ज्यादा ही लंबे हैं। जब कक्षा में बोरियत महसूस होती, तो ऐसे शिक्षक अचानक ही चर्चित फिल्म अथवा फेसबुक पर वायरल हुई पोस्ट की चर्चा शुरू कर देते। वे आपको कक्षा के दौरान किसी को टेक्स्ट मैसेज भेजने के लिए प्रधानाध्यापक के सामने डांटने का नाटक भी कर लेते थे। फिर आंख मारते हुए आपको एक ओर खींचते हुए कहते, सतर्क रहा करो, अगली बार पकड़े मत जाना। ठीक है, अब जाओ।

ऐसे शिक्षकों की ओर से दिए गए होमवर्क व प्रोजेक्ट की समय सीमा लचीली हुआ करती थी। फिर वे आपके द्वारा बनाए गए बहाने पर भी सहानुभूति पूर्वक विचार कर लेते थे। उनका शांत रवैया अथवा कक्षा में बगैर चिल्लाए सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेने की उनमें अद्भुत क्षमता होती थी। कुछ लोग तो ऐसे शिक्षकों को दिल से चाहने लगते थे। ऐसे शिक्षकों को याद करते ही आज भी आपके चेहरे पर बरबस मुस्कान छा ही जाती है।

मैकेनिकल इंजीनियर बालकृष्ण भट अपनी ऐसी ही एक शिक्षिका को आज तक याद करते हैं। वह 11वीं कक्षा को इलेक्ट्रॉनिक्स पढ़ाया करती थीं। जब भी हम लैब पहुंचते, वहां रखे उपकरणों के साथ कोई न कोई प्रयोग करने में जुट जाते। इसी चक्कर में अक्सर लैब में आग लग जाती। लेकिन इन शिक्षिका को कोई शिकायत नहीं होती। वे बस यही कहतीं कि तुम कुछ प्रयोग तो कर रहे हो। कुछ सीख तो रहे हो। यही बात मेरे लिए मायने रखती है। यही सबक बालकृष्ण के लिए आगे के जीवन में नित नए प्रयोग करने में सहायक साबित हो रहा है। तो क्यों ना इस शिक्षक दिवस पर उन्हें दिल से धन्यवाद दें।

सर्वश्रेष्ठ मित्र शिक्षक

हम सभी के लिए कभी न कभी स्कूल और कॉलेज अकेलेपन का अहसास करा ही देते हैं। दोस्तों के साथ तकरार या फिर घरेलू विवाद या फिर किशोरावस्था के दौरान आने वाला गुस्सा ही इसका कारण क्यों न हो। ऐसे में हमें जरूरत होती थी एक ऐसे व्यक्ति की, जिसके पास बैठकर हम दिल खोलकर बात कर सकें और सही राह पर चलने में वह आपका साथ दें। कुछ ऐसे भी भाग्यशाली छात्र हैं जिन्हें ऐसे शिक्षक मिले, जिनकी सटीक सलाह और मार्गदर्शन ने उनकी ज़िंदगी को आसान बना दिया। वे बड़ी सहजता से और आपकी भावनाओं को समझकर आपके मन के अंधियारे को दूर करने में सफल हो जाते थे। ऐसे लोगों का साथ मिलने पर भावनात्मक रूप से टूटे हुए व्यक्ति को सही राह पर आने में काफी सहायता मिल जाती है।

फिल्म ‘तारे जमीं पर’ में राम शंकर निकुंभ का किरदार बरबस ही ध्यान में आ जाता है। जिस खूबी के साथ उस कला शिक्षक ने भावनात्मक रूप से परेशान ईशान अवस्थी को अपने विश्वास में लिया व उसे पढ़ने में होने वाली परेशानी को समझते हुए इस समस्या को हल करने में उसकी सहायता की, वह बेमिसाल है। यह फिल्म देखकर सभी भावुक हो गए थे। हममें से अनेक लोगों के पास अपने ऐसे शिक्षकों की यादें होंगी, जिन्होंने ज़िंदगी की शुरुआत में हमारे लिए अहम भूमिका अदा की होगी। उनके विशेष मार्गदर्शन और मध्यस्थता के बगैर आज हम इतने मज़बूत और समझदार नहीं बन सकते थे। ऐसे में इस शिक्षक दिवस पर उनका धन्यवाद करना बनता ही है।

ऐसे शिक्षक, जिन्हें पढ़ाने में आनंद आता था

इस श्रेणी के शिक्षकों को अपने विषय का संपूर्ण ज्ञान होता था। यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था। वे अपने उदाहरणों में ऐसी चुनिंदा मिसाल दिया करते थे कि हर कोई ध्यान से उनके मुंह से निकला हुआ हर शब्द सुनता था। वे गंभीर से गंभीर विषय को भी मज़ेदार अंदाज़ में पेश कर सभी को समझाने में सफल हो जाते थे। हम सभी ऐसे शिक्षकों की कक्षा का इंतजार करते थे कि पता नहीं आज किस नई चीज़ के बारे में मज़ेदार अंदाज़ में सीखने को मिलेगा। इस शिक्षक दिवस पर ऐसे शिक्षकों को याद कर हमें उनका धन्यवाद करना चाहिए, जिनकी बदौलत हम आज जो कुछ भी उस उसके पीछे की सफलता के लिए उनका भी योगदान है।

हम सभी एक न एक ऐसे शिक्षक को तो जानते ही होंगे। कॉपी एडिटर प्रियंका विक्टर से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उनके हाईस्कूल की इकोनॉमिक्स की शिक्षक ने ही, उनकी मांग और आपूर्ति के सिद्धांत को समझने में सहायता की थी। प्रियंका के अनुसार इस शिक्षिका ने इसे इतने सरल और साफ शब्दों में समझाया कि वह मानो दिमाग पर छप गया। वह सबक आज भी याद है। वह शिक्षिका ऐसी थीं जो पाठ्यक्रम को पूर्ण करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि ज्ञान देने की खुशी पाने के लिए पढ़ाती थीं। न तो उनकी कक्षा में कभी कोई सोया और न ही उन्हें किसी पर चिल्लाने की नौबत आई।

शिक्षक विभिन्न स्वभाव के भले ही रहे हों, लेकिन उन्होंने हमें सही राह दिखा दी। उन्होंने हमें एकाग्रचित्त रखा, ताकि हम वह सीख सकें, जिनकी हमें ज़रूरत थी। आज हम ऐसे ही शिक्षकों की नज़रों से दुनिया को देखते हैं। उनके सिद्धांतों ने ही हमारे विचारों को एक दिशा दी, जिसकी वजह से आज हम जहां भी हैं वह उनकी वजह से ही हैं। ऐसी सारी बातों के लिए हम इन शिक्षकों के सदैव ऋणी रहेंगे। वहीं शिक्षक दिवस हो या फिर कोई और खास दिन हम उनका धन्यवाद करते नहीं थकेंगे।

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